चिराग के सहारे शमां खड़ी है,
पर अपनी आजादी के लिये हमेशा लड़ी है।
मुश्किल यह है कि
चिराग और शमां के मिलाप से पैदा होती रौशनी का
हिसाब कोई नहीं करता,
बस, थोड़ी हवो से हिचकौले खाती
शमां की गुलामी पर हर कोई आहें भरता,
लोग देखना चाहते हैं
दोनों के अलग अलग होने का मंजर
शैतान बैठा है सभी के अंदर,
हो जाये जमाने में हादसा तो,
दर्द भरे बयान लिख कर जज़्बात बटोरे जायें,
कुछ नाम तो कुछ नामा पायें,
इसलिये अंधेरों से कई शायरियां भरी पड़ी हैं
————-
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका