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तयशुदा लड़ाई-हिन्दी लघुकथा (fix religion war-hindi short story)


वह डंडा लेकर उस मैदान में लड़ने पहुंचे। यह मैदान ‘धर्मकुश्ती’ के लिये विख्यात था। मैदान के मध्य में उन दोनों ने अपने अपने धर्म का नाम लेकर लड़ाई शुरु की। पहले एक दूसरे पर डंडे से प्रहार करते-साथ में अपने धर्म की जय भी बोलते जाते। डंडे से डंडे टकराते। वह उनको चलाते चलाते थक गये तब वह डंडे फैंककर दोनों मल्लयुद्ध करने लगे। एक दूसरे पर घूंसे बरसाते जाते। काफी जमकर कुश्ती हुई। मगर कोई नहीं जीता। वह थककर वहीं बैठ गये। उनके हाथ पांव में घावों से रक्त भी बहता आ रहा था।
उनको प्यास लगी। वहीं से कुछ दूर मैदान के किनारे बने चबूतरे पर एक ज्ञानी भी बैठा था जिसके साथ पानी पिलाने वाला एक शिष्य था। अपने उसी शिष्य से उस ज्ञानी से कहा कि‘जाओ उनको पानी पिलाओ। अब वह थककर चूर होकर बैठे हैं।
वह पानी लेकर उनके पास पहुंचा और दोनों को ग्लास भरकर देने लगा। धर्मयोद्धाओं में से एक ने उससे पूछा-‘तुझे कैसे मालुम कि हमें पानी की प्यास लगी है।’
उस शिष्य ने कहा-‘यह मैदान धर्मकुश्ती के लिये विख्यात है। यहां आप जैसे अनेक लोग आते हैं। हमारे ज्ञानी जी यहां रोज आकर बैठते हैं क्योंकि उनको मालुम है कि यहां आकर धर्म कुश्ती करने से कोई नतीजा नहीं निकलेगा पर प्यास तो योद्धाओं उनको लगेगी। वह परेशान न हों इसलिये मुझे भी साथ रखते हैं ताकि उनको पानी दे सकूं।’
दूसरे ने पूछा-‘तेरा धर्म क्या है?’
शिष्य ने जवाब दिया-‘पानी पिलाना।’
पहले ने कहा-‘यह भी कोई धर्म है?’
शिष्य ने कहा-‘हमारे गुरुजी कहते हैं कि आज के अक्षरज्ञानी विद्वानों ने कुश्ती प्रदर्शन के लिये धर्मों का नाम रख लिया है। मनुष्य का आचरण, व्यवहार, कर्म तथा विचार से ही पता लगता है कि वह धर्मी है या अधर्मी।
पहले धर्म के नाम पर बांटकर लोगों पहले राज्य किया जाता है आज व्यापार भी किया जाता है। आप यहां कुश्ती करने आये कल यह खबर सभी जगह चमकेगी तो बताओ खबरफरोशों   का धंधा हुआ कि नहीं।’
उन दोनों ने पानी पिया और सुस्ताने लगे। उसी समय एक आदमी आया और बोला-‘शांति रखो! शांति रखो। सभी धर्म एक समान है। सभी धर्म शांति, अहिंसा और प्रेम का संदेश देते हैं।’
इससे पहले वह महायोद्धा कुछ कहते वह चला गया। इस तरह चार लोग शांति संदेश देकर चले गये। एक महायोद्धा ने शिष्य से पूछा-‘यह लोग कौन हैं?’
शिष्य ने कहा-‘‘ इनके नाम भी कल अपनी खबर के साथ देख लेना। यह पंच लोग हैं जो इस बात का इंतजार करते हैं कि कब यहां कुश्ती हो और शांति संदेश सुनाने पहुंच जायें। यह शांति सन्देश देकर अपना धर्म निभाते  हैं।  वैसे यह भी लोग नहीं जानते कि धर्म क्या है?’
दूसरे महायोद्धा ने कहा-‘पर इनका शांति संदेश तो ठीक लगता है। तुम्हारे गुरु जी किस धर्म को मानते हैं’।’
शिष्य ने कहा-‘वह ज्ञानी हैं और वह कहते हैं कि हमारे महापुरुषों तो अच्छे आचरण, व्यवहार, कर्म तथा सुविचार को ही धर्म मानते हैं और इसके विपरीत अधर्म। मेरा धर्म है प्यासे को पानी पिलाना और उनका धर्म है ज्ञान देना।’
एक महायोद्धा ने कहा-‘हम उनसे ज्ञान लेना चाहते हैं।’
शिष्य ने कहा-‘यह उनका ज्ञान देने का समय नहीं है। वह तो यहां इसलिये आते हैं ताकि ऐसी कुश्तियों से कुछ ज्ञान प्राप्त कर सकें। यहां आकर योद्धा आपस में मूंहवाद भी करते हैं। अपने अपने तर्क देते हैं उन्हें सुनकर वह अपना मंतव्य निर्धारित करते हैं। अब आप बाहर जाकर अपने जख्मों का इलाज कराओ। वहां भी एक चिकित्सक हैं जो सेवा भाव से धर्म कुश्ती में घायल होने वालों का इलाज करते हैं।’
वह दोनों लड़खड़ाते हुए बाहर चल दिये। चलते चलते भी दोनों एक दूसरे को गालियां देते रहे।
इधर यह शिष्य अपने गुरू के पास लौटा। गुरू ने उससे पूछा-‘उनको ठीक ढंग से पानी पिलाये आये?’
‘हां, गुरुजी, मैंने अपना धर्म निभा दिया।’शिष्य ने कहा।
गुरुजी अपने ध्यान में लीन हो गये। कुछ देर बाद उन्होंने आंखें खोली तो इधर अचानक शिष्य की नजर उन दो डंडों पर पड़ी जो दोनों योद्धा उस मैदान में छोड़ गये थे। वह बोला-‘गुरूजी! उनके डंडे छूट गये हैं। वह ले जाकर उनको वापस कर आता हूं। वह जरूर उसी डाक्टर के पास होंगे।’
गुरुजी ने कहा-‘रहने दे! डंडे अब उनके किसी काम के नहीं है। वह दोनों शांत हो गये हैं। अगर डंडा हाथ में लेंगे तो कहीं उनकी आग फिर भड़क उठी तो गलत होगा। तेरा काम पानी पिलाना है न कि आग लगाना।’
शिष्य ने कहा-‘नहीं गुरुजी, आपने कहा है कि हर किसी की मदद करना चाहिये। इन डंडों को वापस करना अच्छा होगा।’
इससे पहले गुरुजी कुछ समझाते वह भाग कर चला गया। कुछ देर बाद शिष्य लौटा तो उसके बदन पर भी पट्टी बंधी हुई थी। गुरुजी के कारण पूछने पर वह बोला-‘वह दोनों अपने जख्मों पर पट्टी बंधवा चुके थे। जब मैंने जाकर उनको डंडे दिये तो दोनों ने यह कहते हुए मुझ पर डंडे बरसाये कि तू हमारी इजाजत के बगैर हमारी कुश्ती देख कैसे रहा था?’
गुरुजी ने कहा-‘मैंने तुझसे कहा था कि तेरा धर्म पानी पिलाना पर तू आग लगाने पहुंच गया। यह धर्म परिवर्तन करना ही तेरे लिये घातक रहा। तेरे संस्कारों में डंडा चलाना नहीं लिखा तो तू चला भी नहीं सकता। इसलिये उसे हाथ लगाना भी तेरे लिये अपराध है। फिर तू उन लोगों की संगत करने गया जिनके संस्कार तेरे ठीक विपरीत हैं। तू धर्म ईमानदारी से निभाता है उन धर्मकुश्ती करने वाले योद्धाओं से पानी पिलाने तक ही तेरा संबंध ठीक था। इससे आगे तो यही होना था।
लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर

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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन

धर्मकुश्ती-हास्य व्यंग कहानी (dharm yuddh-hasya vyangya kahani)


वह डंडा लेकर उस मैदान में लड़ने पहुंचे। यह मैदान ‘धर्मकुश्ती’ के लिये विख्यात था। मैदान के मध्य में उन दोनों ने अपने अपने धर्म का नाम लेकर लड़ाई शुरु की। पहले एक दूसरे पर डंडे से प्रहार करते-साथ में अपने धर्म की जय भी बोलते जाते। डंडे से डंडे टकराते। वह उनको चलाते चलाते थक गये तब वह डंडे फैंककर दोनों मल्लयुद्ध करने लगे। एक दूसरे पर घूंसे बरसाते जाते। काफी जमकर कुश्ती हुई। मगर कोई नहीं जीता। वह थककर वहीं बैठ गये। उनके हाथ पांव में घावों से रक्त भी बहता आ रहा था।
उनको प्यास लगी। वहीं से कुछ दूर मैदान के किनारे बने चबूतरे पर एक ज्ञानी भी बैठा था जिसके साथ पानी पिलाने वाला एक शिष्य था। अपने उसी शिष्य से उस ज्ञानी से कहा कि‘जाओ उनको पानी पिलाओ। अब वह थककर चूर होकर बैठे हैं।
वह पानी लेकर उनके पास पहुंचा और दोनों को ग्लास भरकर देने लगा। धर्मयोद्धाओं में से एक ने उससे पूछा-‘तुझे कैसे मालुम कि हमें पानी की प्यास लगी है।’
उस शिष्य ने कहा-‘यह मैदान धर्मकुश्ती के लिये विख्यात है। यहां आप जैसे अनेक लोग आते हैं। हमारे ज्ञानी जी यहां रोज आकर बैठते हैं क्योंकि उनको मालुम है कि यहां आकर धर्म कुश्ती करने से कोई नतीजा नहीं निकलेगा पर प्यास तो योद्धाओं उनको लगेगी। वह परेशान न हों इसलिये मुझे भी साथ रखते हैं ताकि उनको पानी दे सकूं।’
दूसरे ने पूछा-‘तेरा धर्म क्या है?’
शिष्य ने जवाब दिया-‘पानी पिलाना।’
पहले ने कहा-‘यह भी कोई धर्म है?’
शिष्य ने कहा-‘हमारे गुरुजी कहते हैं कि आज के अक्षरज्ञानी विद्वानों ने कुश्ती प्रदर्शन के लिये धर्मों का नाम रख लिया है। मनुष्य का आचरण, व्यवहार, कर्म तथा विचार से ही पता लगता है कि वह धर्मी है या अधर्मी।
पहले धर्म के नाम पर बांटकर लोगों पहले राज्य किया जाता है आज व्यापार भी किया जाता है। आप यहां कुश्ती करने आये कल यह खबर सभी जगह चमकेगी तो बताओ खबरफरोशों   का धंधा हुआ कि नहीं।’
उन दोनों ने पानी पिया और सुस्ताने लगे। उसी समय एक आदमी आया और बोला-‘शांति रखो! शांति रखो। सभी धर्म एक समान है। सभी धर्म शांति, अहिंसा और प्रेम का संदेश देते हैं।’
इससे पहले वह महायोद्धा कुछ कहते वह चला गया। इस तरह चार लोग शांति संदेश देकर चले गये। एक महायोद्धा ने शिष्य से पूछा-‘यह लोग कौन हैं?’
शिष्य ने कहा-‘‘ इनके नाम भी कल अपनी खबर के साथ देख लेना। यह पंच लोग हैं जो इस बात का इंतजार करते हैं कि कब यहां कुश्ती हो और शांति संदेश सुनाने पहुंच जायें। यह शांति सन्देश देकर अपना धर्म निभाते  हैं।  वैसे यह भी लोग नहीं जानते कि धर्म क्या है?’
दूसरे महायोद्धा ने कहा-‘पर इनका शांति संदेश तो ठीक लगता है। तुम्हारे गुरु जी किस धर्म को मानते हैं’।’
शिष्य ने कहा-‘वह ज्ञानी हैं और वह कहते हैं कि हमारे महापुरुषों तो अच्छे आचरण, व्यवहार, कर्म तथा सुविचार को ही धर्म मानते हैं और इसके विपरीत अधर्म। मेरा धर्म है प्यासे को पानी पिलाना और उनका धर्म है ज्ञान देना।’
एक महायोद्धा ने कहा-‘हम उनसे ज्ञान लेना चाहते हैं।’
शिष्य ने कहा-‘यह उनका ज्ञान देने का समय नहीं है। वह तो यहां इसलिये आते हैं ताकि ऐसी कुश्तियों से कुछ ज्ञान प्राप्त कर सकें। यहां आकर योद्धा आपस में मूंहवाद भी करते हैं। अपने अपने तर्क देते हैं उन्हें सुनकर वह अपना मंतव्य निर्धारित करते हैं। अब आप बाहर जाकर अपने जख्मों का इलाज कराओ। वहां भी एक चिकित्सक हैं जो सेवा भाव से धर्म कुश्ती में घायल होने वालों का इलाज करते हैं।’
वह दोनों लड़खड़ाते हुए बाहर चल दिये। चलते चलते भी दोनों एक दूसरे को गालियां देते रहे।
इधर यह शिष्य अपने गुरू के पास लौटा। गुरू ने उससे पूछा-‘उनको ठीक ढंग से पानी पिलाये आये?’
‘हां, गुरुजी, मैंने अपना धर्म निभा दिया।’शिष्य ने कहा।
गुरुजी अपने ध्यान में लीन हो गये। कुछ देर बाद उन्होंने आंखें खोली तो इधर अचानक शिष्य की नजर उन दो डंडों पर पड़ी जो दोनों योद्धा उस मैदान में छोड़ गये थे। वह बोला-‘गुरूजी! उनके डंडे छूट गये हैं। वह ले जाकर उनको वापस कर आता हूं। वह जरूर उसी डाक्टर के पास होंगे।’
गुरुजी ने कहा-‘रहने दे! डंडे अब उनके किसी काम के नहीं है। वह दोनों शांत हो गये हैं। अगर डंडा हाथ में लेंगे तो कहीं उनकी आग फिर भड़क उठी तो गलत होगा। तेरा काम पानी पिलाना है न कि आग लगाना।’
शिष्य ने कहा-‘नहीं गुरुजी, आपने कहा है कि हर किसी की मदद करना चाहिये। इन डंडों को वापस करना अच्छा होगा।’
इससे पहले गुरुजी कुछ समझाते वह भाग कर चला गया। कुछ देर बाद शिष्य लौटा तो उसके बदन पर भी पट्टी बंधी हुई थी। गुरुजी के कारण पूछने पर वह बोला-‘वह दोनों अपने जख्मों पर पट्टी बंधवा चुके थे। जब मैंने जाकर उनको डंडे दिये तो दोनों ने यह कहते हुए मुझ पर डंडे बरसाये कि तू हमारी इजाजत के बगैर हमारी कुश्ती देख कैसे रहा था?’
गुरुजी ने कहा-‘मैंने तुझसे कहा था कि तेरा धर्म पानी पिलाना पर तू आग लगाने पहुंच गया। यह धर्म परिवर्तन करना ही तेरे लिये घातक रहा। तेरे संस्कारों में डंडा चलाना नहीं लिखा तो तू चला भी नहीं सकता। इसलिये उसे हाथ लगाना भी तेरे लिये अपराध है। फिर तू उन लोगों की संगत करने गया जिनके संस्कार तेरे ठीक विपरीत हैं। तू धर्म ईमानदारी से निभाता है उन धर्मकुश्ती करने वाले योद्धाओं से पानी पिलाने तक ही तेरा संबंध ठीक था। इससे आगे तो यही होना था।
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

मिठाई और जुदाई


वह सड़क पर रोज खडा होकर उस लड़की से प्रेम का इजहार करता था और कहता”-आई लव यू।
”कभी कहता-”मेरे प्रपोजल का उत्तर क्यों नहीं देती।”वह चली जाती और वह देखता रह जाता था। आखिर एक दिन उसने कहा कहा-”मुझे ना कर दो, कम से कम अपना वक्त खराब तो नहीं करूं।”
वह लडकी आगे बढ़ गयी और फिर पीछे लौटी-”तुम्हारे पास प्यार लायक पैसा है।
”वह बोला-”हाँ, गिफ्ट में मोबाइल, कान की बाली और दो ड्रेस तो आज ही दिलवा सकता हूँ।
”लड़की ने पूछा-”तुम्हारे पास गाडी है।
”लड़के न कहा-”हाँ मेरे पास अपनी मोटर साइकिल है, वैसे मेरी मम्मी और पापा के पास अलग-अलग कार हैं। मम्मी की कार मैं ला सकता हूँ।”
लड़की ने पूछा-“तुम्हारे पास अक्ल है?”
लड़के ने कहा-”हाँ बहुत है, तभी तो इतने दिन से तुम्हारे साथ प्रेम प्रसंग चलाने का प्रयास कर रहा हूँ। और चाहो तुम आजमा लो।”

लड़की ने कहा-”ठीक है। धन तेरस को बाजार में घूमेंगे, तब पता लगेगा की तुम्हें खरीददारी की अक्ल है कि नहीं। हालांकि तुम्हें थोडा धन का त्रास झेलना पडेगा, और बात नहीं भी बन सकती है।”
लड़का खुश हो गया और बोला-”ठीक, आजमा लेना।
धन तेरस को दोनों खूब बाजार में घूमें। लड़के ने गिफ्ट में उसे मोबाइल,कान की बाली और ड्रेस दिलवाई। जब वह घर जाने लगी तो उसने पूछा-”क्या ख्याल है मेरे बारे में?”
लड़की ने कहा-”अभी पूरी तरह तय नहीं कर पायी। अब तुम दिवाली को घर आना और मेरी माँ से मिलना तब सोचेंगे। वहाँ कुछ और लोग भी आने वाले हैं।”
लड़का खुश होता हुआ चला गया। दीपावली के दिन वह बाजार से महंगी खोवे की मिठाई का डिब्बा लेकर उसके घर पहुंचा। वहाँ और भी दो लड़के बैठे थे। लड़की ने उसका स्वागत किया और बोली-”आओ मैं तुम्हारा ही इन्तजार कर रही थी, आओ बैठो।”
लड़का दूसरे प्रतिद्वंदियों को देखकर घबडा गया था और बोला -”नहीं मैं जल्दी में हूँ। मेरी यह मिठाई लो और खाओ तो मेरे दिल को तसल्ली हो जाये।”
लड़की ने कहा-”पहले मैं चेक करूंगी की मिठाई असली खोये की की या नकली की। यह दो भी बैठे हैं इनके भी चेक कर करनी है। यही तुम्हारे अक्ल की परीक्षा होगी। ”
लड़के ने कहा-”असली खोवे की है, उसमे बादाम और काजू भी हैं। ”
लडकी ने आँखें नाचते और उसकी मिठाई की पेटी खोलते हुए पूछा-”खोवा तुम्हारे घर पर बनता है।” लड़का सीना तान कर बोला-”नहीं, पर मुझे पहचान है।”लडकी ने मिठाई का टुकडा मुहँ पर रखा और फिर उसे थूक दिया और चिल्लाने लगी-”यह नकली खोवे की है।”
लड़का घबडा गया और बोला-”पर मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ।”
लडकी ने कहा-‘तभी यह नकली खोवे की मिठाई लाये हो। तुम फेल हो गए। अब तुम जाओ इन दो परीक्षार्थियों की भी परीक्षा लेनी है।”
लड़का अपना मुहँ लेकर लौट आया और बाहर खडा रहा। बाद में एक-एक कर दोनों प्रतिद्वंद्वी भी ऐसे ही मुहँ लटका कर लौट आये। तीनों एक स्वर में चिल्लाए-”इससे तो मिठाई की जगह कुछ और लाते, कम से कम जुदाई का गम तो नहीं पाते।”
हालांकि तीनों को मन ही मन में इस बात की तसल्ली थी की उनमें से कोई भी पास नहीं हुआ था।
नोट-यह एक काल्पनिक व्यंग्य है और किसी व्यक्ति या घटना से इसका कोई लेना-देना नहीं है और किसी की कारिस्तानी से मेल खा जाये तो वही इसके लिए जिम्मेदार होगा।

गीत-संगीत और मोबाइल


मोबाइल का भला संगीत और गाने और बजाने से क्या संबंध हो सकता है? कभी यह प्रश्न हमने अपने आपसे ही नहीं पूछा तो किसी और से क्या पूछते? अपने आप में यह प्रश्न है भी बेतुका। पर जब बातें सामने ही बेतुकी आयेंगी तो ऐसे प्रश्न भी आएंगे।
हुआ यूँ कि उस दिन हम अपने एक मित्र के साथ एक होटल में चाय पीने के लिए गये, वहाँ पर कई लोग अपने मोबाइल फोन हाथ में पकड़े और कान में इयरफोन डालकर समाधिस्थ अवस्था में बैठे और खडे थे। हमने चाय वाले को चाय लाने का आदेश दिया तो वह बोला-” महाराज, आप लोग भी अपने साथ मोबाइल लाए हो कि नहीं?’
हमने चौंककर पूछा कि-”तुम क्या आज से केवल मोबाइल वालों को ही चाय देने का निर्णय किये बैठे हो। अगर ऐसा है तो हम चले जाते हैं हालांकि हम दोनों की जेब में मोबाइल है पर तुम्हारे यहाँ चाय नहीं पियेंगे। आत्म सम्मान भी कोई चीज होती है।”
वह बोला-”नहीं महाराज! आज से शहर में एफ.ऍम.बेंड रेडिओ शुरू हो गया है न! उसे सब लोग मोबाइल पर सुन रहे हैं। अब तो ख़ूब मिलेगा गाना-बजाना सुनने को। आप देखो सब लोग वही सुन रहे हैं। आप ठहरे हमारे रोज के ग्राहक और गानों के शौक़ीन तो सोचा बता दें कि शहर में भी ऍफ़।एम्.बेंड ” चैनल शुरू हो गये हैं।”
” अरे वाह!”हमने खुश होकर कहा-” मजा आ गया!”
“क्या ख़ाक मजा आ गया?” हमारे मित्र ने हमारी तरफ देखकर कहा और फिर उससे बोले-”गाने बजाने का मोबाइल से क्या संबंध है? वह तो हम दोनों बरसों से सुन रहे हैं । यह तो अब इन नन्हें-मुन्नों के लिए ठीक है यह बताने के लिए कि गाना दिखता ही नहीं बल्कि बजता भी है। इन लोगों नी टीवी पर गानों को देखा है सुना कहॉ है, अब सुनेंगे तो समझ पायेंगे कि गीत-संगीत सुनने के लिए होते हैं न कि देखने के लिए। “
हमारे मित्र ने ऐसा कहते हुए अपने पास खडे जान-पहचाने के ऐक लड़के की तरफ इशारा किया था। उसकी बात सुनाकर वह लड़का तो मुस्करा दिया पर वहां कुछ ऐसे लोगों को यह बात नागवार गुजरी जो उन मोबाइल वालों के साथ खडे कौतुक भाव से देख और सुन रहे थे। उनमें एक सज्जन जिनके कुछ बाल सफ़ेद और कुछ काले थे और उनके केवल एक ही कान में इयरफोन लगा था उन्होने अपने दूसरे कान से भी इयर फोन खींच लिया और बोले -”ऐसा नहीं है गाने को कहीं भी और कभी भी कान में सुनने का अलग ही मजा है। आप शायद नहीं जानते।”
हमारे मित्र इस प्रतिक्रिया के लिए तैयार नहीं था पर फिर थोडा आक्रामक होकर बोला-” महाशय! यह आपका विचार है, हमारे लिए तो गीत-संगीत कान में सुनने के लिए नहीं बल्कि कान से सुनने के लिए है। हम तो सुबह शाम रेडियों पर गाने सुनने वाले लोग हैं। अगर अब ही सुनना होगा तो छोटा ट्रांजिस्टर लेकर जेब में रख लेंगे। ऎसी बेवकूफी नहीं करेंगे कि जिससे बात करनी है उस मोबाइल को हाथ में पकड़कर उसका इयरफोन कान में डाले बैठे रहें । हम तो गाना सुनते हुए तो अपना काम भी बहुत अच्छी तरह कर लेते हैं।”
वह सज्जन भी कम नहीं थे और बोले-”रेडियो और ट्रांजिस्टर का जमाना गया और अब तो मोबाइल का जमाना है। आदमी को जमाने के साथ ही चलना चाहिए।”
हमारा मित्र भी कम नहीं था और कंधे उचकाता हुआ बोला-”हमारे घर में तो अभी भी रेडियो और ट्रांजिस्टर दोनों का ज़माना बना हुआ है।अभी तो हम उसके साथ ही चलेंगे।
बात बढ न जाये इसलिये उसे हमने होटल के अन्दर खींचते हुए कहा-”ठीक है! अब बहुत हो गया। चल अन्दर और अपनी चाय पीते हैं।”
हमने अन्दर भी बाहर जैसा ही दृश्य देखा और मेरा मित्र अब और कोई बात इस विषय पर न करे विषय बदलकर हमने बातचीत शुरू कर दीं। मेरा मित्र इस बात को समझ गया और इस विषय पर उसने वहाँ कोई बात भी नहीं की । बाद में बाहर निकला कर बोला-” एक बात मेरी समझ में नहीं आ रही कि यह लोग गीत-संगीत के शौक़ीन है या मोबाइल से सुनने के। देखना यह कुछ दिनों का हे शौक़ है फिर कोई नहीं सुनेगा हम जैसे शौकीनों के अलावा।”
हमने कहा-” यह न तो गीत-संगीत के शौक़ीन है और न ही मोबाइल के! यह तो दिखावे के लिए ही सब कर रहे हैं। देख-सुन समझ सब रहे हैं पर आनंद कितना ले रहे हैं यह पता नहीं।”
हमारे शहर में एक या दो नहीं बल्कि चार एफ।ऍम.बेंड रेडियो शुरू हो रहे है और इस समय उनका ट्रायल चल रहा है। जिसे देखो इसी विषय पर ही बात कर रहा है। मैं खुद बचपन से गाने सुनने का आदी हूँ और दूरदर्शन और अन्य टीवी चैनलों के दौर में भी मेरे पास एक नहीं बल्कि तीन रेडियो-ट्रांजिस्टर चलती-फिरती हालत में है और शायद हम जैसे ही लोग उनका सही आनद ले पायेंगे और अन्य लोग बहुत जल्दी इससे बोर हो जायेंगे। हम और मित्र इस बात पर सहमत थे कि संगीत का आनंद केवल सुनकर एकाग्रता के साथ ही लिया जा सकता है और सामने अगर दृश्य हौं तो आप अपना दिमाग वहां भी लगाएंगे और पूरा लुत्फ़ नहीं उठा पायेंगे।
गीत-संगीत के बारे में तो मेरा मानना है कि जो लोग इससे नहीं सुनते या सुनकर उससे सुख की अनुभूति नहीं करते वह अपने जीवन में कभी सुख की अनुभूति ही नहीं कर सकते। गीतों को लेकर में कभी फूहड़ता और शालीनता के चक्कर में भी नही पड़ता बस वह श्रवण योग्य और हृदयंगम होना चाहिए। गीत-संगीत से आदमी की कार्यक्षमता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार अधिक टीवी देखने के बुरे प्रभाव होते हैं जबकि रेडियो से ऐसा नहीं होता। मैं और मेरा मित्र समय मिलने पर रेडियो से गाने जरूर सुनते है इसलिये हमें तो इस खबर से ही ख़ुशी हुई । जहाँ तक कानों में इयर फोन लगाकर सुनने का प्रश्न है तो मेरे मित्र ने मजाक में कहा था पर मैंने उसे गंभीरता से लिया था कि ‘ गीत-संगीत कानों में नहीं बल्कि कानों से सुना जाता है।’
बहरहाल जिन लोगों के पास मोबाइल है उनका नया-नया संगीत प्रेम मेरे लिए कौतुक का विषय था। घर पहुंचते ही हमने भी अपने ट्रांजिस्टर को खोला और देखा तो चारों चैनल सुनाई दे रहे थे। गाने सुनते हुए हम भी सोच रहे थे-’गीत संगीत का मोबाइल से क्या संबंध ?