Tag Archives: literature

वीडियो पर प्रयोग के लिए एक चर्चा का एकल प्रयास


वीडियो पर प्रयोग के लिए एक चर्चा का एकल प्रयास

http://youtu.be/D1ev-ZO6FCI

ज़िन्दगी के रास्ते-हिंदी कविता



ज़िन्दगी  के रास्ते पर अपने कदम कदम
फूंक फूंककर कर रखना
अगर पांव फिसले तो तुम्हारी चीत्कार
कोई नहीं सुन पायेगा,
भीड़ तो होगी चारों तरफ
मतलबपरस्ती में फंसी है सभी की सोच
अपने मसलों में उलझा है सभी का ध्यान
कोई बंद लेगा अपने कान
कोई अनुसनी कर चला जायेगा।
कहें दीपक बापू
ज़माने के लोग
सुनते नहीं है
इसका मतलब सभी को  समझना न बहरां
बस, उनके कान पर खुदगर्जी का है पहरा
अपनी दिल और दिमाग  की लगाम
अपने हाथ में रखना
गैर का क्या धोखा देंगे
अपना भी बेवफाई न कर पायेगा।
————————
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक ‘भारतदीप”,ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak ‘BharatDeep’,Gwalior

http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

८.हिन्दी सरिता पत्रिका

तुलसी के दोहे-गुणी होने पर अहंकारी होना बिडंबनापूर्ण


           सामान्य मनुष्य अपनी प्रकृतियों के वशीभूत होकर काम करता है, जबकि ज्ञानी मनुष्य उनको पहचानते हुए अपने विवेक से किसी काम को करने या न करने का निर्णय लेता है। देखा जाये तो समाज में ज्ञानी मनुष्य अत्यंत कम होते हैं पर दूसरे की अपकीर्ति के माध्यम से स्वयं की कीर्ति अपने मुख से बखान करने वालों की संख्या बहुत होती है। उससे भी अधिक संख्या तो दूसरों की निंदा करने वालों की होती है जो यह मानकर चलते हैं कि दूसरे के दोष गिनाकर हम यह साबित कर सकते हैं कि हमारे पास गुण है।
          आपसी वार्तालाप में लोग एक दूसरे से कहते हैं कि ‘‘अमुक आदमी में वह दोष है’, ‘अमुक आदमी यह बुरा काम करता है’, अमुक आदमी इस तरह का गंदा विचार पालता है’, या फिर ‘अमुक आदमी गंदा भोजन खाता है या पानी पीता है’। इस तरह आदमी यह साबित करना चाहता है कि अमुक बुराई ये वह स्वयं दोषमुक्त है। ज्ञानी आदमी अपना आत्ममंथन करता है। वह दूसरों की बजाय अपनी कमियां ढूंढकर उनको दूर करने का प्रयास करता है।
महाकवि तुलसीदास कहते हैं कि
————–
‘तुलसी’ जे कीरति चहहिं, पर की कीरति खोइ।
तिनके मुंह मसि लागहैं, मिटिहि न मरिहै धोइ।।
         ‘‘दूसरों की निंदा कर स्वयं प्रतिष्ठा पाने का विचार ही मूर्खतापूर्ण है। दूसरे को बदनाम कर अपनी तारीफ गाने वालों के मुंह पर ऐसी कालिख लगेगी जिसे  कितना भी धोई जाये मिट नहीं सकती।’’
तनु गुन धन महिमा धरम, तेहि बिनु जेहि अभियान।
तुलसी जिअत बिडम्बना, परिनामहु गत जान।।
        ‘‘सौंदर्य, सद्गुण, धन, प्रतिष्ठा और धर्म भाव न होने पर भी जिनको अहंकार है उनका जीवन ही बिडम्बना से भरा है। उनकी गत भी बुरी होती है।
          सच बात तो यह है कि आधुनिक समय में आदमी धन, प्रतिष्ठा और बाहुबल अर्जित करने के प्रयास में लगा रहता है। न उसके व्यक्तित्व में आकर्षण न व्यवहार में गुण दिखता हैं और न ही व्यसनों की वजह से प्रतिष्ठा और धन भी उसके स्थिर रहता है। इसके बावजूद अधिकतर लोगों के पास अहंकार होता है। जो लोग जुआ, शराब या यौन अपराधों में लिप्त होते हैं उनको अगर नैतिकता का उपदेश दिया जाये तो वह उत्तेजित होते हैं। इतना ही नहीं अनेक लोग तो ऐसे हैं जो अपने में ढेर सारे दोष होने के बावजूद दूसरों की निंदा में लगकर अपनी स्थिति हास्यास्पद बना देते हैं।
ज्ञानी आदमी इन सबसे परे होकर जीवन व्यतीत करता है। उसे मालुम होता है कि गुण और ज्ञान के संचय के लिये समय कम होता है तब परनिंदा में उसे नष्ट करना बेकार है।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

हिन्दी भाषा का महत्व-हिन्दी दिवस पर हास्य कविताएँ (hindi bhasha ka mahatva-hindi diwas par hasya kavita)


हिन्दी दिवस पर
उन्होंने हिन्दी का महत्व बताया,
अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त होने का
अपना संकल्प अंग्रेजी में जताया।
——–
हिन्दी दिवस पर
अपनी मातृभाषा की उनको
बहुत याद आई,
इसलिये ही
‘हिन्दी इज वैरी गुड’ भाषा के
नारे के साथ दी बार बार दुहाई।
————
शिक्षक ने पूछा छात्रों से
‘बताओ अंग्रेजी बड़ी भाषा है या हिन्दी
जब हम लिखने और बोलने की
दृष्टि से तोलते हैं।’
एक छात्र ने जवाब दिया कि
‘वी हैव आल्वेज स्पीकिंग इन हिन्दी
यह हम सच बोलते हैं।’
———

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com

यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका

कुदरत का करिश्मा-हिन्दी व्यंग्य क्षणिकायें (kudrat ka karishma-hindi vyangya kavitaen)


नदियां यूं ही नहीं देवियां कही जाती हैं,
तभी तक सहती हैं
अपने रास्तों पर आशियानों बनना
जब तक इंसानों की तरह सहा जाता है,
बादलों से बरसा जो थोड़ा पानी
उफनती हुई अतिक्रमण विरोधी अभियान चलाती हैं।
——–
यह कुदरत का ही करिश्मा है कि
विकास के मसीहाओं को भी
उसका सहारा मिल जाता है,
जब तक आगे बढ़ने का सहारा मिलता है
झूठे आंकडों से
वह अपनी छाती फुलाते हैं
बरसती है जब कहर की बाढ़
खुलती है पोल
तब दोष देते हैं कुदरत को
फिर राहत से कमाई की उम्मीद में
उनका चेहरा अधिक खिल जाता है।
———–

कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

इश्क पर हास्य कविता-हिन्दी काव्य प्रस्तुति (ishq par hasya kavita-hindi comic poem)


पुरानी प्रेमिका मिली अपने
पुराने प्रेमी कवि से बहुत दिनों बाद
और बोली,
‘कहो क्या हाल हैं,
तुम्हारी कविताओं की कैसी चाल है,
सुना है तुम मेरी याद में
विरह गीत लिखते थे,
तुम पर सड़े टमाटर और फिंकते थे,
अच्छा हुआ तुमसे शादी नहीं की
वरना पछताती,
कितना बुरा होता जब बेस्वादी चटनी से
बुरे आमलेट ही जीवन बिताती,
तुम भी दुःखी दिखते हो
क्या बात है,
पिचक गये तुम्हारे दोनों गाल हैं,
मेरी याद में विरह गीत लिखते तुम्हारा
इतना बुरा क्यों हाल है।’
सुनकर कवि बोला
‘तुमसे विरह होना अच्छा ही रहा था,
उस पर मेरा हर शेर हर मंच पर बहा था,
मगर अब समय बदल गया है,
कन्या भ्रुण हत्याओं ने कर दिया संकट खड़ा,
लड़कियों की हो गयी कमी
हर नवयुवक इश्क की तलाश में परेशन है बड़ा,
जिनकी जेब भरी हुई है
वह कई जगह साथ एक जगह जुगाड़ लगाते हैं,
जिनके पास नहीं है खर्च करने को
वह केवल आहें भर कर रह जाते हैं,
विरह गीतों का भी हाल बुरा है,
हर कोई सफल कवि हास्य से जुड़ा है,
इश्क हो गयी है बाज़ार में बिकने की चीज,
पैसा है तो करने में लगता है लज़ीज,
एक से विरह हो जाने से कौन रोता है,
दौलत पर इश्क यूं ही फिदा होता है,
दिल से नहीं होते इश्क कि टूटने पर कोई हैरान हो,
कल दूसरे से टांका भिड़ जाता है
फिर क्यों कोई विरह गीत सुनने के लिये परेशान हो,
जिन्होंने बस आहें भरी हैं
उनको भी इश्क पर हास्य कविता
सुनने में मजा आता है,
आशिक माशुकाओं का खिल्ली उड़ाने में
उनका दिल खिल जाता है,
कन्या भ्रुण हत्याओं ने कर दिया कचड़ा समाज का,
इश्क पर फिल्में बने या गीत लिखे जा रहे ज्यादा
मगर तरस रहा इसके लिये आम लड़का आज का,
तुम्हारे विरह का दर्द तो अभी अंदर है
मगर उस पर छाया अब हास्य रस का जाल है।
———–

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com

यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका

स्वतंत्रता दिवस का एक दिन-व्यंग्य कविता कविता (one day of independence-hidi satire poem)


अपने ही गुलामों की
भीड़ एकत्रित कर आज़ादी पर
शिखर पुरुष करते हैं झंडा वंदन।
अपने खून को पसीना करने वाले
मेहनतकशों के लिये हमदर्दी के
कुछ औपचारिक शब्द बोल देते हैं
उसके हाथ भी खोल देते हैं
बस! एक दिन
फिर उसके पसीने का तेल बनाने के लिए
डाल देते हैं पांव में बंधन।।
———-

कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका