पुरानी प्रेमिका मिली अपने
पुराने प्रेमी कवि से बहुत दिनों बाद
और बोली,
‘कहो क्या हाल हैं,
तुम्हारी कविताओं की कैसी चाल है,
सुना है तुम मेरी याद में
विरह गीत लिखते थे,
तुम पर सड़े टमाटर और फिंकते थे,
अच्छा हुआ तुमसे शादी नहीं की
वरना पछताती,
कितना बुरा होता जब बेस्वादी चटनी से
बुरे आमलेट ही जीवन बिताती,
तुम भी दुःखी दिखते हो
क्या बात है,
पिचक गये तुम्हारे दोनों गाल हैं,
मेरी याद में विरह गीत लिखते तुम्हारा
इतना बुरा क्यों हाल है।’
सुनकर कवि बोला
‘तुमसे विरह होना अच्छा ही रहा था,
उस पर मेरा हर शेर हर मंच पर बहा था,
मगर अब समय बदल गया है,
कन्या भ्रुण हत्याओं ने कर दिया संकट खड़ा,
लड़कियों की हो गयी कमी
हर नवयुवक इश्क की तलाश में परेशन है बड़ा,
जिनकी जेब भरी हुई है
वह कई जगह साथ एक जगह जुगाड़ लगाते हैं,
जिनके पास नहीं है खर्च करने को
वह केवल आहें भर कर रह जाते हैं,
विरह गीतों का भी हाल बुरा है,
हर कोई सफल कवि हास्य से जुड़ा है,
इश्क हो गयी है बाज़ार में बिकने की चीज,
पैसा है तो करने में लगता है लज़ीज,
एक से विरह हो जाने से कौन रोता है,
दौलत पर इश्क यूं ही फिदा होता है,
दिल से नहीं होते इश्क कि टूटने पर कोई हैरान हो,
कल दूसरे से टांका भिड़ जाता है
फिर क्यों कोई विरह गीत सुनने के लिये परेशान हो,
जिन्होंने बस आहें भरी हैं
उनको भी इश्क पर हास्य कविता
सुनने में मजा आता है,
आशिक माशुकाओं का खिल्ली उड़ाने में
उनका दिल खिल जाता है,
कन्या भ्रुण हत्याओं ने कर दिया कचड़ा समाज का,
इश्क पर फिल्में बने या गीत लिखे जा रहे ज्यादा
मगर तरस रहा इसके लिये आम लड़का आज का,
तुम्हारे विरह का दर्द तो अभी अंदर है
मगर उस पर छाया अब हास्य रस का जाल है।
———–
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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प्यार एक अनुभूति जिसे व्यक्त करने से अधिक उसे हृदय में सृजित करने की आवश्यकता है। अपने मुख से शब्दों में व्यक्त करना या फिर चूमना प्यार के अभिव्यक्त रूप हैं पर करने वाला उससे लाभ कितना ले पाता है इस पर विचार करना चाहिये। कई बार तो उसे हानि भी होती है। मानव मन में विचरने वाले नफरत और घृणा दोनोें भाव बाहर आकर अभिव्यक्त होना चाहते हैं, मगर उससे लाभ और हानि दोनों ही हो सकते हैं।
एक मित्र ब्लाग लेखक ने एक ईमेल भेजा जिसमें उन्होंने अमेरिकी लोगों को सूअर और उनके के बच्चों को चूमते हुए अनेक फोटो थे। उन फोटो में सुअर और उनके बच्चों के मूंह से टपक रही लार साफ दिख रही थी। उस पर लिखा था कि ‘सूअर ज्वर का कारण’। यहां यह स्पष्ट कर देना चाहिये कि स्वाइन फ्लू के भारत में जो मरीज पाये गये हैं वह सभी विदेश से वापस आये हैं। चूंकि यह विदेश से आयातित बीमारी है इसलिये भारत में इसकी चर्चा खूब हो रही है और यहां गर्मी और बरसात में फैलने वाली बीमारियों के समाचार नेपथ्य में चले गये हैं। यहां बस विदेश से जुड़ी कोई बात होना चाहिये वह देशी बातों से अधिक चर्चित हो जाती है। इस देश में स्वाईन फ्लू के मरीज सौ से अधिक नहीं है पर देश के लोगों के सावधानी रखने की सलाह दी जा रही है। स्पष्टतः इसके पीछे बाजार की कोई योजना हो सकती है। मलेरिया, टीवी और पीलिया की दवाईयां तो यह आराम से बिक जाती हैं पर स्वाइल फ्लू की दवाईयों के लिये यहां कोई बाजार नहीं है।
बहरहाल मित्र ब्लाग लेखक द्वारा भेजे गये फोटो का अध्ययन करने पर यह लगा कि लोग भले ही बड़े प्यार से सूअर के मूंह को चूम रहे थे पर वह खतरनाक था। उनके प्यार की अभिव्यक्ति मन को प्रसन्न करने की बजाय हैरान कर रही थी।
इस तरह की बाह्य प्रेम अभिव्यक्ति पश्चिम की देन हैं। चूमना, लिपटना और नाचना प्यार के अभिव्यक्त किये जाने वाले रूप हैं और इसमें कोई बुराई भी नहीं है मगर यही पश्चिम के वैज्ञानिक ही अपने शोधों से इसके दोष गिनाते हैं। अब उनके कुछ शोधों से प्राप्त जानकारी पढ़िये जो समय समय पर उनके द्वारा दी जाती रही है।
1.जिसे चूमा जाता है उसकी उम्र पांच मिनट कम हो जाती है।
2.चूमने वाले के गंदे कीटाणु उसके ही प्रिय आदमी के शरीर में पहुंच जाते हैं।
3.अधिकतर पशुओं में रैबीज होता है। यह रैबीज उनके शरीर में नहीं बल्कि उनके मूंह से लार के रूप में बहने के साथ होठों पर हमेशा रहता है। उस लार पर हाथ या पांव रखना भी ठीक नहीं होता।
4.कुछ पशु तेज स्वांस लेते और छोड़ते हैं और उससे उनके गंदे कीटाणु सांस के माध्यम से मानव शरीर में प्रवेश कर उसे सांस की बीमारी प्रदान करते हैं।
मित्र द्वारा भेज गये फोटो बच्चे, बड़े, स्त्री पुरुष अपने होंठ बाकायदा शूकर के मूंह से लगा रहे थे। पालतू होने के कारण वह सूअर साफ सुथरे थे पर उनके मूंह की लार से मनुष्यों के होंठ लगते देख मित्र द्वारा लिखा गया यह संदेश दिमाग में बज रहा था ‘सूअर ज्वर का कारण’।
एक बात यहां स्पष्ट कर दें कि यहां पशुओं के प्रति कोई हिकारत का भाव हमारे मन में नहीं है। सभी जीव सर्वशक्तिमान के बनाये हुए हैं और सभी को यहां समान रूप से जीवन जीने का अधिकार है। पशु पशुओं की अनेक प्रजातियों का लुप्त होना मानव सभ्यता के लिये शर्म की बात है। किसी भी पशु को पालना पुण्य का काम है पर प्यार का वह रूप जो अंततः हमारी देह के लिये दुःख का कारण बने वह कोई बुद्धिमानी नहीं है।
हां, सच है कि पास में मनुष्य रहे या पशु उससे प्रेम हो जाता है। कई बार अपने पास खड़ा वह निरीह पशु जब हमारी तरफ प्रेम से देखता है तो कोई पत्थर दिल ही उसकी अनदेखी करेगा। प्रेम न केवल अपनी बल्कि अपने प्रिय जीव की भी आयु बढ़ाता है और इसलिये उसकी अभिव्यक्ति होना भी आवश्यक है।
प्यार की अभिव्यक्ति का स्पर्श सभी जीवों को प्रसन्नता देता है। इन पशुओं को प्यार करने का सबसे अच्छा तरीका यह बताया गया है कि अपने हाथ से उनकी गर्दन के नीचे हाथ फिराना चाहिये क्योंकि वहीं से वह अच्छी तरह प्यार की अनुभूति कर सकते हैं। अधिकतर पालतू पशुओं के शरीर पर घने बाल होते है इसलिये सिर या पीठ पर हाथ फेरने से उन्हें वह अभिव्यक्ति नहीं मिलती जो गर्दन के नीचे-जहां बाल नहीं होते-फेरने से मिलती है।
वैसे प्यार हृदय में बनने वाला वह भाव है जिसकी अनुभूति का लाभ स्वयं को भी कम नहीं होता पर इसके लिये यह जरूरी है कि अपने प्रिय जीव को देखकर जब प्यार अंदर पैदा होता है तो पहले अपनी देह में उठती तरंगों को ध्यान में रखें। अंदर खून की लहरों में उसकी अनुभूति करना चाहिये। एकदम उतावली में प्रेम की अभिव्यक्ति करने से उसका लाभ समाप्त भी हो जाता है। परिस्थितियों के अनुसार प्यार को व्यक्त करना और छिपाना ं पड़ता है। प्यार खाने या पीने की चीज नहीं है कि उसे मूंह से अंदर ले जायें। वह तो एक ऐसा अदृश्य भाव है जो मन को प्रफुल्लित करता है। यह अनुभूति बाहर के दृश्यों से भले आती है पर उसका उद्गम स्थल तो अंदर ही है। उसका कोई भौतिक स्वरूप नहीं है। स्वार्थ से बने संबंधों में अनेक बार प्यार आता है पर फिर स्वतः ही नष्ट भी हो जाता है।
भारत में सूअर पालने की परंपरा नहीं है पर कुत्ता पाला जाता है। अनेक बार देखा गया है कि घर के बच्चे उन पालतू कुतों के मूंह से मूंह लगा देते हैं। कुछ समय पहले एक रिपोर्ट देखी थी जिसमें बताया गया कि 90 प्रतिशत लोगों को रैबीज पालतू कुतों की वजह से होता है। बहरहाल यह तो सर्वशक्तिमान की बनाई दुनियां हैं। जिसमें रहने वाले हर जीव में घृणा और प्यार के भाव रहते हैं पर इंसान को थोड़ा सतर्कता बरतना चाहिये। सच बात तो यह है कि प्यार तो बस एक अनूभूति जिसे न हाथ से पकड़ा जा सकता है न मूंह से खाया जा सकता हैं।
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जहां तक मेरी जानकारी है खबर में यही था कि अमेरिका में राष्ट्रपति पद उम्मीदवार ओबामा अपनी जेब में रखने वाले पर्स में कुछ पवित्र प्रतीक रखते हैं और उसमें सभवतः हनुमान जी की मूर्ति भी है, पर इसकी पुष्टि नहीं हो पायी है।
यह खबर देश के प्रमुख समाचार माध्यम ऐसे प्रकाशित कर रहे हैं जैसे कि कोई उनके हाथ कोई खास खबर लग गयी है और देश का कोई खास लाभ होने वाला है। यहां यह स्पष्ट कर दूं कि जिस अखबार में मैंने यह खबर पढ़ी उसमें साफ लिखा था कि ‘इसकी पुष्टि नहंी हो पायी।‘
जिस तरह इस खबर का प्रचार हो रहा है उससे लगता है कि अगर इसकी पुष्टि हो जाये तो फिर ओबामा की तस्वीरों की यहां पूजा होने लगेगी। जब पुष्टि नहीं हो पायी है तब यह शीर्षक आ रहे हैं ‘हनुमान भक्त ओबामा’, ओबामा करते हैं हनुमान जी में विश्वास’ तथा ‘हनुमान जी की मूति ओबामा के पर्स में’ आदि आदि। एक खबर जिसकी पुष्टि नहीं हो पायी उसे जबरिया सनसनीखेज और संवेदनशीन बनाने का प्रयास। यह कोई पहला प्रयास नहीं है।
अगर मान लीजिये ओबामा हनुमान जी में विश्वास रखते भी हैं तो क्या खास बात है? और नहीं भी करें तो क्या? वैसे हम कहते हैं कि भगवान श्रीराम और हनुमान जी हिंदूओं के आराध्यदेव हैं पर इसका एक दूसरा रूप भी है कि विश्व में जितने भी भगवान के अवतार या उनके संदेश वाहक हुए हैं इन्हीं प्रचार माध्यमों से सभी जगह प्रचार हुआ है और उनके व्यक्तित्व और कृतित्व में जो आकर्षण है उससे कोई भी प्रभावित हो सकता है। भगवान श्रीराम, श्रीकृष्ण और हनुमान के चरित्र विश्व भर में प्रचारित हैं और कोई भी उनका भक्त हो सकता है। श्रीरामायण और श्रीगीता पर शोध करने में कोई विदेशी या अन्य धर्म के लोग भी पीछे नहीं है।
ओबामा हनुमान जी भक्त हैं पर इस देश में असंख्य लोग उनके भक्त हैं। मैं हर शनिवार और मंगलवार को मंदिर अवश्य जाता हूं और वहां इतनी भीड़ होती है कि लगता है कि अपने स्वामी भगवान श्रीराम से अधिक उनके सेवक के भक्त अधिक हैं। कई जगह भगवान के श्रीमुख से कहा भी गया है कि मुझसे बड़ा तो मेरा सेवक और भक्त है-हनुमान जी के चरित्र को देखकर यह प्रमाणित भी होता है। भगवान श्रीराम की पूजा अर्चना के लिए कोई दिन नियत हमारे नीति निर्धारकों ने तय नहीं किया इसलिये उनके मंदिरों में लोग रोज आते जाते हैं और किसी खास पर्व के दिन पर ही उनके मंदिरों में भीड़ होती है और उस दिन भी हनुमान के भक्त ही अधिक आते हैं। यानि भारत के लोगों में हृदय में भगवान श्रीराम और हनुमान जी के लिये एक समान श्रद्धा है और उनकी कृपा भी है। फिर ओबामा को लेकर ऐसा प्रचार क्यों?
लोगों को यह विश्वास दिलाने की कोशिश बेकार है कि देखो हमारे भगवान सब जगह पूजे जा रहे हैं इसलिये फिक्र की बात नहीं है अभी किसी दूसरे देश में किसी पर की है कभी हम पर भी करेंगे। इस प्रचार तो वही प्रभावित होंगे कि जिनको मालुम ही नहीं भक्ति होती क्या है? भक्ति कभी प्रचार और दिखावे के लिये नहीं होती। इतना शोर मच रहा है कि जैसे ओबामा ने पर्स में हनुमान जी मूर्ति रख ली तो अब यह प्रमाणित हो गया है कि हनुमान जी वाकई कृपा करते हैं। मगर इस प्रमाण की भी क्या आवश्यकता इस देश में है? यहां ऐसे एक नहीं हजारों लोग मिल जायेंगे जो बतायेंगे कि किस तरह हनुमान जी की भक्ति से उनको लाभ होते हैं। जिन लोगों में भक्ति भाव नहीं आ सकता उनके लिये यह प्रमाण भी काम नहीं करेगा। भगवान श्रीराम के निष्काम भाव से सेवा करते हुए श्री हनुमान जी ने उनके बराबर दर्जा प्राप्त कर लिया-जहां भगवान श्रीराम का मंदिर होगा वहां हनुमान जी की मूर्ति अधिकतर होती है पर हनुमान जी मंदिर में भगवान श्रीराम की मूर्ति हो यह आवश्यक नहीं है- पर ओबामा उनकी तस्वीर पर्स में रखकर क्या बनने वाले हैं। पांच साल अधिक से अधिक दस साल अमेरिका के राष्ट्रपति बनने के अलावा उनके पास कोई उपलब्धि नहीं रहने वाली है। तात्कालिक रूप से यह उपलब्धि अधिक लगती है पर इतिहास की दृष्टि से कोई अधिक नहीं है। अमेरिका के कई राष्ट्रपति हुए हैं जिनके नाम हमें अब याद भी नहीं रहते। फिर अगर उनके हाथ सफलता हाथ लगती है तो वह किसकी कृपा से लगी मानी जायेगी। जहां तक मेरी जानकारी है तीन अलग-अलग प्रतीकों की बात की जा रही है जिनमें एक हनुमान जी की मूर्ति भी है। फिर यह प्रचार क्यों?
भारत सत्य का प्रतीक है और अमेरिका माया का। माया जब विस्तार रूप लेती है तो मायावी लोग सत्य के सहारे उसे स्थापित करने का प्रयास करते हैं। जिनके पास इस समय माया है उनको अमेरिका बहुत भाता है इसलिये वहां की हर खबर यहां प्रमुखता से छपती है। अगर वह धार्मिक संवेदनशीलता उत्पन्न करने वाली हो तो फिर कहना ही क्या? एक बात बता दूं कि इस बारे में मैंने एक ही अखबार पढ़ा है और उसमें इसकी पुष्टि न करने वाली बात लिखी हुई। तब संदेह होता है कि यह सच है कि नहीं। और है भी तो मेरा सवाल यह है कि इसमें खास क्या है? क्या हनुमान जी की भक्ति करने वाले मुझ जैसे लोगों को किसी क्रे प्रमाण या विश्वास के सहारे की आवश्यकता है?
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मंडप में पहुंचने से पहले ही
दूल्हे ने दहेज़ में
मोटर साइकल देने की माँग उठाई
उसके पिता ने दुल्हन के पिता को
इसकी जानकारी भिजवाई
मच गया तहलका
दुल्हन के पिता ने
आकर दूल्हे से किया आग्रह
शादी के बाद मोटर साइकल देने का
दिया आश्वासन
पर दूल्हे ने अपनी माँग
तत्काल पूरी करने की दोहराई
मामला बिगड़ गया
दूल्हे के साथ आए बरातियों ने
दुल्हन पक्ष की कंगाल कहकर
जमकर खिल्ली उडाई
दूल्हन का बाप रोता रहा ख़ून के आंसू
दूल्हे का जमकर हंसता रहा
आख़िर कुछ लोगों को आया तरस
और बीच-बचाव के लिए दोनों की
आपस में बातचीत कराई
मोटर साइकल जितने पैसे
नकद देने पर सहमति हो पाई
दुल्हन के सहेलियों ने देखा मंजर
पूरी बात उसे सुनाई
वह दनदनाती सबके सामने आयी
और बाप से बोली
‘पापा आपसे शादी से पहले ही
मैंने शर्त रखी थी कि मेरे
दूल्हे के पास होनी चाहिए कार
पर यह तो है बेकार
मोटर साईकिल तक ही सोचता है
क्या खरीदेगा कार
मुझे यह शादी मंजूर नहीं है
तोड़ तो यह शादी और सगाई’
अब दूल्हा पक्ष पर लोग हंस रहे थे
‘अरे, लड़का तो बेकार है
केवल मोटर साइकिल तक की सोचता है’
बाद में क्या करेगा अभी से ही
दुल्हन के बाप को नोचता है
क्या करेंगे ऐसा जमाई’
बात बिगड़ गयी
अब लड़के वाले गिडगिडाने लगे थे
अपनी मोटर साइकल की माँग से
वापस जाने लगे थे
दूल्हा गया दुल्हन के पास
और बोला
‘मेरी शराफत समझो तुम
मोटर साइकल ही मांगी
मैं कार भी माँग सकता था
तब तुम क्या मेरे पास हवाई जहाज
होने का बहाना बनाती
अब मत कराओ जग हँसाई’
दुल्हन ने जवाब दिया
‘ तुम अभी भी अपनी माँग का
अहसान जता रहे हो
साइकिल भी होती तुम्हारे पास
मैं विवाह से इनकार नहीं करती
आज मांग छोड़ दोगे फिर कल करोगे
मैंने तुममें देखा है कसाई’
दूल्हा अपना मुहँ लेकर लॉट गया
इस तरह शादी नही हो पायी
——————-
दीपक भारतदीप द्धारा
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शैतान कभी इस जहां में मर ही नहीं सकता। वजह! उसके मरने से फरिश्तों की कदर कम हो जायेगी। इसलिये जिसे अपने के फरिश्ता साबित करना होता है वह अपने लिये पहले एक शैतान जुटाता है। अगर कोई कालोनी का फरिश्ता बनना चाहता है तो पहले वह दूसरी कालोनी की जांच करेगा। वहां किसी व्यक्ति का-जिससे लोग डरते हैं- उसका भय अपनी कालोनी में पैदा करेगा। साथ ही बतायेगा कि वह उस पर नियंत्रण रख सकता है। शहर का फरिश्ता बनने वाला दूसरे शहर का और प्रदेश का है तो दूसरे प्रदेश का शैतान अपने लिये चुनता है। यह मजाक नहीं है। आप और हम सब यही करते हैं।
घर में किसी चीज की कमी है और अपने पास उसके लिये लाने का कोई उपाय नहीं है तो परिवार के सदस्यों को समझाने के लिये यह भी एक रास्ता है कि किसी ऐसे शैतान को खड़ा कर दो जिससे वह डर जायें। सबसे बड़ा शैतान हो सकता है वह जो हमारा रोजगार छीन सकता है। परिवार के लोग अधिक कमाने का दबाव डालें तो उनको बताओं कि उधर एक एसा आदमी है जिससे मूंह फेरा तो वह वर्तमान रोजगार भी तबाह कर देगा। नौकरी कर रहे हो तो बास का और निजी व्यवसाय कर रहे हों तो पड़ौसी व्यवसायी का भय पैदा करो। उनको समझाओं कि ‘अगर अधिक कमाने के चक्कर में पड़े तो इधर उधर दौड़ना पड़ा तो इस रोजी से भी जायेंगे। यह काल्पनिक शैतान हमको बचाता है।
नौकरी करने वालों के लिये तो आजकल वैसे भी बहुत तनाव हैं। एक तो लोग अब अपने काम के लिये झगड़ने लगे हैं दूसरी तरफ मीडिया स्टिंग आपरेशन करता है ऐसे में उपरी कमाई सोच समझ कर करनी पड़ती है। फिर सभी जगह उपरी कमाई नहीं होती। ऐसे में परिवार के लोग कहते हैं‘देखो वह भी नौकरी कर रहा है और तुम भी! उसके पास घर में सारा सामान है। तुम हो कि पूरा घर ही फटीचर घूम रहा है।
ऐसे में जबरदस्ती ईमानदारी का जीवन गुजार रहे नौकरपेशा आदमी को अपनी सफाई में यह बताना पड़ता है कि उससे कोई शैतान नाराज चल रहा है जो उसको ईमानदारी वाली जगह पर काम करना पड़ रहा है। जब कोई फरिश्ता आयेगा तब हो सकता है कि कमाई वाली जगह पर उसकी पोस्टिंग हो जायेगी।’
खिलाड़ी हारते हैं तो कभी मैदान को तो कभी मौसम को शैतान बताते हैं। किसी की फिल्म पिटती है तो वह दर्शकों की कम बुद्धि को शैताना मानता है जिसकी वजह से फिल्म उनको समझ में नहीं आयी। टीवी वालों को तो आजकल हर दिन किसी शैतान की जरूरत पड़ती है। पहले बाप को बेटी का कत्ल करने वाला शैतान बताते हैं। महीने भर बाद वह जब निर्दोष बाहर आता है तब उसे फरिश्ता बताते हैं। यानि अगर उसे पहले शैतान नहीं बनाते तो फिर दिखाने के लिये फरिश्ता आता कहां से? जादू, तंत्र और मंत्र वाले तो शैतान का रूप दिखाकर ही अपना धंध चलाते हैं। ‘अरे, अमुक व्यक्ति बीमारी में मर गया उस पर किसी शैतान का साया पड़ा था। किसी ने उस पर जादू कर दिया था।’‘उसका कोई काम नहीं बनता उस पर किसी ने जादू कर दिया है!’यही हाल सभी का है। अगर आपको कहीं अपने समूह में इमेज बनानी है तो किसी दूसरे समूह का भय पैदा कर दो और ऐसी हालत पैदा कर दो कि आपकी अनुपस्थिति बहुत खले और लोग भयभीत हो कि दूसरा समूह पूरा का पूरा या उसके लोग उन पर हमला न कर दें।’
अगर कहीं पेड़ लगाने के लिये चार लोग एकत्रित करना चाहो तो नहीं आयेंगे पर उनको सूचना दो कि अमुक संकट है और अगर नहीं मिले भविष्य में विकट हो जायेगता तो चार क्या चालीस चले आयेंगे। अपनी नाकामी और नकारापन छिपाने के लिये शैतान एक चादर का काम करता है। आप भले ही किसी व्यक्ति को प्यार करते हैं। उसके साथ उठते बैैठते हैं। पेैसे का लेनदेन करते हैं पर अगर वह आपके परिवार में आता जाता नहीं है मगर समय आने पर आप उसे अपने परिवार में शैतान बना सकते हैं कि उसने मेरा काम बिगाड़ दिया। इतिहास उठाकर देख लीजिये जितने भी पूज्यनीय लोग हुए हैं सबके सामने कोई शैतान था। अगर वह शैतान नहीं होता तो क्या वह पूज्यनीय बनते। वैसे इतिहास में सब सच है इस पर यकीन नहीं होता क्योंकि आज के आधुनिक युग में जब सब कुछ पास ही दिखता है तब भी लिखने वाले कुछ का कुछ लिख जाते हैं और उनकी समझ पर तरस आता है तब लगता है कि पहले भी लिखने वाले तो ऐसे ही रहे होंगे।
एक कवि लगातार फ्लाप हो रहा था। जब वह कविता करता तो कोई ताली नहीं बजाता। कई बार तो उसे कवि सम्मेलनों में बुलाया तक नहीं जाता। तब उसने चार चेले तैयार किये और एक कवि सम्मेलन में अपने काव्य पाठ के दौरान उसने अपने ऊपर ही सड़े अंडे और टमाटर फिंकवा दिये। बाद में उसने यह खबर अखबार में छपवाई जिसमें उसके द्वारा शरीर में खून का आखिरी कतरा होने तक कविता लिखने की शपथ भी शामिल थी । हो गया वह हिट। उसके वही चेले चपाटे भी उससे पुरस्कृत होते रहे।
जिन लड़कों को जुआ आदि खेलने की आदत होती है वह इस मामले में बहुत उस्ताद होते हैं। पैसे घर से चोरी कर सट्टा और जुआ में बरबाद करते हैं पर जब उसका अवसर नहीं मिलता या घर वाले चैकस हो जाते हैं तब वह घर पर आकर वह बताते हैं कि अमुक आदमी से कर्ज लिया है अगर नहीं चुकाया तो वह मार डालेंगे। उससे भी काम न बने तो चार मित्र ही कर्जदार बनाकर घर बुलवा लेंगे जो जान से मारने की धमकी दे जायेंगे। ऐसे में मां तो एक लाचार औरत होती है जो अपने लाल को पैसे निकाल कर देती है। जुआरी लोग तो एक तरह से हमेशा ही भले बने रहते हैं। उनका व्यवहार भी इतना अच्छा होता है कि लोग कहते हैं‘आदमी ठीक है एक तरह से फरिश्ता है, बस जुआ की आदत है।’
जुआरी हमेशा अपने लिये पैसे जुटाने के लिये शैतान का इंतजाम किये रहते हैं पर दिखाई देते हैं। उनका शैतान भी दिखाई देता है पर वह होता नहीं उनके अपने ही फरिश्ते मित्र होते हैं। आशय यह है कि शैतान अस्तित्व में होता नहीं है पर दिखाना पड़ता है। अगर आपको परिवार, समाज या अपने समूह में शासन करना है तो हमेशा कोई शैतान उसके सामने खड़ा करो। यह समस्या के रूप में भी हो सकता है और व्यक्ति के रूप में भी। समस्या न हो तो खड़ी करो और उसे ही शैतान जैसा ताकतवर बना दो। शैतान तो बिना देह का जीव है कहीं भी प्रकट कर लो। किसी भी भेष में शैतान हो वह आपके काम का है पर याद रखो कोई और खड़ा करे तो उसकी बातों में न आओ। यकीन करो इस दुनियां में शैतान है ही नहीं बल्कि वह आदमी के अंदर ही है जिसे शातिर लोग समय के हिसाब से बनाते और बिगाड़ते रहते हैं।
एक आदमी ने अपने सोफे के किनारे ही चाय का कप पीकर रखा और वह उसके हाथ से गिर गया। वह उठ कर दूसरी जगह बैठ गया पत्नी आयी तो उसने पूछा-‘यह कप कैसे टूटा?’उसी समय उस आदमी को एक चूहा दिखाई दिया। उसने उसकी तरफ इशारा करते हुए कहा-‘उसने तोड़ा!’पत्नी ने कहा-‘आजकल चूहे भी बहुत परेशान करने लगे हैं। देखो कितना ताकतवर है उसकी टक्कर उसे कम गिर गया। चूहा है कि उसके रूप में शेतान?
वह चूहा बहुत मोटा था इसलिये उसकी पत्नी को लगा कि हो सकता है कि उसने गिराया हो और आदमी अपने मन में सर्वशक्तिमान का शुक्रिया अदा कर रहा कि उसने समय पर एक शैतान-भले ही चूहे के रूप में-भेज दिया।’याद रखो कोई दूसरा व्यक्ति भी आपको शैतान बना सकता है। इसलिये सतर्क रहो। किसी प्रकार के वाद-विवाद में मत पड़ो। कम से कम ऐसी हरकत मत करो जिससे दूसरा आपको शैतान साबित करे। वैसे जीवन में दृढ़निश्चयी और स्पष्टवादी लोगों को कोई शैतान नहीं गढ़ना चाहिए, पर कोई अवसर दे तो उसे छोड़ना भी नहीं चाहिए। जैसे कोई आपको अनावश्यक रूप से अपमानित करे या काम बिगाड़े और आपको व्यापक जनसमर्थन मिल रहा हो तो उस आदमी के विरुद्ध अभियान छेड़ दो ताकि लोगों की दृष्टि में आपकी फरिश्ते की छबि बन जाये। सर्वतशक्तिमान की कृपा से फरिश्ते तो यहां कई मनुष्य बन ही जाते हैं पर शैतान इंसान का ही ईजाद किया हुआ है इसलिये वह बहुत चमकदार या भयावह हो सकता है पर ताकतवर नहीं। जो लोग नकारा, मतलबी और धोखेबाज हैं वही शैतान को खड़ा करते हैं क्योंकि अच्छे काम कर लोगों के दिल जीतने की उनकी औकात नहीं होती।
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यूं तो शराब के कई जाम हमने पिये
दर्द कम था पर लेते थे हाथ में ग्लास
उसका ही नाम लिये
कभी इसका हिसाब नहीं रखा कि
दर्द कितना था और कितने जाम पिये
कई बार खुश होकर भी हमने
पी थी शराब
शाम होते ही सिर पर
चढ़ आती
हमारी अक्ल साथ ले जाती
पीने के लिये तो चाहिए बहाना
आदमी हो या नवाब
जब हो जाती है आदत पीने की
आदमी हो जाता है बेलगाम घोड़ा
झगड़े से बचती घरवाली खामोश हो जाती
सहमी लड़की दूर हो जाती
कौन मांगता जवाब
आदमी धीरे धीरे शैतान हो जाता
बोतल अपने हाथ में लिये
शराब की धारा में बह दर्द बह जाता है
लिख जाते है जो शराब पीकर कविता
हमारी नजर में भाग्यशाली समझे जाते हैं
हम तो कभी नहीं पीकर लिख पाते हैं
जब पीते थे तो कई बार ख्याल आता लिखने का
मगर शब्द साथ छोड़ जाते थे
कभी लिखने का करते थे जबरन प्रयास
तो हाथ कांप जाते थे
जाम पर जाम पीते रहे
दर्द को दर्द से सिलते रहे
इतने बेदर्द हो गये थे
कि अपने मन और तन पर ढेर सारे घाव ओढ़ लिये
जो ध्यान लगाना शूरू किया
छोड़ चली शराब साथ हमारा
दर्द को भी साथ रहना नहीं रहा गवारा
पल पल हंसता हूं
हास्य रस के जाम लेता हूं
घाव मन पर जितना गहरा होता है
फिर भी नहीं होता असल दिल पर
क्योंकि हास्य रस का पहरा होता है
दर्द पर लिखकर क्यों बढ़ाते किसी का दर्द
कौन पौंछता है किसके आंसू
दर्द का इलाज हंसी है सब जानते हैं
फिर भी नहीं मानते हैं
दिल खोलकर हंसो
मत ढूंढो बहाने जीने के लिये
………………………
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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप
दीपक भारतदीप द्धारा
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एक टीवी चैनल पर प्याज के बढती कीमतों पर लोगों के इन्टरव्यू आ रहे थे, और चूंकि उसमें सारा फोकस मुंबई और दिल्ली पर था इसलिये वहाँ के उच्च और मध्यम वर्ग के लोगों से बातचीत की जा रही थी। प्याज की बढती कीमतें देश के लोगों के लिए और खास तौर से अति गरीब वर्ग के लिए चिंता और परेशानी का विषय है इसमें कोई संदेह नहीं है पर जिस तरह उसका रोना उसके ऊंचे वर्ग के लोग रोते हैं वह थोडा अव्यवाहारिक और कृत्रिम लगता है। उच्च और मध्यम वर्ग के लोग यही कह रहे थे किश्प्याज जो पहले आठ से दस रूपये किलो मिल रहा था वह अब पच्चीस रूपये होगा। इसे देश का गरीब आदमी जिसका रोटी का जुगाड़ तो बड़ी मुशिकल से होता है और वह बिचारा प्याज से रोटी खाकर गुजारा करता है, उसका काम कैसे चलेगाश्?
अब सवाल है कि क्या वह लोग प्याज की कीमतों के बढने से इसलिये परेशान है कि इससे गरीब सहन नहीं कर पा रहे या उन्हें खुद भी परेशानी है? या उन्हें अपने पहनावे से यह लग रहा था कि प्याज की कीमतों के बढने पर उनकी परेशानी पर लोग यकीन नहीं करेंगे इसलिये गरीब का नाम लेकर वह अपने साक्षात्कार को प्रभावी बना रहे थे। हो सकता है कि टीवी पत्रकार ने अपना कार्यक्रम में संवेदना भरने के लिए उनसे ऐसा ही आग्रह किया हो और वह भी अपना चेहरा टीवी पर दिखाने के लिए ऐसा करने को तैयार हो गये हौं। यह मैं इसलिये कह रहा हूँ कि एक बार मैं हनुमान जी के मंदिर गया था और उस समय परीक्षा का समय था। उस समय कुछ भक्त विधार्थी मंदिर के पीछे अपने रोल नंबर की पर्ची या नाम लिखते है ताकि वह पास हो सकें। वहां ऐक टीवी पत्रकार एक छात्रा को समझा रहा थाश्आप बोलना कि हम यहाँ पर्ची इसलिये लगा रहे हैं कि हनुमान जीं हमारी पास होने में मदद करें।श्
उसने और भी समझाया और लडकी ने वैसा ही कैमरे की सामने आकर कहा। वैसे उस छात्र के मन में भी वही बातें होंगी इसमें कोई शक नहीं था पर उसने वही शब्द हूबहू बोले जैसे उससे कहा गया था।
प्याज पर हुए इस कार्यक्रम में जैसे गरीब का नम लिया जा रहा था उससे तो यही लगता था कि यह बस खानापूरी है। मेरे सामने कुछ सवाल खडे हुए थे-
क्या इसके लिए कोई ऐसा गरीब टीवी वालों को नहीं मिलता जो अपनी बात कह सके। केवल उन्हें शहरों में उच्च और मध्यम वर्ग के लोग ही दिखते हैं, और अगर गरीब नहीं दिखते तो यह कैसे पता लगे कि गरीब है भी कि नहीं। जो केवल प्याज से रोटी खाता है उसका पहनावा क्या होगा यह हम समझ सकते हैं तो यह टीवी पत्रकार जो अपने परदे पर आकर्षक वस्त्र पहने लोगों को दिखाने के आदी हो चुके हैं क्या उससे सीधे बात कराने में कतराते हैं जो वाकई गरीब है। उन्हें लगता है कि गरीब के नाम में ही इतनी ही संवेदना है कि लोग भावुक हो जायेंगे तो फिर फटीचर गरीब को कैमरे पर लाने की क्या जरूरत है। जो गरीब है उसे बोलने देना का हक ही क्या है उसके लिए तो बोलने वाले तो बहुत हैं-क्या यही भाव इन लोगों का रह गया है। आजादी के बाद से गरीब का नाम इतना आकर्षक है कि हर कोई उसकी भलाई के नाम पर राजनीति और समाज सेवा के मैदान में आता है पर किसी वास्तविक गरीब के पास न उन्हें जाते न उसे पास आते देखा जाता है। जब कभी पैट्रोल और डीजल की दाम बढ़ाये जाते है तो मिटटी के तेल भाव इसलिये नही बढाए जाते क्योंकि गरीब उससे स्टोव पर खाना पकाते हैं। जब कि यह वास्तविकता है कि गरीबों को तो मिटटी का तेल मिलना ही मुश्किल हो जाता है। देश में ढ़ेर सारी योजनाएं गरीबों के नाम पर चलाई जाती हैं पर गरीबों का कितना भला होता है यह अलग चर्चा का विषय है पर जब आप अपने विषय का सरोकार उससे रख रहे हैं तो फिर उसे सामने भी लाईये। प्याज की कीमतों से कोई मध्यम वर्ग कम परेशान नहीं है और अब तो मेरा मानना है कि मध्यम वर्ग के पास गरीबों से ज्यादा साधन है पर उसका संघर्ष कोई गरीब से कम नहीं है क्योंकि उसको उन साधनों के रखरखाव पर भी उसे व्यय करने में कोई कम परेशानी नहीं होती क्योंकि वह उनके बिना अब रह नहीं सकता और अगर गरीब के पास नहीं है तो उसे उसके बिना जीने की आदत भी है। पर अपने को अमीरों के सामने नीचा न देखना पडे यह वर्ग अपनी तकलीफे छिपाता है और शायद यही वजह है कि ऐक मध्यम वर्ग के व्यक्ति को दूसरे से सहानुभूति नहीं होती और इसलिये गरीब का नाम लेकर वह अपनी समस्या भी कह जाते है और अपनी असलियत भी छिपा जाते हैं। यही वजह है कि टीवी पर गरीबों की समस्या कहने वाले बहुत होते हैं खुद गरीब कम ही दिख पाते हैं। सच तो यह है कि गरीबों के कल्याण के नारे अधिक लगते हैं पर उनके लिये काम कितना होता है यह सभी जानते हैं।
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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप
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बहुत दिन बाद ऑफिस में
आये कर्मचारी ने पुराना
कपडा उठाया और
टेबल-कुर्सी और अलमारी पर
धूल हटाने के लिए बरसाया
धूल को भी ग़ुस्सा आया
और वह उसकी आंखों में घुस गयी
क्लर्क चिल्लाया तो धूल ने कहा
‘धूल ने कहा हर जगह प्रेम से
कपडा फिराते हुए मुझे हटाओ
मैं खुद जमीन पर आ जाऊंगी
मुझे इंसानों जैसा मत समझो
कि हर अनाचार झेल जाऊंगी
इस तरह हमले का मैंने हमेशा
प्रतिकार किया है
बडों-बडों के दांत खट्टे किये हैं
जब भी कोई मेरे सामने आया ‘
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अपने मन में है बस व्यापार
बाहर ढूंढते हैं प्यार
मन में ख्वाहिश
सोने, चांदी और धन
के हों भण्डार
पर दूसरा करे प्यार
मन की भाषा में हैं लाखों शब्द
पर बोलते हुए जुबान कांपती है
कोई सुनकर खुश हो जाये
अपनी नीयत पहले यह भांपती है
हम पर हो न्यौछावर
पर खुद किसी को न दें सहारा
बस यही होता है विचार
इसलिए वक्त ठहरा लगता है
छोटी मुसीबत बहुत बड़ा कहर लगता है
पहल करना सीख लें
प्यार का पहला शब्द
पहले कहना सीख लें
तो जिन्दगी में आ जाये बहार
—————–
यह कविता/लघुकथा पाठ मूल रूप से इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर लिखा गया है। इस पर कोई विज्ञापन नहीं है। न ही यह किसी वेबसाइट पर प्रकाशन के लिये इसकी अनुमति दी गयी है।
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कवि एवं संपादक-दीपक भारतदीप
उधार की बैसाखियाँ
आकाश में चमकते सितारे भी
नहीं दूर कर पाते दिल का अंधियारा
जब होता वह किसी गम का मारा
चन्द्रमा भी शीतल नहीं कर पाता
जब अपनों में भी वह गैरों जैसे
अहसास की आग में जल जाता
सूर्य की गर्मी भी उसमें ताकत
नहीं पैदा कर पाती
जब आदमी अपने जज्बात से हार जाता
कोई नहीं देता यहाँ मांगने पर सहारा
इसलिए डटे रहो अपनी नीयत पर
चलते रहो अपनी ईमान की राह पर
इन रास्तों की शकल तो कदम कदम पर
बदलती रहेगी
कहीं होगी सपाट तो कहीं पथरीली होगी
अपने पाँव पर चलते जाओ
जीतता वही है जो उधार की बैसाखियाँ नहीं माँगता
जिसने ढूढे हैं सहारे
वह हमेशा ही इस जंग में हारा
यह कविता/लघुकथा पाठ मूल रूप से इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर लिखा गया है। इस पर कोई विज्ञापन नहीं है। न ही यह किसी वेबसाइट पर प्रकाशन के लिये इसकी अनुमति दी गयी है।
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कठपुतली का खेल दिखाने वाला एक व्यक्ति अपना काम बंद कर स्टेडियम के बाहर मूंगफली का ठेला लगाकर बैठ गया था। बचपन में उसका खेल देखने वाले व्यक्ति ने जब उसे देखा तो पूछा-‘ तुमने कठपुतली का खेल दिखाना बंद कर यह मूंगफली का ठेला लगाना कब से शुरू कर दिया ?’
वह बोला-‘बरसों हो गये। जब से इन असली पुतलों का खेल शूरू हुआ है तब से अब लकड़ी के नकली पुतलों का खेल छोड़कर इधर ही आते हैं। इसलिए मैं भी इधर आ गया।
वह आदमी हंस पड़ा तो उसने कहा-‘‘आप अखबार तो पड़ते होंगे। यह हाड़मांस के असली पुतले भी कोई न तो अपनी बोलते हैं न चाल चलते हैं। इनकी भी डोर किसी नट के हाथ में ही तो है। स्टेडियम में लोग तालियां बजाते हैं पर किसके लिये? जो खेल रहे हैं वह क्या अपने मजे के लिये खेल रहे हैं? नहीं वह पैसा कमाने के लिये खेल रहे हैं। आप फिल्मों में हीरो-हीरोइन के देख लीजिये वह भी तो किसी के कहने पर डायलाग बोलते हैं, नाचते हैं और झगड़े के सीन करते हैं। बड़े लोग जिनके पास किसी के पास जाने की फुर्सत नहीं है इन मैचों और संगीत कार्यक्रमों को देखने आते हैं। भला हमारे खेल को कौन देखता? इसलिये अब मैं स्टेडियम के बाहर आते खिलाडियों, अभिनेताओं और दर्शकों को ऐसे ही देखता हूं जैसे वह मेरे पुतलों को देखते थे।
उस आदमी ने कहा-तो तुम अब खेल देखते हो? वह भी बाहर बैठकर।
वह बोला-‘‘दर्शक तो मैं ही हूं जो इतने सारे पुतलों को देख रहा हूं। बाकी सब तो करतब दिखाने वाले हैं। हां, हमारे खेल में हम दिखते थे पर इनके नट कौन है उनको कोई नहीं देख पाता। यह सब कैमरे का कमाल है।’’
————————————————–
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माफ़ी किस बात की-हिन्दी शायरी
अपनी जिंदगी में कामयाबी पाने का नशा
आदमी के सिर कुछ यूं चढ़ जाता
कि नाकामी झेलने की मनस्थिति में नहीं आता
जजबातों के खेल में
कुछ ऐसा भी होता है
कि जिसकी चाहत दिल में होती
वही पास नहीं आता है
इस जिंदगी के अपने है दस्तूर
अपने दस्तूरों पर चलने वाला
आदमी हमेशा पछताता है
……………………..
अपने वादे से मुकर कर उसने कहा
‘यार माफ करना मैंने तुम्हें धोखा दिया’
हमने कहा
‘माफी किस बात की
भला कब हमने तुम पर यकीन किया’
………………………………………………. .
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अपने हाथ से अपने ही सिर पर
पहन लेते हैं कोई भी ताज
किससे लिया और कैसे
सवालों के जवाब में रखते राज
मेहनत की राह चलकर
कौन तकलीफें उठाना चाहता
सभी बांधते हैं तारीफों के पुल
एक दूसरे के लिये
जीवन की सफलता का मार्ग
इस पार से उस पार जाकर पाता
सस्ते में बिकने से आता नहीं आदमी बाज
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इस लेख अन्य वेब पृष्ट हैं
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2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
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कवि एवं संपादक-दीपक भारतदीप
किसी की तारीफों के पुल बांधने से
सफलता का आसमान मिल गया होता
तो फिर धरती होती आकाश
और आकाश वीरान होता
भला कौन यहां अन्न के लिये बीज बोता
कौन बहाता पसीना
कौन कपड़ा बनता होता
मेहनतकश आसमान में इसलिये नहीं उड़ पाते
क्योंकि तारीफ लायक कोई उनके पास नहीं होता
हर कोई उनके पास खून चूसने के लिए होता
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मेरी नाव डुबोने वाले बहुत हैं
पर उनकी याद कभी नहीं आती
मझधार में भंवर के बीच आकर जो
किनारे तक पहुंचा जाते
फिर नजर नहीं आते
ऐसे मित्रों की याद मुझे सताती
घाव करने के लिए इस जहां में बहुत हैं
जो बदन से रिसता लहू देखकर
जोर से मुस्कराते हैं
जिन्होंने घावों को सहलाया
जब तक दूर नहीं हुआ दर्द
अपना साथ निभाया
फिर ऐसे गायब हुए कि दिखाई न दिए
आँखें उनको देखने को तरस जाती हैं
इस जिन्दगी के खेल बहुत हैं
नाखुश लोगों से दूर नहीं जाने देती
जो तसल्ली देते हैं
उनको आँखों से दूर ले जाती है
शायद इसलिए दुनिया रंगरंगीली कहलाती हैं
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