झगड़ा भी एक शय है जो
बड़ा पाव की तरह बाजार में बिकती।
अमन के आदी लोगों में चैन कहां
कहीं शोर देखने की चाहत उनमें दिखती।
इसलिये लिख वह चीज जो
बाजार में बड़े दाम पर बिकती।
अठखेलियां करती कवितायें
मन भाती कहानियां और
अमन के गीत लिखना है तो
अपने दिल के सुकूल के लिये लिख
शोर से दूर एक अजूबा दिख
दुनियां में उनके चाहने वाले
गुणीजनों की अधिक नहीं गिनती।
अमन का पैगाम लिखकर क्या करेगा
जब तक उसमें शोर नहीं भरेगा
सौदागरों ने रची है तयशुदा जंग
उस पर रख अपने ख्याल
जिससे बचे बवाल
सजा दिया है उन्होंने बाजार
वहां शब्दों की जंग महंगी बिकती।
सोचता है अपना
दूसरा ही है तेरा सपना
नहीं बहना विचारों की सतही धारा में
तो तू अपना ही लिख
गहरे में डूबकर नहीं ढूंढ सके मोती
वही नकली ख्याल बहा रहे हैं
सब तरफ बवाल मचा रहे हैं
अपनी सोच की गहराई में उतर जा
कभी न कभी तेरे नाम का भी बजेगा डंका
सच्चे मोती की माला
कोई यूं ही नहीं फिंकती।
………………………………
लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकाएं भी हैं। वह अवश्य पढ़ें।
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका
4.अनंत शब्दयोग
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप
दीपक भारतदीप द्धारा
|
लेखक, सन्देश, हिन्दी, India, internet, mast ram में प्रकाशित किया गया
|
Also tagged अनुभूति, अभिव्यक्ति, दीपक भारतदीप, मनोरंजन, मस्तराम, मस्ती, लेखक, सन्देश, हास्य कविता, हिंदी साहित्य, हिन्दी, हिन्दी पत्रिका, Deepak Bharatdeep, hasya, hindi poem, India, internet, mast ram, mastram, mati, shayri, sher, web bhaskar, web dunia, web duniya, web express, web jagran, web panjabkesri
|
सच बात तो यह है कि लोग अब कल्पना और सच का अंतर ही भूल गये हैं। टीवी धारावाहिकों हों या किताबों में शब्द और चित्र जिनमें सनसनी या रोमांच होता है उसमें दर्शक और पाठक इस तरह लिप्त हो जाते हैं जैसे कि कोई सच देख रहे हों। कई लोग तो टीवी धारावाहिकों को इतना खलपात्रों सच मान लेते हैं कि वह उनको रात में सताते हैं। सभी लोग जानते हैं कि खेल हो या फिल्म उनमें पूर्वनिर्धारित योजना के अनुसार लोगों में कौतूहल पैदा करने के वाले दृश्य बनाये जा रहे हैं। फिर भी वह उस निरर्थक कौतूहल में लिप्त हो जाते हैं।
इसके पीछे संगीत का उपयोग किस तरह होता है यह तो कोई विशारद ही समझ सकता है। अब तो यह हालत है कि क्रिकेट में चैके और छक्के पर लोगों में अधिक कौतूहल पैदा करने के लिये संगीत और नृत्य का सहारा लिया जाने लगा है।
इस तरह का निरर्थक कौतूहल करने की आदत हमारी अज्ञानता का ही प्रमाण है। हमारे पुराने ऋषि और मुनि इस तरह के कौतूहल से बचने की सलाह देते हैं। फिर आजकल बाजार इतना ताकतवर हो गया है कि तो एक के बाद एक नये कौतूहल पूर्ण दृश्य पैदा करता जा रहा है। एक धारावाहिक या यौन सामग्री से परिपूर्ण वेबसाईट पर प्रतिबंध लगाने से कुछ नहीं होने वाला। यह राज्य की नाकामी से अधिक हमारे समाज में गुरु की भूमिका निभाने की नाकामी है। सच बात तो यह है कि प्रतिबंध लगाना ही हमारे समाज की बौद्धिक क्षमताओं का प्रमाण बनता जा रहा है। यौन सामग्री से संपन्न अनेक वेबसाईट या धारावाहिक भी इस देश के समाज का कुछ नहीं बिगाड़ सकते अगर हमारे ं गुरु का दायित्व निभाने वाले लोग पूरी क्षमता और ईमानदारी से काम करते।
वैसे इस तरह की वेबसाईट या धारावाहिकों को देखने वाला एक छोटा तबका है जो हमारे देश की इतनी बड़ी बृहद जनसंख्या को देखते हुए बहुत कम है। वह भी ऐसा ही है जिसके पास समय और पैसा अधिक है और उसे अपना समय बिताने के लिय इस तरह के निरर्थक कौतूहल के अलावा अन्य कोई मार्ग नजर नहीं आता।
इसी निरर्थक कौतूहल पर हमारे प्राचीन ऋषि मनुमहाराज का संदेश यहां वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या समेत प्रस्तुत है।
न नृत्येन्नैव गायेन वादित्राणि वादयेत्।
नास्फीट च क्ष्वेडेन्न च रक्तो विरोधयेत्।।
हिंदी में भावार्थ-मनुमहाराज कहते हैं कि नाचना गाना, वाद्य यंत्र बजाना ताल ठोंकना, दांत पीसकर बोलना ठीक नहीं और भावावेश में आकर गधे जैसा शब्द नहीं बोलना चाहिये।
न कुर्वीत वृथा चेष्टां न वार्य´्जलिना पिबेत्।
नौत्संगे भक्षयेद् भक्ष्यानां जातु स्यात्कुतूहली।।
हिंदी में भावार्थ-मनुमहाराज कहते हैं कि जिस कार्य को करने से अच्छा फल नहीं मिलता हो उसे करने का प्रयास व्यर्थ है। अंजली में भरकर पानी और गोद में रखकर भोजन करना ठीक नहीं है। बिना प्रयोजन का कौतूहल नहीं करना चाहिए।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-जब आदमी तनाव रहित होता है तब वह कई ऐसे काम करता है जो उसकी देह और मन के लिये हितकर नहीं होते। लोग अपने उठने-बैठने, खाने-पीने, सोने-चलने और बोलने-हंसने पर ध्यान नहीं देते जबकि मनुमहाराज हमेशा सतर्क रहने का संदेश देते हैं। अक्सर लोग अपनी अंजली से पानी पीते हैं और बातचीत करते हुए खाना गोद में रख लेते हैं-यह गलत है।
जब से फिल्मों का अविष्कार हुआ है लोगों का न केवल काल्पनिक कुतूहल की तरफ रुझान बढ़ा है बल्कि वह उन पर चर्चा ऐसे करते हैं जैसे कि कोई सत्य घटना हो। फिल्मों की वजह से संगीत के नाम पर शोर के प्रति लोग आकर्षित होते हैं।
मनुमहाराज इनसे बचने का जो संदेश देते है उनके अनुसार नाचना, गाना, वाद्य यंत्र बजाना तथा गधे की आवाज जैसे शब्द बोलना अच्छा नहीं है। फिल्में देखना बुरा नहीं है पर उनकी कहानियों, अभिनेताओं, अभिनेत्रियों को देखकर कौतूहल का भाव पालन व्यर्थ है इससे आदमी का दिमाग जीवन की सच्चाईयों को सहने योग्य नहीं रह जाता।
नाचने गाने और वाद्य यंत्र बजाना या बजाते हुए सुनना अच्छा लगता है पर जब उनसे पृथक होते हैं तो उनका अभाव तनाव पैदा करता है। इसके अलावा अगर इस तरह का मनोरंजन जब व्यसन बन जाता है तब जीवन में अन्य आवश्यक कार्यों की तरफ आदमी का ध्यान नहीं जाता। लोग बातचीत में अक्सर अपना प्रभाव जमाने के लिये किसी अन्य का मजाक उड़ाते हुए बुरे स्वर में उसकी नकल करते हैं जो कि स्वयं उनकी छबि के लिये ठीक नहीं होता। कहने का तात्पर्य यह है कि उठने-बैठने और चलने फिरने के मामले में हमेशा स्वयं पर नियंत्रण करना चाहिए।
……………………
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
लुब्धस्यासंविभागित्वान्न युद्धयन्तेःलुजीविनः
लुब्धानुजीवितैरेव दानभिन्र्नौनर््िनहन्यते
लोभी के धन देने के कारण उसके अनुजीवी (धन लेकर काम करने वाले) युद्ध नहीं करते हैं और लोभी दान न देने के कारण उनके द्वारा ही मार दिया जाता है।
सन्त्यज्जते प्रकृतिभिर्विरक्तप्रकृतिर्युधि
सुखाभिज्जयो भवति विषयेऽप्यतिसक्त्मान्
जो राजा युद्ध से विरक्त होता है उसे सभी छोड़ जाते हैं और जो विषयों में अति आसक्ति पुरुष है उसे बड़े आराम से जीत लिया जाता है।
अनेकचित्तमन्त्रस्तु द्वेष्यो भवति मन्त्रणाम्
अनवस्थितचित्तत्वात्कायै तैः स उपेक्ष्यते
अनेक मंत्रियों की सम्मति के कारण राजा का मन दूषित हो जाता है और अनवस्थित चित्त होने से कार्य में मंत्री उसकी उपेक्षा कर देते हैं।
दीपक भारतदीप द्धारा
|
adhyatm, हिंदी साहित्य, hindi, Relegion में प्रकाशित किया गया
|
Also tagged adhyatm, आसक्ति, इंद्रियां, ज्ञान, युद्ध, विद्वान, सम्मति, हिंदी साहित्य, hindi, Relegion, yuddh
|
कहते को कहिं जान दे, गुरू की सीख तू लेय
साकट जन और स्वान को, फेरि जवाब न देय
कविवर रहीम कहते है कि कहने वालों को कुछ भी कहने दो अपने गुरू की सीख लें और फिर अपने मार्ग पर चलें। अज्ञानी लोग और श्वान के भौंकने पर ध्यान न दें
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-लोगों का काम है कहना। सच तो यह है कि अपने जीवन में वह लोग कोई भी उपलब्धि प्राप्त नहीं कर पाते जो जो इस तरह कहने पर ध्यान देकर कोई कदम नहीं उठाते। अपने गुरू से चाहे वह आध्यात्मिक हो या सांसरिक ज्ञान देने वाला उसे शिक्षा ग्रहण कर अपने जीवन पथ पर बेखटके चल देना चाहिए। अगर उसके बाद अगर किसी के कहने पर ध्यान देते हैं तो अकारण व्यवधान पैदा होगा और अपने मार्ग पर चलने में विलंब करने से हानि भी हो सकती है। एक बात मान कर चलिए यहां ज्ञान बघारने वालों की कमी नहीं है। ऐसे लोग जिन्हें किसी भक्ति या सांसरिक क्षेत्र का खास ज्ञान नहीं होता वह खालीपीली अपनी सलाहें देते हैं और अपने अनुभव भी ऐसे बताते हैं जो उनके खुद नहीं बल्कि किसी अन्य व्यक्ति ने उनको सुनाये होते हैं।
इतना ही नहीं जब अपने माग पर चलेंगे तो दस लोग टोकेंगे। आपके कार्यो की मीनमेख निकालेंगे और तमाम तरह के भय दिखाऐंगे। इन सबकी परवाह मत करो और चलते जाओ। यही जीवन का नियम है। हम देख सकते हैं जो लोग अपने जीवन में सफल हुए हैं उन्होंने अन्य लोगों की क्या अपने लोगों भी परवाह नहीं की। जिन्होनें परवाह की ऐसे असंख्य लोगों को हम अपने आसपास देख सकते हैं।
यह इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति-पत्रिका’ पर प्रकाशित है। यह व्याख्या मौलिक है तथा इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अनुभूति पत्रिका’ पर लिखा गया है। इस पर कोई विज्ञापन नहीं है। न ही यह किसी वेबसाइट पर प्रकाशन के लिये इसकी अनुमति दी गयी है।
इसके अन्य वेब पृष्ट हैं
1. शब्दलेख सारथी
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
दीपक भारतदीप द्धारा
|
अध्यात्म, आलेख, मस्तराम, लेखक, सन्देश, साहित्य, bharat, dharm, hindi article, hindu, India, internet में प्रकाशित किया गया
|
Also tagged abhivyakti, adhyaatm, anubhuti, अध्यात्म, अनुभूति, अभिव्यक्ति, आलेख, इंटरनेट, चिंतन, दीपक भारतदीप, मस्तराम, लेखक, सन्देश, साहित्य, हिन्दी पत्रिका, bharat, Deepak Bharatdeep, dharm, friends, hindi article, hindu, India, internet, rahim, Religion, Uncategorized, web bhaskar, web dunia, web duniya, web jagran
|