अपने कुछ ब्लाग/पत्रिका का नामकरण हमने मस्तराम के नाम पर आज कर ही दिया। आज होली का पर्व है और एक लेखक के नाते ऐसा समय हमारे लिये अकेले चिंतन करने का होता है। पिछले दो वर्षों से हम अंतर्जाल पर जूझ रहें पर अभी तक फ्लाप बने हुए हैं। हिंदी के सभी ब्लाग जबरदस्त हिट पाते जा रहे हैं और हम है कि ताकते रह जाते हैं।
यह बात यह ठीक है जो हिट हैं वह हमसे अच्छा और प्रासंगिक लिखते हैं पर और एक लेखक मन इस बात को कहां मानता है कि हम खराब लिखते हैं। इधर हमसे पुराने ब्लाग नित नयी बातें सामने रखकर विचलित कर देते हैं तो फिर दिमाग में आता है कि कोई ऐसी रणनीति बनाओ कि खुद भी हिट हो जायें। बहुत दिन से संकोच हो रहा था पर आज सारा संकोच त्याग कर अपने उन ब्लाग/पत्रिकाओं में अपने नाम के आगे मस्तराम शब्द जोड़ ही दिया जिन पर पहले लिखकर हटा लिया था।
दरअसल हुआ यूं कि पुराने ब्लाग लेखकों ने अपने पाठों में बताया कि इंटरनेट पर हिंदी विषयों के शब्द गूगल के सर्च इंजिनों में बहुत कम ढूंढे जाते जाते हैं-आशय यह है कि चाहे रोमन लिपि में हो या देवनागरी लिपि में लोग इंटरनेट पर हिंदी पढ़ने के बहुत कम इच्छुक हैं। वैसे हमने स्वयं सर्च इंजिनों के ट्रैंड में जाकर यह बात पहले भी देखी थी और उसी आधार पर अपनी रणनीति बनाते रहे पर सफलता नहीं मिली। कल फिर गूगल के सर्च इंजिन ट्रैंड को देखा तो यथावत स्थिति दिखाई दी। वैसे हमने यह तो पहले ही देख लिया था कि मस्त राम शब्द की वजह से पाठक अधिक ही मिलते हैं। अपने एक ब्लाग पर हमने अपने नाम के आगे मस्त राम लिखकर छोड़ दिया तो देखा कि एक महीने तक नहीं लिखने पर भी वहां पाठक अच्छी संख्या में आते हैं और वह अपने अधिक पाठकों की संख्या के कीर्तिमान को स्वयं ही ध्वस्त करता जाता है जबकि सामान्य ब्लाग तरसते लगते हैं। हमारा यह ब्लाग बिना किसी फोरम की सहायता के ही 6500 से अधिक पाठक जुटा चुका है। एक अन्य ब्लाग भी तीन हजार के पास पहुंच गया था पर वहां से जैसे ही मस्तराम शब्द हटाया वह अपने पाठक खो बैठा।
ऐसे में सोचा कि जिन ब्लाग पर हमने ‘मस्त राम’ जोड़कर पाठक जुटाये और फिर हटा लिया तो क्यों न उनको पुराना ही रूप दिया जाये? एक मजे की बात यह है कि हमने मस्त राम का शब्द उपयोग किसी उद्देश्य को लेकर नहीं किया था। हमारी नानी हमको इसी नाम से पुकारती थी। जब ब्लाग@पत्रिका बनाना प्रारंभ किया तो बस ऐसे ही यह नाम उपयोग में लिया। बाद में समय के साथ अनेक अनुभव हुए तब पता लगा कि उत्तर प्रदेश में यह नाम अधिक लोकप्रिय रहा है और धीरे धीरे पूरे देश में फैल रहा है।
इस होली पर बैठे ठाले यह ख्याल आया कि क्यों न हम साल भर तक अपनी स्वर्गीय नानी द्वारा प्रदत्त प्यार का नाम मस्त राम का प्रयोग करते रहेंगे। वैसे वर्डप्रेस के हमारे अनेक ब्लाग स्वतः ही पाठक जुटा रहे हैं पर संख्या स्थिर हैं।
हमने अनेक शब्दों का प्रयोग करके देखा तो भारी निराशा हाथ लगी पर साथ में आशा की किरण जाग्रत हुई। लोगों का भगवान राम के प्रति लगाव है और सर्च इंजिनों में रोमन में उनका नाम लिखकर तलाश होती रहती है। जिन टैगों का हम उपयोग करते हैं उनका कोई ग्राफ नहीं मिला। तय बात है कि उनकी संख्या अधिक नहीं है। जहां तक मस्त राम का सवाल है तो हमारे सामान्य ब्लाग@पत्रिका में जो टैग मस्त राम के नाम पर है वहां भी पाठक पहुंचते हैं।
फिल्मी हीरोईनों के नाम पर सर्च इंजिनों में भारत के इंटरनेट सुविधाभोगी भीड़ लगाये हुए हैं। हैरानी होती है यह देखकर! टीवी, रेडियो और अखबारों में उनके नाम और फोटो देखकर भी उनका मन नहीं भरता। कहते हैं कि परंपरागत प्रचार माध्यमों से ऊबकर भारत के लोग इंटरनेट की तरफ आकर्षित हो रहे हैं पर उनका यह रवैया इस बात को दर्शाता कि उनकी मानसिकता में बदलाव केवल साधन तक ही सीमित है साध्य के स्वरूप में बदलाव में उनकी रुचि नहीं हैं। अब इसके कारणों में जाना चाहिये। इसका कारण यह है कि हिंदी में मौलिक, स्वतंत्र और नया लिखने वाले सीमित संख्या में है। अभी तक लोग या तो दूसरों की बाहर लिखी रचनायें यहां लिख रहे हैं या अनुवाद प्रस्तुत कर अपना ब्लाग सजाते हैं। अगर मौलिक लेखक है तो शायद वह इतना रुचिकर नहीं है जितना होना चाहिये। इसका कारण यह भी है कि अंतर्जाल पर दूसरे के लिखे की नकल चुरा लिये जाने का पूरा खतरा है दूसरा यह कि मौलिक लेखक के हाथ से लिखने और टाईप करने में स्वाभाविक रूप से अंतर आ जाता है। ऐसे में आम पाठकों की कमी से मनोबल बढ़ता नहीं है इसलिये बड़ी रचनायें लिखना समय खराब करना लगता है। जब यह पता लगता है कि हिंदी में नगण्य पाठक है तो ऐसे ब्लाग लेखक निराश हो ही जाते जिनके लिये यहां न नाम है न नामा। इतना ही नहीं कुछ वेबसाइटें तो ऐसी हैं जो ब्लाग लेखकों के टैग और श्रेणियों के सहारे सर्च इंजिनों में स्वयं को स्थापित कर रही हैं। हिंदी के चार फोरमों के लिये तो कोई शिकायत नहीं की जा सकती पर कुछ वेबसाईटें इस तरह व्यवहार कर रहीं हैं जैसे कि ब्लाग लेखक उनके लिये कच्चा माल हैं। यह सही है कि उनकी वजह से भी बहुत सारे पाठक आ रहे हैं पर सवाल यह है कि इससे ब्लाग लेखक को क्या लाभ है?
यह सच है कि अंतर्जाल पर हिंदी की लेखन यात्रा शैशवकाल में है। लिखने वाले भी कम है तो पढ़ने वाले भी कम। ऐसे में ब्लाग लेखक के लिये यह भी एक रास्ता है कि वह अपने लिखने के साथ ऐसे भी मार्ग तलाशे जहां उसे पाठक अधिक मिल सकें। यही सोचकर हमने होली के अवसर पर यही सोचा कि अब अपनी नानी द्वारा प्रदत्त नाम का भी क्यों न नियमित रूप से उपयोग करके देखें जिसकों लेकर अभी तक गंभीर नहीं थे। इस होली पर बोलो मस्त राम………………………………की हिप हुर्र हुर्र।
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यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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