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पर्व का एक दिन बीत गया


एक दीपावली का पर्व और बीत गया। लोगों ने इस पर अपने सामर्थ्यानुसार आनंद उठाया। कई लोगों के पास इसको मनाने के लिए या तो समय नहीं रहा होगा या पैसा-पर दोनों ने इसके आने की खुशी का अहसास किया होगा क्योंकि कहीं न कहीं एक मन होता है जो भूखे, प्यासे और कष्ट झेलकर भी आनंद उठाता है। हर आदमी में पांच तत्वों की देह में मन, बुद्धि और अंहकार की प्रकृतियां रहती हैं और उनके दासत्व का बोध सामान्य मनुष्य को नहीं होता है।
जब तक विज्ञान और समाचार माध्यम इतने प्रबल नहीं थे तब तक कुछ जानकारी नहीं हो पाती थी पर अब तो हर चीज पता लग जाती है। मिठाई के नाम विष भी हो सकता है क्योंकि नकली खोया बाजार में बिक रहा है, और पटाखे भयानक ढंग से पर्यावरण प्रदूषण फैलाते हैं, पर यह लगा नहीं कि लोगों का इस पर ध्यान है। इतना ही नहीं खुले में रखी मिठाई में कितने दोष हो सकते हैं यह सब जानते हैं पर न इस पर खरीदने वाला और न बेचने वाला सोचने के लिए तैयार दिखा। कोई चीज थोडी देर के लिए बाहर रख दो उस पर कितनी मिटटी जमा हो जाती है इसका पता तब तक नहीं लगता जब तक वह प्रतिदिन उपयोग की न हो। रात को बाहर किये गए वाहन-जैसे कार, स्कूटर, और साईकिल सुबह कितने गंदे हो जाते है लोगों को पता है क्योंकि सुबह जाते समय वह उस पर कपडा मारकर उसे साफ करते हैं। वह यह नहीं सोचते कि इतनी देर खुले में रखे मिठाई कितनी गंदी हो गयी होगी।
खुशी मनाना है बस क्योंकि कहीं खुशी मिलती नहीं है। त्यौहार क्या सिर्फ खुशियाँ मनाने के लिए ही होते? क्या कुछ पल बैठकर चिंतन और मनन नहीं करना चाहिए। क्या पुरुषार्थ केवल धनार्जन तक ही सीमित है? क्या त्यौहार पर अमीर केवल इसके लिए प्रसन्न हों कि उन पर लक्ष्मी की कृपा है और गरीब इसलिए केवल दुखी हो कि उसके पास पैसा नहीं है। समाज में सहकारिता की भावना समाप्त हो गई है और यह मान लिया है कि गरीबों का कल्याण केवल राज्य करेगा और समाज के शक्तिशाली वर्ग का कोई दायित्व नहीं है। पहले धनी लोग अपने अधीनस्थ कर्मचारियों और आसपास के लोगों पर अपने दृष्टि बनाए रखते थे पर अब यहाँ पहले जैसा कुछ नहीं रहा। जाति,भाषा, क्षेत्र और धर्म के नाम पर बने समाज या समूह बाहर से मजबूत दिख रहे हैं पर अन्दर से खोखले हो चुके हैं।
कार्ल मार्क्स ने कहा था इस दुनिया में दो वर्ग हैं पर अमीर और गरीब। सच कहा था पर भारत में आज के संदर्भ में ही सही था-क्योंकि उस समय एक वर्ग और था जिसे मध्यम वर्ग कहा जाता था। इस वर्ग में बुद्धिजीवी और विद्वान भी शामिल थे-और उनका समाज में अमीर और गरीब दोनों वर्ग के लोग भरपूर सम्मान करते थे। जिन्होंने कार्ल मार्क्स की राह पकडी उनका उद्देश्य यही था कि किसी तरह मध्यम वर्ग का सफाया कर गरीब का भला किया जा सके और उन्होने अपने लिए एक बौद्धिक वर्ग बनाया जिसने उनका रास्ता बनाया। अब सब जगह केवल दो ही वर्ग रह गए हैं अमीर और गरीब। जिसके पास धन है सब उसकी मुहँ की तरफ देख रहे हैं। दुनिया धनिकों की मुट्ठी में है और विचारवान और बुद्धिमान होने के लिए धन का होना जरूरी हो गया।
परिणाम सामने हैं। ऐसा नहीं है कि बुद्धिमान और विचारवान लोग नहीं है पर उनकी कोई सुनता नहीं है, टीवी और समाचार पत्र-पत्रिकाओं में केवल धनिक लोगों की चर्चा और प्रचार है। उनमें हीरो-हीरों की चर्चा है। बस वही हैं सब कुछ। लोगों की सोचने की शक्ति को निष्क्रिय रखने के लिए मनोरंजन के नाम पर ऐसी विषय सामग्री प्रस्तुत की जा रही है कि वह उससे अलग कुछ सोच ही नही सकता। यह खरीदो और वह बेचो-ऐसे प्रचार के चक्र व्यूह में घिरा आदमी बौद्धिक लड़ाई में हारा हुआ लगता है।
फिर भी इस देश में कुछ ऐसा है कि झूठ अधिक समय तक नहीं चलता इस दिपावली के त्यौहार से यही सन्देश मिलता है कि लोग सच को पसंद करते है और यह उम्मीद करना चाहिऐ कि धीरे -धीरे लोग सच के निकट आयेंगे और झूठ को असली पटाखे की तरह जला देंगे -और तब नकली पटाखे जलाकर पर्यावरण प्रदूषण नहीं फैलाएंगे।

ब्लोगर चला क्रिकेट मैच खेलने


ब्लोगर की कालोनी में क्रिकेट टीम में एक खिलाडी काम पड़ रहा था और उनकों दूसरी कालोनी से फेस्टिवल मैच खेलना था. पडोसियों को पता था कि ब्लोगर जब घर में होता है तो कंप्यूटर पर बैठा रहता है और शायद वह न चले. चूंकि मैच फेस्टिवल था और उसमें बड़ी उम्र के खिलाडी ही शामिल होने थे और लोग चाहते थे कि एकदम बड़ी उम्र के खिलाडियों की बजाय मध्यम उम्र के खिलाडी मैदान में उतारे जाएं और फिर उनकी कुछ अलग से पहचान हो। डाक्टर, वकील, प्रोफेसर और फिर उसमें एक ब्लोगर हो तो……इस ख्याल की वजह से ब्लोगर को टीम में खेलने के लिए राजी कर लिया गया।

अपनी कालोनी की प्रतिष्ठा के लिए प्रतिबद्ध एक लड़का उनके पास गया और तमाम तरह की बातें कर उनसे बोला-‘लोग तो और भी हैं पर आप तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर के ब्लोगर हैं यह बात हमें उन कालोनी वालों को बताना है। अरे! इस पूरे इलाके के आप अकेले ब्लोगर हैं और हमारी कालोनी में रहते हैं और जब आप क्रिकेट खेलेंगे तो सब दंग रह जायेंगे। आप पहले क्रिकेट खेलते रहे हैं हमें यह बात पता है।’

ब्लोगर ने कहाँ-‘यार तुम लोग तो कभी मेरा लिखा पढ़ते नहीं हो और वहाँ इस बात को मानेगा कौन? कभी कमेन्ट वगैरह तो देते नहीं हो।”

लड़के के कहा-”आप क्या बात करते हैं। यहाँ कई लोग आपका लिखा पढ़ते हैं।पर यह कमेंट क्या होता है आपने बताया ही नहीं।”

ब्लोगर ने कहा-‘अगर तुम पढ़ते होते तो मैं फ्लॉप ब्लोगर नहीं कहलाता। खैर! तुम कह रहे हो तो चलूँगा।’

निर्धारित दिन को वह मैदान में पहुंचा। उसकी कालोनी के कप्तान ने टास जीता और ओपनिंग में ब्लोगर को इसलिए भेजा कि वह पुराना खिलाडी है कुछ रन तो बना ही लेगा। ब्लोगर भी पूरी तैयारी के साथ अपने पुराने पैड, दास्ताने, और टोपी पहनकर बल्ला लेकर मैदान में पहुचा। उधर गेंदबाज गें फैंकने की तैयारी में था इधर विकेटकीपर ने उससे कहा-‘क्या आप ब्लोगर हैं?’

ब्लोगर ने उसकी बात को सुना और जवाब देने की बजाय इधर उधर देखा कहीं भी दर्शक दीर्घा में कालोनी के लोगों कोई दिखाई नहीं दिया। वह वापस लौट पडा। पीछे-पीछे प्रतिपक्षी टीम के खिलाड़ी चिल्ला रहे थे-‘जनाब कहाँ जा रहे हैं?’ अरे, मैच शुरू हो रहा है।’

मगर ब्लोगर ने किसी की नहीं सुनी और पैविलियन में अपने कप्तान के पास पहुच गया और बोला-” अभी मैच शुरू मत करो। यहाँ मेरे लिए कमेन्ट देने वाला कोई नहीं है। मेरे दो शिष्य और दो शिष्याएं अभी आने वाले है।उनको मैंने कमेन्ट देने के लिए बुलाया है।’

सब हक्के-बक्के रह गए और एक दूसर से बोले-यह ब्लोगर है यह तो हमने सुना है, पर कमेन्ट का क्या लफडा है।’

इतने में उसके शिष्य और शिष्याएं वहाँ कमेंट के होर्डिंग लेकर पहुचं गए। उन पर लिखा था-‘बहुत सुंदर’, ‘मजा आ गया’, ‘बहुत खूब’ और आदि। एक शिष्य बोला-‘सर!वह पेंटर ने हमें बहुत लेट से यह सामग्री दी। इसलिए हमें देरी हो गयी।’

ब्लोगर ने उनकी भी नहीं सुनी और होर्डिंग पढ़ने लगा और बोला-‘इसमे ”वाह क्या जोरदार हिट है’ वाला होर्डिंग नहीं दिखाई दिया। मैंने उसे पैसे तो पूरे दिए थे।”

उसकी एक शिष्या सहमते हुए बोली-‘सर, उस पर गलत लिख गया था।’ वाह क्या जोरदार हेट है’ लिखा था। पेंटर ने कहा मैं ठीक कर देता हूँ पर हमें सोचा कि देरी हो जायेगी।”

ब्लोगर का मूड उखड गया फिर भी मैदान में उतरा। अब मैच भी जिस तरह होना था हुआ। ब्लोगर ने रन तो बनाए दो, पर गेंद फैंकने वाले इधर-उधर फैंकते कि वह वाइड होकर बाहर चली जाती और उस पर उनकी टीम को चार-चार रन कई बार मिले-पर इससे क्या? उसके दूर बैठे शिष्य यही सोच कर होर्डिंग लहराते रहे कि उनके गुरूजी का शाट है। उसकी वजह से दर्शकों को भी गलतफहमी हो जाती कि ब्लोगर ही रन बना रहा है। वह आउट होकर लौट रहा था तब भी होर्डिंग लहराये जा रहे थे। उसके लौटने पर कप्तान ने कहा-क्या खूब रन बनाए।’

ब्लोगर ने बोलिंग नहीं की पर उनकी टीम जीत गयी। वापस लौटते हुए एक शिष्या अपने साथी से कहा-‘हमारे सर ने रन तो दो ही बनाए। मैंने स्कोरर से पूछा था।’

एक शिष्य ने उससे कहा-चुप! तुझे ब्लोग बनाना सीखना है कि नहीं, और सीख गयी है तो बाद में कमेन्ट चाहिए कि नहीं।

शिष्या चुप हो गयी और ब्लोगर विजेता की तरह सीना ताने चलता रहा।

रास्ता


अपने घर से बाजार
बाजार से अपने घर
रास्ता चलता हूँ दिन भर
कभी सोचता हूँ इधर जाऊं
कभी सोचता हूँ उधर जाऊं
सोच नहीं पाटा जाऊं किधर
रास्ते पर जाते हुए चौपाये
और आकाश में उड़ते पंछी
कितनी बिफिक्री से तय करते हैं
अपनी-अपनी मंजिल
मैं अपनी फिक्र छिपाऊँ तो कहाँ और किधर
रास्ते में पढ़ने वाले मंदिर में
जब जाकर सर्वशक्तिमान की
मूर्ति पर शीश नवाता हूँ
तब कुछ देर चैन पाता हूँ
लगता है कोई साथ है मेरे
क्यों जाऊं किधर