Tag Archives: shayri

ज़िंदगी और दम-हिन्दी कविता


ज़िंदगी के रास्ते पर चलना
इतना आसान नहीं
जितना लोग समझ लेते हैं,
यही वजह है कमजोर दिल वाले
थोड़ी मुश्किल में ही
अपनी दम खुद ही तोड़ देते हैं।
कहें दीपक बापू
आहिस्ता आहिस्ता कदम बढ़ाओ
कछुए के तरह
खरगोश की तरह उछलते
रहना अच्छा लगता है
मगर जिन कदमों से
चलना है दूर तक
उनको ही गम देते हैं। 

कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक ‘भारतदीप”,ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak ‘BharatDeep’,Gwalior

http://dpkraj.blogspot.com
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ख्यालों के जुए में-हिन्दी शायरी (khyal ek juaa hai-hindi shayari)


मस्ती के कुछ पल
जीने की खातिर
जिंदगी दांव पर मत लगाना,
जाना उतना ही दूर
जहां से संभव हो घर लौट आना।

जिंदगी के मायने सभी नहीं जानते,
कायदों को बंधन की तरह मानते,
जज़्बात तो हवा के झौंके हैं
कभी हंसी तो कभी गम के,
ढेर सारे आते मौके हैं,
छोटे पल के लिये
पूरी जिंदगी उनमें न बहाना।

ललचाते हैं शयें बेचने वाले,
पुचकारते हैं, खून खींचने वाले,
सुनना सभी की बात,
विचार करना दिन और रात,
अपना दिल सस्ते में दाव पर न लगाना।
जिंदगी एक समंदर है,
विष और अमृत समाया इसके अंदर है,
मंथन के लिये अक्ल का होना जरूरी है,
जिंदा रहना भी एक मजबूरी है,
मोहब्बत के वायदे सस्ते होते हैं,
बाद में उनको महंगी जिंदगी में ढोते हैं,
इसलिये जब तक तय न कर लो
अपने मकसद और इरादे,
ख्यालों के जुए में अपने हाथ न आजमाना।

———
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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इश्क की भाषा-हिन्दी व्यंग्य कविता (ishq ki bhasha-hindi comic poem)


आशिक लिखता था अंग्रेजी में प्रेमपत्र

प्रेमिका भी देती थी उसी में जवाब।

इश्क ने दोनों को कर दिया था विनम्र

नहीं झाड़ते थे एक दूसरे पर रुआब।

एक दिन अखबार में पढ़ी

माशुका ने ‘भाषा के झगड़े’ की खबर,

खिंच गया दिमाग ऐसे, जैसे कि रबर,

उसने आशिक के सामने

मातृभाषा का मामला उठाया,

दोनों ने उसे अलग अलग पाया,

वाद विवाद हुआ  जमकर,

दोनों अपनी ही मातृभाषा को

इश्क की भाषा बताने लगे तनकर,

पहले मारे एक दूसरे को ताने,

फिर लगे डराने

बात यहां तक पहुंची कि

दोनों एक दूसरे से इतना चिढ़े गये कि

आशिक के लिये माशुका

और माशुका के लिये आशिक बन गया

बीते समय का एक बुरा ख्वाब।

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झगड़ा भी एक शय की तरह बिकता-हिन्दी व्यंग्य कविता


झगड़ा भी एक शय है जो
बड़ा पाव की तरह बाजार में बिकती।
अमन के आदी लोगों में चैन कहां
कहीं शोर देखने की चाहत उनमें दिखती।
इसलिये लिख वह चीज जो
बाजार में बड़े दाम पर बिकती।
अठखेलियां करती कवितायें
मन भाती कहानियां और
अमन के गीत लिखना है तो
अपने दिल के सुकूल के लिये लिख
शोर से दूर एक अजूबा दिख
दुनियां में उनके चाहने वाले
गुणीजनों की अधिक नहीं गिनती।
अमन का पैगाम लिखकर क्या करेगा
जब तक उसमें शोर नहीं भरेगा
सौदागरों ने रची है तयशुदा जंग
उस पर रख अपने ख्याल
जिससे बचे बवाल
सजा दिया है उन्होंने बाजार
वहां शब्दों की जंग महंगी बिकती।
सोचता है अपना
दूसरा ही है तेरा सपना
नहीं बहना विचारों की सतही धारा में
तो तू अपना ही लिख
गहरे में डूबकर नहीं ढूंढ सके मोती
वही नकली ख्याल बहा रहे हैं
सब तरफ बवाल मचा रहे हैं
अपनी सोच की गहराई में उतर जा
कभी न कभी तेरे नाम का भी बजेगा डंका
सच्चे मोती की माला
कोई यूं ही नहीं फिंकती।
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आंसुओं का व्यापार-हिन्दी शायरी


हमदर्दी जताने की कला
हमें कभी नहीं आई
किसी का दर्द देखकर
मन रोया मन भर आंसु
पर आंखें दरिया न बन पाई।
शायद लोग दिमाग से सोचते हैं
इसलिये हमदर्दी के शब्द जल्दी ढूंढ लेते
दिल तक नहीं पहुंचता
दूसरे का दर्द
कर लेते हैं दिखावे में कमाई।
नहीं करना सीखा पाखंड
इसलिये दूसरे के घाव पर मरहम लगाकर भी
अपने लिये ओढ़ लेते हैं तन्हाई।

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अमीरी का रास्ता-हिन्दी शायरी (amiri ka rasta-hindi shayri)


दौलत बनाने निकले बुत

भला क्या ईमान का रास्ता दिखायेंगे।

अमीरी का रास्ता

गरीबों के जज़्बातों के ऊपर से ही

होकर गुजरता है

जो भी राही निकलेगा

उसके पांव तले नीचे कुचले जायेंगे।

———–

उस रौशनी को देखकर

अंधे होकर शैतानों के गीत मत गाओ।

उसके पीछे अंधेरे में

कई सिसकियां कैद हैं

जिनके आंसुओं से महलों के चिराग रौशन हैं

उनको देखकर रो दोगे तुम भी

बेअक्ली में फंस सकते हो वहां

भले ही अभी मुस्कराओ।

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तसल्ली के चिराग-हिन्दी शायरी (tasalli ke chirag-hindi shayri)


सर्वशक्तिमान का अवतार बताकर भी

कई राजा अपना राज्य न बचा सके।

सारी दुनियां की दौलत भर ली घर में

फिर भी अमीर उसे न पचा सके।

ढेर सारी कहानियां पढ़कर भी भूलते लोग

कोई नहीं जो उनका रास्ता बदल चला सके।

मालुम है हाथ में जो है वह भी छूट जायेगा

फिर भी कौन है जो केवल पेट की रोटी से

अपने दिला को मना सके।

अपने दर्द को भुलाकर

बने जमाने का हमदर्द

तसल्ली के चिराग जला सके।

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कोपेनेहेगन में धरती के नये फरिश्तों का मिलन-व्यंग्य कवितायें (naye fariste-hindi vyangya kavita)


अब संभव नहीं है
कोई कर सके
सागर का मंथन
या डाले हवाओं पर बंधन।
इसलिये नये फरिश्ते इस दुनियां के
रोकना चाहते हैं
जहरीली गैसों का उत्सर्जन
जिसे छोड़ते जा रहे हैं खुद
समंदर से अधिक खारे
विष से अधिक विषैले
नीम से अधिक कसैले अपनी
उन फरिश्तों ने महफिल सजाने के लिये
ढूंढ लिया है कोपेनहेगन।।
——–
वह समंदर मंथन कर
अमृत देवताओं को देंगे
ऐसे दैत्य नहीं हैं।
पी जायें विष ऐसे शिव भी नहीं हैं।
कोपेनहेगन में मिले हैं
इस दुनियां के नये फरिश्ते,
गिनती कर रहे हैं
एक दूसरे द्वारा फैलाये विष के पैमाने की,
अमृत न पायेंगे न बांटेंगे,
बस एक दूसरे के दोष छाटेंगे,
धरती की शुद्धि तो बस एक नारा है
उनके हृदय का भाव खारा है,
क्या करें इसके सिवाय वह लोग
सारा अमृत पी गये पुराने फरिश्ते
अब तो विष ही हर कहीं है।।
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हमदर्दी जताने में कमाई-हिन्दी क्षणिका


हमदर्दी जताने की कला
हमें कभी नहीं आई
किसी का दर्द देखकर
मन रोया मन भर आंसु
पर आंखें दरिया न बन पाई।
शायद लोग दिमाग से सोचते हैं
इसलिये हमदर्दी के शब्द जल्दी ढूंढ लेते
दिल तक नहीं पहुंचता
दूसरे का दर्द
कर लेते हैं दिखावे में कमाई।
नहीं करना सीखा पाखंड
इसलिये दूसरे के घाव पर मरहम लगाकर भी
अपने लिये ओढ़ लेते हैं तन्हाई।

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ज़माने सुधारने का वहम-व्यंग्य कविता (zamane ko sudharne ka vaham-vyangya kavita)


किताबों में लिखे शब्द
कभी दुनियां नहीं चलाते।
इंसानी आदतें चलती
अपने जज़्बातों के साथ
कभी रोना कभी हंसना
कभी उसमें बहना
कोई फरिश्ते आकर नहीं बताते।

ओ किताब हाथ में थमाकर
लोगों को बहलाने वालों!
शब्द दुनियां को सजाते हैं
पर खुद कुछ नहीं बनाते
कभी खुशी और कभी गम
कभी हंसी तो कभी गुस्सा आता
यह कोई करना नहीं सिखाता
मत फैलाओं अपनी किताबों में
लिखे शब्दों से जमाना सुधारने का वहम
किताबों की कीमत से मतलब हैं तुम्हें
उनके अर्थ जानते हो तुम भी कम
शब्द समर्थ हैं खुद
ढूंढ लेते हैं अपने पढ़ने वालों को
गूंगे, बहरे और लाचारा नहीं है
जो तुम उनका बोझा उठाकर
अपने फरिश्ते होने का अहसास जताते।।
————–

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गुलाम राज-त्रिपदम (gulam raj-tripadam)


गुलाम राज
कर रहे हैं यहां
गुलाम पर।

कोई छोटा है
कोई उससे बड़ा
यूं नाम भर।

हुक्म चले
नहीं पहुंचता है
मुकाम पर।

कागजी नाव
तैरती दिखती है
यूं काम पर।

बड़ा इलाज
महंगा मिलता है
जुकाम पर।

खोई जिंदगी
ढूंढ रहे हैं
लोग दुकान पर।

दर्द पराया
सस्ता बतलाते
जुबान पर।

शिक्षा के नाम
पट्टा बंध रहा है
गुलाम पर।

जड़ शब्द
कैसे तीर बनेंगे
कमान पर।

आजादी नारा
मूर्ति जैसे टांगे हैं
गुलाम घर।

जो खुद बंधे
आशा कैसे टिकायें
गुलाम पर।
—————————

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तांडव नृत्य-व्यंग्य कविता (tandav dance-vyangya kavita)


तैश में आकर तांडव नृत्य मत करना
चक्षु होते हुए भी दृष्टिहीन
जीभ होते हुए भी गूंगे
कान होते हुए भी बहरे
यह लोग
इशारे से तुम्हें उकसा रहे रहे हैं।
जब तुम खो बैठोगे अपने होश,
तब यह वातानुकूलित कमरों में बैठकर
तमाशाबीन बन जायेंगे
तुम्हें एक पुतले की तरह
अपने जाल में फंसा रहे हैं।

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बहस और परिणाम-हास्य व्यंग्य कवितायें (disscusion and result-hindi poem)


नये नये विषय पर
रोज होती बहस
मगर शून्य आता परिणाम।
निष्कर्ष के लिये रुचि किसमें हैं
नये नये शब्दों और विचारों से सजे
तर्क और वितर्क बेचना
बाजार को हो गया है काम।
………………………
आओ किसी विषय पर बहस करें
जमाने को दिखाने के लिये लड़ मरें।
क्या पता प्रचार में नाम हो जाये
जिससे अपने भी घर दौलत से भरें
………………………….

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रिश्ता और सच का सामना-हास्य कविता (rishta aur sach ka samana-hasya kavita)


लड़के की मां ने
रिश्ते कराने वाले मध्यस्थ से कहा
‘‘लड़की और परिवार के साथ
दहेज का मामला भी समझ में आयेगा।
बस एक बात रह गयी है कहना कि
अब तो चल गया है सच के सामना करने का फैशन
इसलिये लड़की को उस मशीन पर भी बिठायेंगे
चाहें उसके मां बाप तो
अपने लड़के को भी उस पर दिखायेंगे
इस तरह रिश्ता तय हो जायेगा।’

सुनकर लड़का चौंका
और इशारा कर मां को बाहर बुलाया
और बोला-
‘यह क्या कर रही हो माताश्री
उस तरह तो मेरा कभी भी विवाह
संपन्न नहीं हो पायेगा।
तेरा और मेरा रिश्ता तो इसी जन्म का है
जो व्यर्थ जायेगा।
यह टीवी देखकर मत चलो
ऐसा न हो कि फिर इस रिश्ते से हाथ मलो
सच की मशीन है इस तरह कि
जो मेरे बारे में तुम भी नहीं जानती
सभी को पता चल जायेगा।
चुपचाप हामी भर दो
वरना तुम्हारे सास बनने का
और मेरा घर बसने का सपना
सच का सामना करते ही टूट जायेगा।’’

…………………………….

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मन अब नहीं होता-हिंदी शायरी (man ab nahin hota-hindi shayri)


इंसान को पंख नहीं
इसलिये आकाश में
उड़ नहीं पाता।
पर ख्याल तो बिना पंख ही
उड़ते हैं आवारा
जमीन पर पांव के बल
उनको चलना नहीं आता।
ख्यालों में खून नहीं बहता
इसलिये गिरकर घायल होने का
डर उनको नहीं होता
जख्म तो शरीर के हिस्सों पर ही आता।
…………………………
रोज सुबह घर के बाहर पड़े
कागज के उस पुलिंदे को
हाथ में पकड़कर
उस पर छपे अक्षर पढ़ने का
मन अब नहीं होता।

घर के अंदर चल रहे
उस बुद्ध बक्से के दृश्य देखने
और आवाज के शोर सुनने का
मन अब नहीं होता।

ऐसा लगता है कि
मेरे मन के भावों को
हथियार बनाकर उपयोग किया है
उन सौदागरों ने जो
सजा रहे है नारे और वाद बाजार में
देशभक्ति और जनकल्याण का दिया वास्ता
पर कभी खुद नहीं चले वह रास्ता
थकावट लगती है
अब तो अपना लक्ष्य ढूंढने की चाहत है
उनके दिखाये धोखे पर चलने का
मन अब नहीं होता।
……………………….

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