दुनियां की तबाही देखने के लिये
इंसान का दिल क्यों मचलता है
हमारी आंखों के सामने ही सब
खत्म हो जाये
फिर कोई यहां जिंदा न रह पाये
यही सोचकर उसका दिल बहलता है।
हम न होंगे पर यह दुनियां रहेगी
यही सोच उसका दिमाग दहलता है।
इसलिये ही दुनियां के खत्म होने की
खबर पर पूरा जमाना
मनोरंजन की राह पर टहलता है।
—————-
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com
यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
दीपक भारतदीप द्धारा
|
कला, मनोरंजन, मस्त राम, मस्ती, शायरी, शेर, समाज, हिंदी साहित्य, hindi poem, shyari में प्रकाशित किया गया
|
Also tagged कला, मनोरंजन, मस्त राम, मस्ती, शायरी, शेर, समाज, हिंदी साहित्य, hindi etnertainment, hindi poem
|
श्रृंगार रस का कवि
पहुंचा हास्य कवि के पास
लगाये अच्छी सलाह की आस
और बोला
‘यार, अब यह कैसा जमाना आया
समलैंगिकता ने अपना जाल बिछाया।
अभी तक तो लिखी जाती थी
स्त्री पुरुष पर प्रेम से परिपूर्ण कवितायें
अब तो समलिंग में भी प्रेम का अलख जगायें
वरना जमाने से पिछड़ जायेंगे
लोग हमारी कविता को पिछड़ी बतायेंगे
कोई रास्ता नहीं सूझा
इसलिये सलाह के लिये तुम्हारे पास आया।’
सुनकर हास्य कवि घबड़ाया
फिर बोला-’‘बस इतनी बात
क्यों दे रहे हो अपने को ताप
एकदम शुद्ध हिंदी छोड़कर
कुछ फिल्मी शैली भी अपनाओ
फिर अपनी रचनायें लिखकर भुनाओ
एक फिल्म में
तुमने सुना और देखा होगा
नायक को महबूबा के आने पर यह गाते
‘मेरा महबूब आया है’
तुम प्रियतम और प्रियतमा छोड़कर
महबूब पर फिदा हो जाओ
चिंता की कोई बात नहीं
आजकल पहनावे और चाल चलन में
कोई अंतर नहीं लगता
इसलिये अदाओं का बयान
महबूब और महबूबा के लिये एक जैसा फबता
कुछ लड़के भी रखने लगे हैं बाल
अब लड़कियों की तरह बड़े
पहनने लगे हैं कान में बाली और हाथ में कड़े
तुम तो श्रृंगार रस में डूबकर
वैसे ही लिखो समलैंगिक गीत कवितायें
जिसे प्राकृतिक और समलैंगिक प्रेम वाले
एक स्वर में गायें
छोड़े दो सारी चिंतायें
मुश्किल तो हमारे सामने है
जो हास्य कविता में आशिक और माशुका पर
लिखकर खूब रंग जमाया
पर महबूब तो एकदम ठंडा शब्द है
जिस पर हास्य लिखा नहीं जा सकता
हम तो ठहरे हास्य कवि
साहित्य और भाषा की जितनी समझ है
दोस्त हो इसलिये उतना तुमको बताया।
………………………………………….
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिकालेखक संपादक-दीपक भारतदीप
दीपक भारतदीप द्धारा
|
मस्त राम, व्यंग्य, शायरी, हास्य, हिन्दी, India, internet, mast ram, mastram में प्रकाशित किया गया
|
Also tagged अनुभूति, अभिव्यक्ति, इंटरनेट, दीपक भारतदीप, भाषा, मस्त राम, व्यंग्य, शायरी, शेर, समलैंगिक, समलैंगिकता, हास्य, हिंदी साहित्य, हिन्दी, हिन्दी पत्रिका, hasya vyangya kavita, hindi poem, hindi satire, India, internet, mast ram, mastram, sher, web bhaskar, web dunia, web duniya, web express, web jagran, web panjabkesri
|