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अपने खुद चलने का वहम था-हिंदी कविता (khud chalne ka vaham-hindi kavita)


ख्वाब देखने का मन नहीं करता
सपने देखकर हमारा दिल डरता।
जिंदगी की कड़वी सच्चाई के साथ
जीने की ऐसी आदत हो गयी है
कुछ पल छोड़ दे साथ तो
राहत मिल जाती है दिमाग में
पर तब भी उसके वापस  लौटने का डर रहता।
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पुराने साथी छूटते गये
नये जुड़ते गये।
जिंदगी का कारवां यूं ही चलता रहा
कहीं मनपसंद
तो कहीं नापसंद लोग मिले
जो डालते हैं नज़र गुजरे सफर पर
तो लगता है मन कभी न रहा काबू
ख्याल भी आते रहे बेकाबू
अपने खुद चलने का बस वहम था
हम तो समय की की लगाम गले में बांधे
जिंदगी की राहों में घोड़े की तरह उड़ते रहे।

कवि एवं संपादक-दीपक भारतदीप
http://rajlekh.blogspot.com

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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन

बहस और परिणाम-हास्य व्यंग्य कवितायें (disscusion and result-hindi poem)


नये नये विषय पर
रोज होती बहस
मगर शून्य आता परिणाम।
निष्कर्ष के लिये रुचि किसमें हैं
नये नये शब्दों और विचारों से सजे
तर्क और वितर्क बेचना
बाजार को हो गया है काम।
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आओ किसी विषय पर बहस करें
जमाने को दिखाने के लिये लड़ मरें।
क्या पता प्रचार में नाम हो जाये
जिससे अपने भी घर दौलत से भरें
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