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रात भुलावा, सुबह छलावा-हिंदी कविता


चिल्ला चिल्ला कर वह

करते हैं एक साथ होने का दावा

यह केवल है छलावा

मन में हैं ढेर सारे सवाल

जिनका जवाब ढूंढने से वह कतराते

आपस में ही एक दूसरे के लिये तमाम शक

जो न हो सामने

उसी पर ही शुबहा जताते

महफिलों में वह कितना भी शोर मचालें

अपने आपसे ही छिपालें

पर आदमी अपने अकेलेपन से घबड़ाकर

जाता है वहां अपने दिल का दर्द कम करने

पर लौटता है नये जख्म साथ लेकर

फिर होता है उसे पछतावा

रात होते उदास होता है मन सबका

फिर शुरू होता है सुबह से छलावा
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