Tag Archives: vyangya kavita

अपनी जिंदगी-हिन्दी शायरी (apni zindagi-hindi shayari)


यकीन करो दूसरों के अधिकार और उद्धार की
लड़ाई लड़ने की बात जो करते हैं
वह संजीदा नहीं है,
क्योंकि उधार के ख्याल पर
गुजारी है उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी।

सारी उम्र लगा दी लोगों का भला करते हुए
पर एक बंदा भी वह खुश नहीं दिखा सकते,
ज़माने के कमजोर मोहरे ही
सोच रूपी शतरंज की बिसात पर वह मारते हैं,
अमन के लिये करते हैं कलह,
पैगाम सुनाते हुए दहाड़ते हैं।

इसलिये अपने दर्द
दिल में रखना सीख लो,
वरना बिक जायेंगे जज़्बात बीच बाज़ार,
न दिल भरेगा न जेब
हो जाओगे बेजार,
भलाई करने वाले जिंदा ही
नहीं मरों को भी हक दिलाते हैं,
धंधा है उनका कहीं देते भाषण तो
कहीं शब्दों की जंग सिखाते हैं।
अपनी लड़ाई के अकेले सिपाही
अपनी ताकत से ही जीतोगे अपनी जिंदगी।
———–

कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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दिल्लगी-हिन्दी शायरी (dillagi-hindi shayari)


दिल लगाने के ठिकाने
अब नहीं ढूंढते
क्योंकि दिल्लगी बाज़ार की शय बन गयी है,
मोहब्बत का पाखंड अब
खुश नहीं कर पाता
क्योंकि जहां बहता है जज़्बातों का दरिया
वह मतलब की बर्फ जम गयी है।
———
आसमान के उड़ने की चाहत में
इतनी ऊंची छलांग मत लगाओ
कि जमीन पर गिरने पर
शरीर को इतने घाव लग जायें
जिन्हें भर न पाओ।
दूर जाना अपने मकसद के लिये उतना ही
कि साबित अपने ठिकाने पर लौट आओ।
———

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com

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बन्दूक और बारूद के सौदागरों के घर भरते-व्यंग्य कविता (saudagron ke ghar bharte-vyangya kavita)


बंदूक और बारूद के सौदागर
कभी बाजार की मंदी पर आहें नहीं भरते
जंग के लिये रोज लिखने वाले
मुफ्त में उनका विज्ञापन करते।

अमीर के अनाचार पर गरीब को
बंदूक उठाने का सिखाते फर्ज
गोली और बंदूक ऐसे बांटते जैसे कर्ज
शोषितों के उद्धार के लिये जंग का ऐलान
दबे कुचले के लिये छेड़ते खूनी अभियान
जहां शांति दिखे वहीं बारूद भरते।

अन्याय के खिलाफ् एकजुट होने का आव्हान
हर जगह दिखाना है संघर्ष का निशान
खाली अक्ल और
दिमागी सोच से परे
वह लोग नहीं जानते
अपने अंदर ही जो भाव नहीं
उसे दूसरे में जगाना संभव नहीं
यह बात नहीं मानते।
खून भरा है ख्यालों में
उन्हें सभी जगह घाव दिखाई देते हैं
बस लड़ते जाओ बढ़ते जाओ के
नारे सभी जगह लिखाई देते हैं
भूखा आदमी लड़ने की ताकत नहीं रखता
गरीब कभी गोली का स्वाद नहीं चखता
इसलिये किराये पर
गरीब और भूखे जुटा रहे हैं
बारूदों और बंदूकों उन पर लुटा रहे हैं
कौन जानता है कि
सौदागरों के पास से कमीशन उठा रहे हैं
अच्छा लगता है जंग की बात करना
पर गरीब और भूखे लड़ते हैं
अपनी जिंदगी से स्वयं
उनके लिये संभव नहीं
इतनी आसानी से मुफ्त में मरना
फिर भी जंग के ऐलान करने वाले
हर तरह बारूद और बंदूकों के
सौदागरों का घर भरते।
………………..

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बजट सत्य-हास्य व्यंग्य (hindi vyangya on budget)


उन्होंने जैसे ही दोपहर में बजट देखने के लिये टीवी खोला वैसे ही पत्नी बोली-‘सुनते हो जी! कल तुमने दो हजार रुपये दिये थे सभी खर्च हो गये। अब कुछ पैसे और दो क्योंकि अभी डिस्क कनेक्शन वाला आने वाला होगा। कुछ देर पहले आया तो मैंने कहा कि बाद में आना।’
उन्होंने कहा-‘अरे, अब तो बैंक से पैसे निकालने पड़ेंगे। अभी तो मेरी जेब में पैसा नहीं है। अभी तो टीवी परबजट सुन लूं।’
पत्नी ने कहा-‘इस बजट की बजाय तुम अपने घर का ख्याल करो। अभी डिस्क कनेक्शन वाले के साथ धोबी भी आने वाला है। मुन्ना के स्कूल जाकर फीस जमा भी करनी है। आज आखिरी तारीख है।’
वह टीवी बंदकर बाहर निकल पड़े। सोचा पान वाले के यहां टीवी चल रहा है तो वहां पहुंच गये। दूसरे लोग भी जमा थे। पान वाले ने कहा-‘बाबूजी इस बार आपका उधार नहीं आया। क्या बात है?’
उन्होंने कहा-‘दे दूंगा। अभी जरा बजट तो सुन लूं। घर पर लाईट नहीं थी। अपना पर्स वहीं छोड़ आया।’
उनकी बात सुनते ही पान वाला खी खी कर हंस पड़ा-‘बाबूजी, आप हमारे बजट की भी ध्यान रखा करो।’
दूसरे लोग भी उनकी तरफ घूरकर देखने लगे जैसे कि वह कोई अजूबा हों।
वह अपना अपमान नही सह सके और यह कहकर चल दिये कि‘-अभी पर्स लाकर तुमको पैसा देता हूं।’
वहां से चले तो किराने वाले के यहां भी टीवी चल रहा था। वह वहां पहुंचे तो उनको देखते ही बोला-‘बाबूजी, अच्छा हुआ आप आ गये। मुझे पैसे की जरूरत थी अभी थोक दुकान वाला अपने सामान का पैसा लेने आता होगा। आप चुका दें तो बड़ा अहसान होगा।’
उन्होंने कहा-‘अभी तो पैसे नहीं लाया। बजट सुनकर चला जाऊंगा।’
किराने वाले ने कहा-‘बाबूजी अभी तो टीवी पर बजट आने में टाईम है। अभी घर जाकर ले आईये तो मेरा काम बन जायेगा।’
वहां भी दूसरे लोग खड़े थे। इसलिये तत्काल ‘अभी लाया’ कहकर वह वहां से खिसक लिये।
फिर वह चाय के होटल की दुकान पर पहुंचे। वहां चाय वाला बोला-‘बाबूजी, क्या बात इतने दिन बाद आये। न आपने चाय पी न पुराना पैसा दिया। कहीं बाहर गये थे क्या?’
दरअसल अब उसकी चाय में मजा नहीं आ रहा था इसलिये उन्होंने दो महीने से उसके यहां चाय पीना बंद कर दिया था। फिर इधर डाक्टर ने भी अधिक चाय पीने से मना कर दिया था। चाय पीना बंद की तो पैसा देना भी भूल गये।
वह बोले-यार, अभी तो पैसा नहीं लाया। हां, बजट सुनकर वापस घर जाकर पर्स लेकर तुम्हारा पैसा दे जाऊंगा।’
चाय वाला खी खी कर हंस पड़ा। एक अन्य सज्जन भी वहां बजट सुनने वहां बैठे थे उन्होंने कहा-‘आईये बैठ जाईये। जनाब! पुराना शौक इसलिये छूटता नहीं इसलिये बजट सुनने के लिये घर से बाहर ही आना पड़ता है। घर पर बैठो तो वहां इस बजट की बजाय घर के बजट को सुनना पड़ता है।’
यह कटु सत्य था जो कि सभी के लिये असहनीय होता है। अब तो उनका बजट सुनने का शौक हवा हो गया था। वह वहां से ‘अभी लाया’ कहकर निकल पड़े। जब तक बजट टीवी पर चलता रहा वह सड़क पर घूमते रहे और भी यह बजट तो कभी वह बजट उनके दिमाग में घूमता रहा।
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भूख भला कभी किसी की मिटी है-हिंदी शायरी (hindi shayri)
गरीब के घर पैदा होने पर
आयु पूरी होने से पहले मर नहीं जाते।
अमीर घर में लेकर जन्म
कोई सोने की रोटी नहीं खाते।
लेकर बड़े घरों से उधर का नजरिया
देख रहे हैं इस रंग बिरंगी दुनियां को
फिर कमजोर की शिकायत क्यों करने आते।
कपड़े मैले हो सकते हैं
हाथ में पकड़े थैले फटे हो सकते हैं
जरूरतों जितना सामान हो तो ठीक
सामान जितनी जरूरतें क्यों नहीं रख पाते।
अपनी झौंपड़ी मे रहते हुए
महलों के सुख यूं ही बड़े नजर आते।
गलतफहमियों में जिंदगी अमीर की भी रहती
गरीब भी कोई सच्चाई के साथ नहीं आते।
भूख भला कभी किसी की मिटी है
जो उसे मिटाने के सपने दिखाये जाते
जिसमें गरीब भी बह जाते।
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चांदी के कप की खातिर- हास्य व्यंग्य कविताएँ


इतिहास में नाम दर्ज करने की
अपनी ख्वाहिश पूरी करने के लिये
वह किसी भी हद तक जाऐंगे।
कहीं जिंदा आदमी भूत बनाकर सजायेंगे
तो कहीं भूत को ही फरिश्ता बतायेंगे।।
………………………
चांदी के कप की खातिर
खेल में बन जाता है जंग का मैदान।
जीतने वाले की कद्र
उसके कारनामों से नहीं
चांदी से बढ़ती है शान।
पता नहीं किस पर सीना फुलाता है वह
अपने पसीने और घावों पर
या चांदी की चमक पर होकर हैरान।
……………………….
पांव हैं जमीन पर
किन्तु आकाश की तरफ है ध्यान।
जमीन से कोई सोना उगकर
पेट में नहीं जाता
सिर पर सजाने के लिये
कोई हीरा ऊपर से नहीं आता
दो पाटों की चक्की में
यूं ही पिस जाता है इंसान।

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अपने अरमानों का बोझ ढोने वाला-व्यंग्य कविता


बड़े आदमी बनने के लिये
सभी इंसान जूझ रहे हैं
सदियां बीत गयी हैं
पर कौन छोटा है या बड़ा
सभी इस पहली से जूझ रहे हैं।
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पद बड़ा कि शरीर का कद
बुरा क्या है
शराब या पैसे का मद
कामयाबी और दौलत में
आदमी तोड़ देता है अपनी हद
जिंदगी में सपनों के पीछे भागता आदमी
घोड़ा बन जाता
फिर अपने अरमानों का बोझ ढोने वाला
गधा बन जाता है
चलता जाता है बिना विचारे
सोचने से जो डरता है बेहद

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किसी इंसान का चेहरा
कोई गीत या गजल नहीं होता
जिसे सुर और संगीत में सजा लोगे
उसकी तस्वीर बना कर
दीवार पर टांग सकते हो
तारीफों में कुछ कसीदे भी
पढ़ सकते हो
अपनी जुबान
शोर मचाकर तुम
सभी लोगों को कान बहरे कर दोगे
पर अपने कारनामों से
जब तक कोई दिल में जगह न बना ले
कितना भी चाहो तुम
उसे हर दिल का अजीज नही बना लोगे
याद रखना इंसान का
चेहरा नहीं बदलता
पर चरित्र का कोई ठिकाना नहीं
तुमने खाया अगर धोखा
तब सभी हंसेंगे तुम पर
अपने ही शब्दों के बोझ तले तुम पड़े होगे

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