भारत में आजकल एक फैशन हो गया है कि अगर आपको सस्ती लोकप्रियता प्राप्त करनी हो तो हिंदू धर्म या उससे जुडे किसी संत पर आक्षेप कर आसानी से प्राप्त की जा सकती है। मुझे ऐसे लोगों से कोई शिक़ायत नहीं है न उनसे कहने या उन्हें समझाने की जरूरत है। अभी कुछ दिनों से बाबा रामदेव पर लोग प्रतिकूल टिप्पणी कर सस्ती लोकप्रियता हासिल करने की होड़ में लगे है । इस समय वह भारत में ही नहीं वरन पूरे विश्व में लोकप्रिय हो रहे हैं ,और मुझे नहीं लगता कि आजादी के बाद कोई व्यक्ति इतनी लोकप्रियता हासिल कर सका हो। सूचना तकनीकी में हम विश्व में उंचे स्थान पर हैं पर वहां किसी व्यक्ति विशेष को यह सम्मान नहीं प्राप्त हो सका है। बाबा रामदेव ने हिंदूं धर्म से योगासन, प्राणायाम, और ध्यान की जो विद्या भारत में लुप्त हो चुकी थी उसे एक बार फिर सम्मानजनक स्थान दिलाया है, उससे कई लोगों के मन में कुंठा उत्पन्न हो गयी है और वह योजनापूर्वक उन्हें बदनाम आकर रहे हैं।
पहले यह मैं स्पष्ट कर दूं कि मैंने आज से चार वर्ष पूर्व जब योग साधना प्रारंभ की थी तब बाबा रामदेव का नाम भी नही सुना था। भारतीय योग संस्थान के निशुल्क शिविर में योग करते हुए लगभग डेढ़ वर्ष बाद मैंने उनका नाम सूना था। आज जब मुझसे कोई पूछता है “क्या तुम बाबा रामदेव वाला योग करते हो?
मैं उनसे कहता हूँ -“हाँ, तुम भी किया करो ।
कहने का तात्पर्य यह है इस समय योग का मतलब ही बाबा रामदेव के योग से हो गया है। मुझे इस पर कोई आपत्ति भी नहीं है क्योंकि मैं ह्रदय से चाहता हूँ कि योग का प्रचार और प्रसार बढ़े । मैं बाबा रामदेव का भक्त या शिष्य भी नहीं हूँ फिर भी लोगों को यह सलाह देने में मुझे कोई झिझक नहीं होती कि वह उनके कार्यक्रमों को देखकर योग सीखें और उसका लाभ उठाएं । इसमें मेरा कोई निजी फायदा नहीं है पर मुझे यह संतुष्टि होती है कि मैं जिन लोगों से योग सीखा हूँ वह गुरू जैसे दिखने वाले लोग नहीं है पर उन्होने गुरूद्क्षिना में इसके प्रचार के लिए काम करने को कहा था। बाबा रामदेव का समर्थन करने के पीछे केवल योग के प्रति मेरी निष्ठा ही नहीं है बल्कि यह सोच भी है कि योग सिखाना भी कोई आसान काम नहीं -योग शिक्षा वैसे ही भारत में ज्यादा लोकप्रिय नहीं हो पाई है और इसे विषय के रुप में स्कूलों में शामिल करने का बहुत विरोध हो रहा है ऐसे में लार्ड मैकाले की शिक्षा से स्वयं को विद्धान की पदवी से अलंकृत कर स्वयंभू तो योग के नाम से बौखला जाते हैं, और उनके उलुलजुलुल बयानों को मीडिया में स्थान भी मिलता है। कुछ दिन पहले बाबा रामदेव के शिविर में एक बीमार व्यक्ति की मौत हो गयी थी तो मीडिया ने इस तरह प्रचारित करने का प्रयास किया जैसे वह योग्साध्ना से मरा हो, जबकि उसकी बिमारी उसे इस हाल में लाई थी। उस समय एक सवाल उठा था कि अंगरेजी पध्दति से सुसज्जित अस्पतालों में जब कई मरीज आपरेशन टेबल पर ही मर जाते हैं तो क्या इतनी चीख पुकार मचती है और कोई उन्हें बंद करने की बात करता है। ट्रकों, कारों, और मोटर सायाकिलों की टक्कर में सैंकड़ों लोग मर जाते हैं तो कोई यह कहता है इन्हें बंद कर दो? और इन वाहनों से निकलने वाले धुएँ ने हमारे पर्यावरण को इस क़दर प्रदूषित किया है जिससे लोगों में सांस की बीमारियाँ बढ गयी है तो क्या कोई यह कहने वाला है कि विदेशों से पैट्रोल का आयत बंद कर दो?
बाबा रामदेव ने हिंदूं धर्म से जुडी इस विधा को पुन: शिखर पर पहुंचाया है इसके लिए उन्हें साधुवाद देने की बजाय उनके कृत्य में छिद्र ढूँढने का प्रयास करने वाले लोग उनकी योग शिक्षा की बजाय उनके वक्तव्यों को तोड़ मरोड़ कर उसे इस तरह पेश करते हैं कि उसकी आलोचना के जा सके। जहाँ तक योग साधना से होने वाले लाभों का सवाल है तो उसे वही समझ सकता है जिसने योगासन, प्राणायाम , ध्यान और मत्रोच्चार किया हो। शरीर की बीमारी तो पता चलती है पर मानसिक और वैचारिक बीमारी का व्यक्ति को स्वयं ही पता नहीं रहता और योग उन्हें भी ठीक कर देता है। जहां तक उनकी फार्मेसी में निर्मित दवाओं पर सवाल उठाने का मामला है बाबा रामदेव कई बार कह चुके हैं वह बीमारियों के इलाज में दवा को द्वितीय वरीयता देते हैं, और जहाँ तक हो सके रोग को योग साधना से दूर कराने का प्रयास करते हैं। फिर भी कोई न कोई उनकी दवाए उठाकर लाता है और लगता है अपनी विद्वता दिखाने। आज तक कोई किसी अंगरेजी दवा का सैम्पल उठाकर नहीं लाया कि उसमे कितने साईट इफेक्ट होते हैं। इस देश में कितने लोग अंगरेजी बिमारिओं से मरे यह जानने की कोशिश किसी ने नहीं की।
अब रहा उनके द्वारा हिंदू धर्म के प्रचार का सवाल तो यह केवल उनसे ही क्यों पूछा जा रहा है? क्या अन्य धर्म के लोग अपने धर्म का प्रचार नहीं कर रहे हैं। मैं केवल बाबा रामदेव ही नहीं अन्य हिंदू संतों की भी बात करता हूँ । जो लोग उन पर सवाल उठाते हैं वह पहले अपना आत्म विश्लेषण करें तो उन्हें अपने अन्दर ढ़ेर सारे दोष दिखाई देंगे। दो या तीन घंटे तक अपने सामने बैठे भक्तो और श्रोताओं को-वह भी बीस से तीस हज़ार की संख्या में -प्रभावित करना कोई आसान काम नहीं है। यह बिना योग साधना, श्री मद्भागवत का अध्ययन और इश्वर भक्ती के साथ कडी तपस्या और परिश्रम के बिना संभव नहीं है । उनकी आलोचना केवल वही व्यक्ति कर सकता है जो उन जैसा हो। इसके अलावा उनसे यह भी निवेदन है कि आलोचना से पहले कुछ दिन तक योग साधना भी करके देख लें ।
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