मूढ़ मंडली में सुजन, ठहरत नहीं बिसेषि
स्याम कचन में सेत ज्यों, दूर कीजिअत देखि
कविवर रहीम कहते हैं की जैसे काले केशों में कोई सफ़ेद बाल देखकर उसे निकल देता है, उसी प्रकार मूर्खों की सभा में चतुर पुरुष बहुत समय तक नहीं रुक पाता.
जद्यपि अवनि अनेक सुख, तोव तासु रसताल
सतत तुलसी मानसर, तदपि न तजहिं मराल
कविवर रहीम कहते हैं की धरती पर अनेक सुख है और सरोवर स्वच्छ जल से भरे हुए हैं तथापि हंस मानसरोवर को नहीं त्यागते.
होहिं बडे लघु समय सह, तो लघु सकहिं न काढि
चन्द्र दूबरो कूबरी, तऊ देखत तें बाढि
कविवर रहीम कहते हैं की बडे व्यक्ति बुरे समय को भी सहन करते हैं। वह उनकी महानता को कम नहीं करता। दूज का चन्द्रमा कुबड़ा होता है, किन्तु देखते-देखे बढ़ता जाता है।
जैसी जाकी बुद्धि है, तैसी कहै बनाय
ताकों बुरो न मानिए, लें कहाँ सो जाय
संत शिरोमणि रहीम कहते हैं कि जिस मनुष्य की जैसी बुद्धि होती है, वह उसके अनुरूप ही कार्य करता है, उस व्यक्ति का बुरा मत मानिए क्योंकि वह और अधिक बुद्धि कहाँ से लेने जाएगा।