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शिष्य की जीवन नैया पर लगाने वाले गुरु बहुत कम है-गुरू पूर्णिमा पर विशेष हिंदी लेख


         22 जुलाई 2013 को गुरू पूर्णिमा का पर्व पूरे देश मनाया जाना स्वाभाविक है।  भारतीय अध्यात्म में गुरु का अत्ंयंत महत्व है। सच बात तो यह है कि आदमी कितने भी अध्यात्मिक ग्रंथ पढ़ ले जब तक उसे गुरु का सानिध्य या नाम के अभाव में  ज्ञान कभी नहीं मिलेगा वह कभी इस संसार का रहस्य समझ नहीं पायेगा। इसके लिये यह भी शर्त है कि गुरु को त्यागी और निष्कामी होना चाहिये।  दूसरी बात यह कि गुरु भले ही कोई आश्रम वगैरह न चलाता हो पर अगर उसके पास ज्ञान है तो वही अपने शिष्य की सहायता कर सकता है।  यह जरूरी नही है कि गुरु सन्यासी हो, अगर वह गृहस्थ भी हो तो उसमें अपने  त्याग का भाव होना चाहिये।  त्याग का अर्थ संसार का त्याग नहीं बल्कि अपने स्वाभाविक तथा नित्य कर्मों में लिप्त रहते हुए विषयों में आसक्ति रहित होने से है।

          हमारे यहां गुरु शिष्य परंपरा का लाभ पेशेवर धार्मिक प्रवचनकर्ताओं ने खूब लाभ उठाया है। यह पेशेवर लोग अपने इर्दगिर्द भीड़ एकत्रित कर उसे तालियां बजवाने के लिये सांसरिक विषयों की बात खूब करते हैं।  श्रीमद्भागवतगीता में वर्णित गुरु सेवा करने के संदेश वह इस तरह प्रयारित करते हैं जिससे उनके शिष्य उन पर दान दक्षिण अधिक से अधिक चढ़ायें।  इतना ही नहीं माता पिता तथा भाई बहिन या रिश्तों को निभाने की कला भी सिखाते हैं जो कि शुद्ध रूप से सांसरिक विषय है।  श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार हर मनुष्य  अपना गृहस्थ कर्तव्य निभाते हुए अधिक आसानी से योग में पारंगत हो सकता है।  सन्यास अत्यंत कठिन विधा है क्योंकि मनुष्य का मन चंचल है इसलिये उसमें विषयों के विचार आते हैं।  अगर सन्यास ले भी लिया तो मन पर नियंत्रण इतना सहज नहीं है।  इसलिये सरलता इसी में है कि गृहस्थी में रत होने पर भी विषयों में आसक्ति न रखते हुए उनसे इतना ही जुड़ा रहना चाहिये जिससे अपनी देह का पोषण होता रहे। गृहस्थी में माता, पिता, भाई, बहिन तथा अन्य रिश्ते ही होते हैं जिन्हें तत्वज्ञान होने पर मनुष्य अधिक सहजता से निभाता है। हमारे कथित गुरु जब इस तरह के सांसरिक विषयों पर बोलते हैं तो महिलायें बहुत प्रसन्न होती हैं और पेशेवर गुरुओं को आजीविका उनके सद्भाव पर ही चलती है।  समाज के परिवारों के अंदर की कल्पित कहानियां सुनाकर यह पेशेवक गुरु अपने लिये खूब साधन जुटाते हैं।  शिष्यों का संग्रह करना ही उनका उद्देश्य ही होता है।  यही कारण है कि हमारे देश में धर्म पर चलने की बात खूब होती है पर जब देश में व्याप्त भ्रष्टाचार, अपराध तथा शोषण की बढ़ती घातक प्रवृत्ति देखते हैं तब यह साफ लगता है कि पाखंडी लोग अधिक हैं।

संत कबीरदास जी कहते हैं कि

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बहुत गुरु भै जगत में, कोई न लागे तीर।

सबै गुरु बहि जाएंगे, जाग्रत गुरु कबीर।।

     सामान्य हिन्दी में भावार्थ-इस जगत में कथित रूप से बहुत सारे गुरू हैं पर कोई अपने शिष्य को पार लगाने में सक्षम नहीं है। ऐसे गुरु हमेशा ही सांसरिक विषयों में बह जाते हैं। जिनमें त्याग का भाव है वही जाग्रत सच्चे गुरू हैं जो  शिष्य को पार लगा सकते हैं।

जाका गुरू है गीरही, गिरही चेला होय।

कीच कीच के घोवते, दाग न छूटै कीव।।

    सामान्य हिन्दी में भावार्थ-जो गुरु केवल गृहस्थी और सांसरिक विषयों पर बोलते हैं उनके शिष्य कभी अध्यात्मिक ज्ञान  ग्रहण या धारण नहीं कर पाते।  जिस तरह कीचड़ को गंदे पानी से धोने पर दाग साफ नहीं होते उसी तरह विषयों में पारंगत गुरु अपने शिष्य का कभी भला नहीं कर पाते।

           सच बात तो यह है कि हमारे देश में अनेक लोग यह सब जानते हैं पर इसके बावजूद उनको मुक्ति का मार्ग उनको सूझता नहीं है। यहां हम एक बात दूसरी बात यह भी बता दें कि गुरु का अर्थ यह कदापि नहीं लेना चाहिये कि वह देहधारी हो।  जिन गुरुओं ने देह का त्याग कर दिया है वह अब भी अपनी रचनाओं, वचनों तथा विचारों के कारण देश में अपना नाम जीवंत किये हुए हैं।  अगर उनके नाम का स्मरण करते हुए ही उनके विचारों पर ध्यान किया जाये तो भी उनके विचारों तथा वचनों का समावेश हमारे मन में हो ही जाता है।  ज्ञान केवल किसी की शक्ल देखकर नहीं हो जाता।  अध्ययन, मनन, चिंत्तन और श्रवण की विधि से भी ज्ञान प्राप्त होता है। एकलव्य ने गुरु द्रोणाचार्य का स्मरण कर ही धनुर्विधा सीखी थी।  इसलिये शरीर से  गुरु का होना जरूरी नहीं है। 

     अगर संसार में कोई गुरु नहीं मिलता तो श्रीमद्भागवत गीता का अध्ययन भगवान श्रीकृष्ण को गुरु मानकर किया जा सकता है। हमारे देश में कबीर और तुलसी जैसे महान संत हुए हैं। उन्होंने देह त्याग किया है पर उनका नाम आज भी जीवंत है। जब दक्षिणा देने की बात आये तो जिस किसी  गुरु का नाम मन में धारण किया हो उसके नाम पर छोटा दान किसी सुपात्र को किया जा सकता है। गरीब बच्चों को वस्त्र, कपड़ा या अन्य सामान देकर उनकी प्रसन्नता अपने मन में धारण गुरू को दक्षिणा में दी जा सकती हैं।  सच्चे गुरु यही चाहते हैं।  सच्चे गुरु अपने शिष्यों को हर वर्ष अपने आश्रमों के चक्कर लगाने के लिये प्रेरित करने की बजाय उन्हें अपने से ज्ञान प्राप्त करने के बाद उनको समाज के भले के लिये जुट जाने का संदेश देते हैं।

दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’

ग्वालियर मध्यप्रदेश

Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”

Gwalior Madhyapradesh

संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

संत कबीरदास के दोहे-भगवान के साथ चतुराई मत करो


सिहों के लेहैंड नहीं, हंसों की नहीं पांत
लालों की नहीं बोरियां, साथ चलै न जमात

संत शिरोमणि कबीर दास जी के कथन के अनुसार सिंहों के झुंड बनाकर नहीं चलते और हंस कभी कतार में नहीं खड़े होते। हीरों को कोई कभी बोरी में नहीं भरता। उसी तरह जो सच्चे भक्त हैं वह कभी को समूह लेकर अपने साथ नहीं चलते।

चतुराई हरि ना मिलै, ए बातां की बात
एक निस प्रेही निराधार का गाहक गोपीनाथ

कबीरदास जी का कथन है कि चतुराई से परमात्मा को प्राप्त करने की बात तो व्यर्थ है। जो भक्त उनको निस्पृह और निराधार भाव से स्मरण करता है उसी को गोपीनाथ के दर्शन होते हैं।

वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-लोगों ने तीर्थ स्थानों को एक तरह से पर्यटन मान लिया है। प्रसिद्ध स्थानों पर लोग छुट्टियां बिताने जाते हैं और कहते हैं कि दर्शन करने जा रहे हैं। परिणाम यह है कि वहां पंक्तियां लग जाती हैंं। कई स्थानों ंपर तो पहले दर्शन कराने के लिये बाकायदा शुल्क तय है। दर्शन के नाम पर लोग समूह बनाकर घर से ऐसे निकलते हैं जैसे कहीं पार्टी में जा रहे हों। धर्म के नाम पर यह पाखंड हास्याप्रद है। जिनके हृदय में वास्तव में भक्ति का भाव है वह कभी इस तरह के दिखावे में नहीं पड़ते।
वह न तो इस समूहों में जाते हैं और न कतारों के खड़े होना उनको पसंद होता है। जहां तहां वह भगवान के दर्शन कर लेते हैं क्योंकि उनके मन में तो उसके प्रति निष्काम भक्ति का भाव होता है।

सच तो यह है कि मन में भक्ति भाव किसी को दिखाने का विषय नहीं हैं। हालत यह है कि प्रसिद्ध तीर्थ स्थानों पर किसी सच्चे भक्त का मन जाने की इच्छा भी करे तो उसे इन समूहों में जाना या पंक्ति में खड़े होना पसंद नहीं होता। अनेक स्थानों पर पंक्ति के नाम पर पूर्व दर्शन कराने का जो प्रावधान हुआ है वह एक तरह से पाखंड है और जहां माया के सहारे भक्ति होती हो वहां तो जाना ही अपने आपको धोखा देना है। इस तरह के ढोंग ने ही धर्म को बदनाम किया है और लोग उसे स्वयं ही प्रश्रय दे रहे हैं। सच तो यह है कि निरंकार की निष्काम उपासना ही भक्ति का सच्चा स्वरूप है और उसी से ही परमात्मा के अस्तित्व का आभास किया जा सकता है। पैसा खर्च कर चतुराई से दर्शन करने वालों को कोई लाभ नहीं होता।
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अयोध्या में राम मंदिर और टीवी चैनल की सफलता-हास्य कविता (ayodhya mein ram mandir aur tv chainal ka time-hindi hasya kavita)


टीवी चैनल के कर्मचारी ने
अपने प्रबंध निदेशक से पूछा
‘सर, आपका क्या विचार है
अयोध्या में राम जन्म भूमि पर
मंदिर बन पायेगा
यह मसला  कभी सुलझ पायेगा।’

सुनकर प्रबंध निदेशक ने कहा
‘अपनी खोपड़ी पर ज्यादा जोर न डालो
जब तक अयोध्या में राम मंदिर नहीं बनेगा,
तभी तक अपने चैनल का तंबू बिना मेहनत के तनेगा,
बहस में ढेर सारा समय पास हो जाता है,
जब खामोशी हो तब भी
सुरक्षा में सेंध के नाम पर
सनसनी का प्रसंग सामने आता है,
अपना राम जी से इतना ही नाता है,
नाम लेने से फायदे ही फायदे हैं
यह समझ में आता है,
अपना चैनल जब भी राम का नाम लेता है
विज्ञापन भगवान छप्पड़ फाड़ कर देता है,
अगर बन जायेगा
तो फिर ऐसा मुद्दा हाथ नहीं आयेगा
कभी हम किसी राम मंदिर नहीं गये
पर राम का नाम लेना अब बहुत भाता है,
क्योंकि तब चैनल सफलता की सीढ़िया चढ़ जाता है,
इसलिये तुम भी राम राम जपते रहो,
इस नौकरी में अपनी रोटी तपते रहो,
अयोध्या में राम मंदिर बन जायेगा
तो उनके भक्तों का ध्यान वहीं होगा
तब हमारा चैनल ज़मीन पर गिर जायेगा।

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कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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मनु स्मृति दर्शन-संगीत का आनंद लेकर सोयें (manu smriti-sangeet ka anand)


आजकल रेडियो या टेप में संगीत सुनने की बजाय टीवी और वीडियो पर उसका आनंद उठाने का प्रयास किया जा रहा है। सच तो यह है कि टीवी में हम आंख तथा कान दोनों को सक्रिय रखते हैं इसलिये मजा उठाने से अधिक कष्ट मिलता है। संगीत सुनने का आनंद तो केवल कानों से ही है। वैसे शायद यही वजह है कि टीवी पर हर शो में फिल्मी गानों को पृष्ठभूमि में जोड़कर दृश्य को जानदार बनाने का प्रयास किया जा रहा है। किसी धारावाहिक में अगर पात्र गुस्से में बोल रहा है तो भयानक संगीत का शोर जोड़कर उसे दमदार बनाने का प्रयास शायद इसलिये ही किया जाता है कि आजकल का अभिनय करने वाले पात्रों को न तो कला से मतलब है न उनमें योग्यता है। बहरहाल संगीत मानव मन की कमजोरी है और जहां तक मनोरंजन मिले वहां तक सुनना चाहिये। अति तो सभी जगह वर्जित है।
तत्र भुक्तपर पुनः किंचित्तूर्यघोषैः प्रहर्षितः।
संविशेत्तु यथाकालमुत्तिष्ठेच्च गतक्लमः।
हिन्दी में भावार्थ-
भोजन करने के बाद गीत संगीत का आनंद उठाना चाहिये। उसके बाद ही शयन के लिये प्रस्थान करना उचित है।
एतद् विधानमातिष्ठेदरोगः पृथिवीपतिः।
अस्वस्थः सर्वमेत्त्ु भृत्येषु विनियोजयेत्।।
हिन्दी में भावार्थ-
स्वस्थ होने पर अपने सारे काम स्वयं ही करना चाहिये। अगर शरीर में व्याधि हो तो फिर अपना काम विश्वस्त सेवकों को सौंपकर विश्राम भी किया जा सकता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-एक तरफ मनुस्मृति में प्रमाद से बचने का सुझाव आता है तो दूसरी जगह भोजन के बाद गीत संगीत सुनने की राय मिलती है। इसमें कहीं विरोधाभास नहीं समझा जा सकता। दरअसल मनुष्य की दिनचर्या को चार भागों में बांटा गया है। प्रातः धर्म, दोपहर अर्थ, सायं काम या मनोरंजन तथा रात्रि मोक्ष या निद्रा के लिये। जिस तरह आजकल चारों पहर मनोरंजन की प्रवृत्ति का निर्माण हो गया है उसे देखते हुए मनृस्मृति के संदेशों का महत्व अब समझ में आने लगा है।
आजकल रेडियो, टीवी तथा अन्य मनोंरजन के साधनों पर चौबीस घंटे का सुख उपलब्ध है। लोग पूरा दिन मनोरंजन करते हैं पर फिर भी मन नहीं भरता। इसका कारण यह है कि मनोंरजन से मन को लाभ मिले कैसे जब उसे कोई विश्राम ही नहीं मिलता। जब कोई मनुष्य प्रातः धर्म का निर्वहन तथा दोपहर अर्थ का अर्जन ( यहां आशय अपने रोजगार से संबंधित कार्य संपन्न करने से हैं) करता है वही सायं भोजन और मनोरंजन का पूर्ण लाभ उठा पाता है। उसे ही रात्रि को नींद अच्छी आती है और वह मोक्ष प्राप्त करता है।
शाम को भोजन करने के बाद गीत संगीत सुनना चाहिये। अलबत्ता टीवी देखने से कोई लाभ नहीं है क्योंकि उसमें आंखें ही थकती हैं और दिमाग को कोई राहत नहीं मिलती। इसलिये टेप रिकार्ड या रेडियो पर गाने सुनने का अलग मजा है। वैसे भी देखा जाये तो आजकल अधिकर टीवी चैनल फिल्मों पर गीत संगीत बजाकर ही गाने प्रस्तुत किये जाते हैं-चाहे उनके हास्य शो हों या कथित वास्तविक संगीत प्रतियोगितायें फिल्मी धुनों से सराबोर होती हैं। देश के व्यवसायिक मनोरंजनक प्रबंधक जानते हैं कि गीत संगीत मनुष्य के लिये मनोरंजन का एक बहुत बड़ा स्त्रोत हैं इसलिये वह उसकी आड़ में अपने पंसदीदा व्यक्तित्वों को थोपते हैं। प्रसंगवश अभी क्रिकेट में भी चौका या छक्का लगने पर नृत्यांगना के नृत्य संगीत के साथ प्रस्तुत किये जाते हैं। स्पष्टतः यह मानव मन की कमजोरी का लाभ उठाने का प्रयास है।
टीवी पर इस तरह के कार्यक्रम देखने से अच्छा है सीधे ही गाने सुने जायें। अलबत्ता यह भोजन करने के बाद कुछ देर तक ठीक रहता है। अर्थशास्त्र के उपयोगिता के नियम के अनुसार हर वस्तु की प्रथम इकाई से जो लाभ होता है वह दूसरी से नहीं होता। एक समय ऐसा आता है कि लाभ की मात्रा शून्य हो जाती है। अतः जबरदस्ती बहुत समय तक मनोरंजन करने का कोई लाभ नहीं है। सीमित मात्रा में गीत संगीत सुनना कोई बुरी बात नहीं है-मनोरंजन को विलासिता न बनने दें।
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कुदरत का करिश्मा-हिन्दी व्यंग्य क्षणिकायें (kudrat ka karishma-hindi vyangya kavitaen)


नदियां यूं ही नहीं देवियां कही जाती हैं,
तभी तक सहती हैं
अपने रास्तों पर आशियानों बनना
जब तक इंसानों की तरह सहा जाता है,
बादलों से बरसा जो थोड़ा पानी
उफनती हुई अतिक्रमण विरोधी अभियान चलाती हैं।
——–
यह कुदरत का ही करिश्मा है कि
विकास के मसीहाओं को भी
उसका सहारा मिल जाता है,
जब तक आगे बढ़ने का सहारा मिलता है
झूठे आंकडों से
वह अपनी छाती फुलाते हैं
बरसती है जब कहर की बाढ़
खुलती है पोल
तब दोष देते हैं कुदरत को
फिर राहत से कमाई की उम्मीद में
उनका चेहरा अधिक खिल जाता है।
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पसीने की सुगंध-हिन्दी व्यंग्य क्षणिकायें


अकल से भैंस कभी बड़ी नहीं होती,
अगर होती तो, खूंटे से नहीं बंधी होती।
यह अलग बात है कि इंसान नहीं समझते
इसलिये उनकी अक्ल भी अमीरों की खूंटी पर टंगी होती।
भैंस चारा खाकर, संतोष कर लेती है,
मगर इंसान की अकल, पत्थरों की प्रियतमा होती।
————-
कभी मेरे बहते हुए पसीने पर
तुम तरस न खाना,
यह मेरे इरादे पूरे करने के लिये
बह रहा है मीठे जल की तरह,
इसकी बदबू तुम्हें तब सुगंध लगेगी
जब मकसद समझ जाओगे।
सिमट रहा है ज़माना वातानुकुलित कमरे में
सूरज की तपती गर्मी से लड़ने पर
जिंदगी थक कर आराम से सो जाती,
खिले हैं जो फूल चमन में
पसीने से ही सींचे गये
वरना दुनियां दुर्गंध में खो जाती,
जब तक हाथ और पांव से
पसीने की धारा नहीं प्रवाहित कर करोगे
तब अपनी जिंदगी को हाशिए पर ही पाओगे।

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धरती पर छोटे कांटे भी हैं-हिन्दी व्यंग्य कविता


अपने दिल में उठे तमन्नाओं के तूफान से
आकाश में इतना क्यों उछल रहे हो,
अपने लंबे भारी भरकम पांवों के नीचे
क्यों बेबसों को कुचल रहे हो,
हमेशा आकाश की तरफ देखकर
न चला करो
धरती पर छोटे कांटे भी हैं,
जो चुभ गये कभी तो
औकात बता देंगे
सभी की तरह तुम भी जहर फैला रहे हो
अपने अनोखे होने का अहसास न दिलाओ
तुम भी उन लाखों लोगों में एक हो
जो ज़माने के लिये आग उगल रहे हो।

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चेहरे चमकदार, नीयत है काली-हिन्दी व्यंग्य कविता


दीनों के दीनानाथ हैं
इंसान क्या मदद करेंगे।
नाम लेकर भलाई का
सारी रसद अपने घर भरेंगे।
लूट लिया ज़माने का पैसा,
हर लुटेरा लगने लगा अमीर जैसा,
बना रहे हैं भीड़ को चलाने का कायदा,
सुरक्षित रख रहे अपनी आने वाली पीढ़ी का फायदा,
फैल गये गरीबों के हितैषी चारों तरफ,
दौलत का सूरज बंद उनके घर के तालों में
कैसे पिघले भूख की सदियों से जमी बरफ,
चेहरे है चमकदार, नीयत है काली,
करेंगे क्या, उनके कहे पर ही बजाते लोग ताली,
सच यह है कि भले लोगों के झूंड नहीं बनते,
भलाई के धंधेबाजों के ही तंबू सरेआम तनते,
सर्वशक्तिमान के नाम लेते, अंदर है उनके शैतान
भीड़ जमा हैं उनके घर, अकेले हम क्या लड़ेंगे।

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कामयाबी और खौफ-हिन्दी शायरी


अपनी कामयाबी भी
उनको तब तक हज़म नहीं हो पाती है,
जब तक दूसरे की नाकामी की खबर
उनके पास न आती है।
दुनियां का यही दस्तूर है
मूर्खों का भी क्या कसूर है
सभी लोगों दूसरे की छोटी लकीर से
बड़ी लकीर खींचना नहीं आती है।
———
हर रोज वह
कामयाबी के नये शिखर पर चढ़ जाते हैं,
उधार पर ली है कलाबाजी
या करना सीख ली दगाबाजी,
फिर भी किसी के टांग खींचकर
जमीन पर पटकने की आशंाकायें
उनको घेरे हुए है
जमीन पर रैगते हुए मामूली इंसानों की
कामयाबी से खौफ खाकर उनसे लड़ जाते हैं।
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सर्वशक्तिमान और शैतान-हिन्दी हास्य व्यंग्य कथा


सर्वशक्तिमान को यह अहसास होने लगा था कि संसार में उनका नाम स्मरण कम होता जा रहा था। दरअसल अदृश्य सर्वशक्तिमान सारे संसार पर अनूभूति से ही नियंत्रण करते रहे थे और लोगों की आवाज तभी उन तक पहुंचती थी जब उनके हृदय से निकली हो। अपनी अनुभूति के परीक्षण के लिये उन्होंने वायु को बुलाया और उससे पूछा-’यह बताओ, मनुष्यों ने मेरे नाम का स्मरण करना क्या बंद कर दिया है या तुमने ही उनको मेरे पास तक लाने का काम छोड़ दिया है। क्योंकि मुझे लग रहा है कि मेरा नाम जपने वाले भक्त कम हो रहे हैं। उनके स्वरों की अनुभूति अब क्षीण होती जा रही है।
वायु ने कहा-‘मेरा काम अनवरत चल रहा है। बाकी क्या मामला है यह आप जाने।’
सर्वशक्तिमान ने सूर्य को बुलाया। उसका भी यही जवाब है। उसके बाद सर्वशक्तिमान ने प्रथ्वी, चंद्रमा, जलदेवता और आकाश को बुलाया। सभी ने यही जवाब दिया। अब तो सर्वशक्तिमान हैरान रह गये। तभी अपनी अनूभूति की शक्ति से उनको लगा कि कोई एक आत्मा उनके पास बैठकर ऊंघ रहा है-उसके ऊंघने से तरीके से पता लगा कि वह अभी अभी मनुष्य देह त्याग कर आया है। उन्हें हैरानी हुई तब वह नाराज होकर उससे बोले-‘अरे, तूने कौनसा ऐसा योग कर लिया है कि मेरे दरबार तक पहुंच गया है। जहां तक मेरी अनुभूतियों की जानकारी है वहां ऐसा कोई मनुष्य हजारों साल से नहीं हुआ जिसने कोई योग वगैरह किया हो और मेरे तक इस तरह चला आये।
उस ऊंघते हुए आत्मा ने कहा-‘मुझे मालुम नहीं है कि यहां तक कैसे आया? वैसे भी आप तक आना ही कौन चाहता है। मैं भी माया के चक्कर में था पर वह भाग्य में आपने नहीं लिखी थी-ऐसा मुझे उस शैतान ने बताया जिसने अपनी मजदूरी का दाम बढ़ाने की बात पर ठेकेदार से झगड़ा करवा कर मुझे मरवा डाला। वही यहां तक छोड़ गया है।’
अपने प्रतिद्वंद्वी का नाम सुनकर परमात्मा चकित रह गये। फिर गुस्सा होकर बोले-‘निकल यहां से! शैतान की इतनी हिम्मत कि अब मुझ तक लोगों को पहुंचाने लगा है। वह भी ऐसे आदमी को जिसने मेरा नाम कभी लिया नहीं।’
उस आत्मा ने कहा-लिया था न! मरते समय लिया था दरअसल मुंह से निकल गया था। यह उस शैतान की कारिस्तानी या मेरा दुर्भाग्य कह सकते हैं। शैतान ने मुझे पकड़ा और बताया सर्वशक्तिमान कहना है कि जो मेरा नाम आखिर में लेता है वह मुझे प्राप्त होता है। चल तुझे वहां छोड़ आता हूं। कहने लगा कि स्वर्ग है यहां पर! मुझे तो कुछ भी नज़र नहीं आ रहा। न यहां टीवी है और न ही फ्रिज है और न ही यहां कोई कार वगैरह चलती दिख रही है। सबसे बड़ी बात यह कि वह शैतान कितना सुंदर था और एक आप हो कि दिख ही नहीं रहे।’
शैतान होने के सुंदर होने की बात सुनकर सर्वशक्तिमान के कान फड़कने लगे वह बुदबुदाये-‘यह शैतान सुंदर कब से हो गया।’
उन्होंने तत्काल अपना चमत्कारी चश्मा पहना जिससे उनको अपनी पूर्ण देह प्राप्त हुई। वह आत्मा खुश हो गया और बोला-‘अरे, आओ शैतान महाराज! यह कहां नरक में छोड़ गये।’
सर्वशक्तिमान नाराज होकर बोले-‘कमबख्त! मैं तुझे शैतान नज़र आ रहा हूं। वह तो काला कलूटा है। मैं तो स्वयं सर्वशक्तिमान हूं।’
वह आत्मा बोला-‘क्या बात करते हो? अभी अभी तो मुझे वहां से ले आये।’
सर्वशक्तिमान के समझ में आ गया। उन्होंने आत्मा को वहां से धक्का दिया तो वह आत्माबोला-‘आप ऐसा क्यों कर रहे हो।’
सर्वशक्तिमान ने कहा-‘तूने धरती से विदा होते समय मेरा नाम लिया तो यहां आ गया और अब शैतान का नाम लिया तो वहीं जा।’
वह आत्मा खुश होकर वहां से जमीन पर चला आया। इधर सर्वशक्तिमान ने हुंकार भरी और शैतान को ललकारा। वह भी प्रकट हो गया और बोला-‘क्या बात है? मैं नीचे बिजी था और तुमने मुझे यहां बुला लिया।’
उसका नया स्वरूप देखकर सर्वशक्तिमान चकित रहे गये और उससे बोले-कमबख्त! तेरी इतनी हिम्मत तू मेरा रूप धारण कर घूम रहा है।’
शैतान हंसा और बोला-हमेशा ही बिना भौतिक रूप के यहां वहां पड़े रहते हो। न तो सुगंध ग्रहण करते हो न किसी चीज का स्पर्श करते हो। न सुनते हो न कुछ कहते हो। केवल अनुभूतियों के सहारे कब तक मुझसे लड़ोगे। अरे, मुझे यह रूप धारण किये सदियां बीत गयी। तुम्हें होश अब आ रहा है। एक आत्मा पहुंचाया था उसे भी यहां से निकाल दिया।’
सर्वशक्मिान ने कहा-‘पर यह तुमने मेरे रूप को धारण कैसे और क्यों किया? मैंने तुम्हें कभी इतना सक्षम नहीं बनाया।’
शैतान ने कहा-‘क्यों अक्ल तो है न मेरे पास! तुम्हारे ज्ञान को मैंने ग्रहण कर लिया जिसमें तुमने बताया कि जिसका नाम लोगे वैसे ही हो जाओगे। मैं तुम्हारा नाम लेता रहा। उसका मतलब तुम्हारी भक्ति करना नहीं बल्कि तुम्हारे जैसा रूप प्राप्त करना था। सो मिल गया। तुम तो यही पड़े रहते हो और तुम्हारी पत्थर की मूर्तियां और पूजागृह नीचे बहुत खड़े हैं। सभी में मेरा प्रवेश होता है। दूसरा यह कि मैं क्रिकेट, फिल्म तथा तुम्हारे सत्संगों में सुंदर रूप लेकर उपस्थित रहता हूं। अपना रूप बदला है नीयत नहीं। लोग मेरा चेहरा देखकर इतना अभिभूत होते है कि मुझे ही सर्वशक्तिमान मान बैठते हैं। मेरे अनेक सुंदर चेहरों की तो फोटो भी बन जाती है। फिर तुम जानते हो कि माया नाम की सुंदरी जिसे तुमने कभी स्वीकार नहीं किया मेरी सेवा में रहती है। तुम्हें यह सुनकर दुःख तो होगा कि काम मैं करवाता हूं बदनामी में नाम तुम्हारा ही जुड़ता है। जो लोग तुम्हें नहीं मानते वह तो नाम भी नहीं लेते पर जो लेते हैं वह भी यही कहते हैं कि ‘देखो, सर्वशक्तिमान के नाम पर क्या क्या पाप हो रहा है।’
शैतान बोलता गया और सर्वशक्तिमान चुप रहे। आखिर शैतान बोला’-‘सुन लिया सच! अब में जाऊं। मेरे भक्त इंतजार कर रहे होंगे।’
सर्वशक्तिमान ने हैरानी से पूछा-‘तुम्हारे भक्त भी हैं संसार में!
शैतान सीना फुला कर बोला-‘न! सब तुम्हारे हैं! मैं तो उन्हें दिखता हूं और तुम्हारे नाम से वह मुझे पूजते हैं। तो मेरे ही भक्त हुए न!’
शैतान चला गया और सर्वशक्तिमान ने अपना चमत्कारी चश्मा उतार दिया।

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नर्तकों के देवता होने का वहम-हिन्दी क्षणिकाऐं


विदुषकों के विद्वान और
नर्तकों के देवता होने का वहम
पूरे ज़माने को हो गया है,
झूठ के सहारे खड़ा है दौलत का महल,
इज्जत पाने के लिये, होने लगी सौदे की पहल,
ईमान सभी का सो गया है।
———–
सर्वशक्तिमान ने दाने दाने पर लिखा है
खाने वाले का नाम
न मिलने पर उसका क्या दोष
अगर बंद हो गोदाम।

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धर्म और अवतार-हिंदी हास्य कविता


फंदेबाज मिला रास्ते में
और बोला
‘चलो दीपक बापू
तुम्हें एक सम्मेलन में ले जायें।
वहां सर्वशक्तिमान के एक नये अवतार से मिलायें।
हमारे दोस्त का आयोजन है
इसलिये मिलेगा हमें भक्तों में खास दर्जा,
दर्शन कर लो, उतारें सर्वशक्तिमान का
इस जीवन को देने का कर्जा,
इस बहाने कुछ पुण्य भी कमायें।’

सुनकर पहले चौंके दीपक बापू
फिर टोपी घुमाते हुए बोले
‘कमबख्त,
न यहां दुःख है न सुख है
न सतयुग है न कलियुग है
सब है अनूभूति का खेल
सर्वशक्तिमान ने सब समझा दिया
रौशनी होगी तभी
जब चिराग में होगी बाती और तेल,
मार्ग दो ही हैं
एक योग और दूसरा रोग का
दोनों का कभी नहीं होगा मेल,
दृश्यव्य माया है
सत्य है अदृश्य
दुनियां की चकाचौंध में खोया आदमी
सत्य से भागता है
बस, ख्वाहिशों में ही सोता और जागता है
इस पूर्ण ज्ञान को
सर्वशक्मिान स्वयं बता गये
प्रकृति की कितनी कृपा है
इस धरा पर यह भी समझा गये
अब क्यों लेंगे सर्वशक्तिमान
कोई नया अवतार
इस देश पर इतनी कृपा उनकी है
वही हैं हमारे करतार
अब तो जिनको धंधा चलाना है
वही लाते इस देश में नया अवतार,
कभी देश में ही रचते
या लाते कहीं लाते विदेश से विचार सस्ते
उनकी नीयत है तार तार,
हम तो सभी से कहते हैं
कि अपना अध्यात्म्किक ज्ञान ही संपूर्ण है
किसी दूसरे के चंगुल में न आयें।
ऐसे में तुम्हारे इस अवतारी जाल में
हम कैसे फंस जायें?
यहां तो धर्म के नाम पर
कदम कदम पर
लोग किसी न किसी अवतार का
ऐसे ही जाल बिछायें।

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शब्दों की प्रेरणा-हिन्दी व्यंग्य कवितायें


दिन भर वह दोनों ज्ञानी

अपने शब्दों की प्रेरणा से

लोगों को लड़ाने के लिये

झुंडों में बांट रहे थे,

रात को

लूट में मिले सामान में

अपना अपना हिस्सा

ईमानदारी से छांट रहे थे।

——-

शब्द रट लेते हैं किताबों से,

सुनाते हैं उनको हादसों के हिसाबों से,

पर अक्लमंद कभी खुद जंग नहीं लड़ते।

नतीजों पर पहुंचना

उनका मकसद नहीं

पर महफिलों में शोरशराबा करते हुए

अमन की राह में उनके कदम

बहुत  मजबूती से बढ़ते।

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बुरे आदमी से संगत सांप पालने से अधिक दुःखदायी-हिन्दी संदेश


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नीति विशारद चाणक्य महाराज का कहना है कि
क्षान्तिश्चत्कवचेन किं किमनिरभिः क्रोधीऽस्ति चेद्दिहिनां ज्ञातिश्चयेदनलेन किं यदि सहृदद्दिव्यौषधं किं फलम्।
किं सर्पैयीदे दुर्जनाः किमु धनैर्विद्याऽनवद्या चदि व्रीडा चेत्किमुभूषणै सुकविता यद्यपि राज्येन किम्।।
हिंदी में भावार्थ-
यदि क्षमा हो तो किसी कवच की आवश्यकता नहीं है। यदि मन में क्रोध है तो फिर किसी शत्रु की क्या आवश्यकता? यदि मंत्र है तो औषधियो की आवश्यकता नहीं है। यदि अपने दुष्ट की संगत कर ली तो सांप की क्या कर लेगा? विद्या है तो धन की मदद की आवश्यकता नहीं। यदि लज्जा है तो अन्य आभूषण की आवश्यकता नहीं है।
वर्तमान में संदर्भ में संपादकीय व्याख्या- ध्यान दें तो भर्तृहरि महाराज ने पूरा जीवन सहजता से व्यतीत करने वाला दर्शन प्रस्तुत किया है। अगर आदमी विनम्र हो और दूसरे के अपराधों को क्षमा करे तो उसे कहीं से खतरा नहीं रहता। जैसा कि हम देख रहे हैं कि आजकल अस्त्र शस्त्र रखने का प्रचलन बढ़ता जा रहा है। इसका कारण यह है कि लोगों का विश्वास अपने ऊपर से उठ गया है। अपने छोटे छोटे विवादों के बड़े हमले में परिवर्तित होने का भय उनको रहता है इसलिये ही लोग हथियार रखते हैं। उनको यह भी विश्वास है कि वह किसी को क्षमा नहीं करते इसलिये उनके क्रोध या हिंसा का शिकार कभी भी उन पर हमला कर सकता है। जिन लोगों में क्षमा का भाव है वह किसी प्रकार की आशंका से रहित होकर जीवन व्यतीत करते हैं। क्षमा का भाव होता है तो क्रोध का भाव स्वतः ही दूर रहता है। ऐसे में अन्य कोई शत्रु नहीं होता जिससे आशंकित होकर हम अपनी सुरक्षा करें।

उसी तरह अपनी संगत का भी ध्यान रखना चाहिये। जिनकी सामाजिक छबि खराब है उनसे दूर रहें इसी में अपना हित समझें। वैसे आजकल तो हो यह रहा है कि लोग दादा और गुंडा टाईप के लोगों से मित्रता करने में अपनी इज्जत समझते हैं मगर सच तो यह है कि ऐसे लोग उसी व्यक्ति को तकलीफ देते हैं जो उनको जानता है। इसके अलावा अपने दोस्तों से रुतवे के बदल अच्छी खासी कीमत भी वसूल करते हैं भले ही उनका कोई काम नहीं करते हों पर भविष्य में सहयोग का विश्वास दिलाते हैं। देखा यह गया है कि दुष्ट लोगों की संगत हमेशा ही दुःखदायी होती है।
अपनी देह को स्वस्थ रखने के लिये प्रतिदिन योग साधना के साथ अगर मंत्र जाप करें तो फिर आप औषधियों के नाम जानने का भी प्रयास न करें। राह चलते हुए फाईव स्टार टाईप के अस्पताल देखकर भी आपको यह ख्याल नहीं आयेगा कि कभी आपको वहां आना है।
जहां तक हो सके अच्छी बातों का अध्ययन और श्रवण करें ताकि समय पड़ने पर आप अपनी रक्षा कर सकें। याद रखिये जीवन में रक्षा के लिये ज्ञान सेनापति का काम करता है। अगर आपके पास धन अल्प मात्रा में है और ज्ञान अधिक मात्रा में तो निश्चिंत रहिये। ज्ञान की शक्ति के सहारे दूसरों की चालाकी, धूर्तता तथा लालच देकर फंसाने की योजनाओं से बचा जा सकता है। अगर ज्ञान न हो तो दूसरे लोग हम पर शासन करने लगते हैं।
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झगड़ा भी एक शय की तरह बिकता-हिन्दी व्यंग्य कविता


झगड़ा भी एक शय है जो
बड़ा पाव की तरह बाजार में बिकती।
अमन के आदी लोगों में चैन कहां
कहीं शोर देखने की चाहत उनमें दिखती।
इसलिये लिख वह चीज जो
बाजार में बड़े दाम पर बिकती।
अठखेलियां करती कवितायें
मन भाती कहानियां और
अमन के गीत लिखना है तो
अपने दिल के सुकूल के लिये लिख
शोर से दूर एक अजूबा दिख
दुनियां में उनके चाहने वाले
गुणीजनों की अधिक नहीं गिनती।
अमन का पैगाम लिखकर क्या करेगा
जब तक उसमें शोर नहीं भरेगा
सौदागरों ने रची है तयशुदा जंग
उस पर रख अपने ख्याल
जिससे बचे बवाल
सजा दिया है उन्होंने बाजार
वहां शब्दों की जंग महंगी बिकती।
सोचता है अपना
दूसरा ही है तेरा सपना
नहीं बहना विचारों की सतही धारा में
तो तू अपना ही लिख
गहरे में डूबकर नहीं ढूंढ सके मोती
वही नकली ख्याल बहा रहे हैं
सब तरफ बवाल मचा रहे हैं
अपनी सोच की गहराई में उतर जा
कभी न कभी तेरे नाम का भी बजेगा डंका
सच्चे मोती की माला
कोई यूं ही नहीं फिंकती।
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