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झगड़ा भी एक शय की तरह बिकता-हिन्दी व्यंग्य कविता


झगड़ा भी एक शय है जो
बड़ा पाव की तरह बाजार में बिकती।
अमन के आदी लोगों में चैन कहां
कहीं शोर देखने की चाहत उनमें दिखती।
इसलिये लिख वह चीज जो
बाजार में बड़े दाम पर बिकती।
अठखेलियां करती कवितायें
मन भाती कहानियां और
अमन के गीत लिखना है तो
अपने दिल के सुकूल के लिये लिख
शोर से दूर एक अजूबा दिख
दुनियां में उनके चाहने वाले
गुणीजनों की अधिक नहीं गिनती।
अमन का पैगाम लिखकर क्या करेगा
जब तक उसमें शोर नहीं भरेगा
सौदागरों ने रची है तयशुदा जंग
उस पर रख अपने ख्याल
जिससे बचे बवाल
सजा दिया है उन्होंने बाजार
वहां शब्दों की जंग महंगी बिकती।
सोचता है अपना
दूसरा ही है तेरा सपना
नहीं बहना विचारों की सतही धारा में
तो तू अपना ही लिख
गहरे में डूबकर नहीं ढूंढ सके मोती
वही नकली ख्याल बहा रहे हैं
सब तरफ बवाल मचा रहे हैं
अपनी सोच की गहराई में उतर जा
कभी न कभी तेरे नाम का भी बजेगा डंका
सच्चे मोती की माला
कोई यूं ही नहीं फिंकती।
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आंसुओं का व्यापार-हिन्दी शायरी


हमदर्दी जताने की कला
हमें कभी नहीं आई
किसी का दर्द देखकर
मन रोया मन भर आंसु
पर आंखें दरिया न बन पाई।
शायद लोग दिमाग से सोचते हैं
इसलिये हमदर्दी के शब्द जल्दी ढूंढ लेते
दिल तक नहीं पहुंचता
दूसरे का दर्द
कर लेते हैं दिखावे में कमाई।
नहीं करना सीखा पाखंड
इसलिये दूसरे के घाव पर मरहम लगाकर भी
अपने लिये ओढ़ लेते हैं तन्हाई।

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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anantraj.blogspot.com

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यहां ठग कौन है-हास्य व्यंग्य


‘एक के तीन’, और ‘दो के छह’ की आवाज कहीं भी सुन लें तो हम भारतीयों के कान खड़े हो जाते हैं यह सोचकर कि कहीं यह सच तो नहीं है कि हमारा रुपया तिगुना हो जायेगा।’
भले ही कोई एक रुपये की तीन माचिस या दो रुपये की पेन की छह रिफिल बेचने के लिये आवाज क्यों नहीं लगा रहा हो पर हम उसकी तरफ देखना जरूर चाहेंगे भले ही बाद में निराशा हो। अगर कोई वाकई रुपये तिगुने की बात कर रहा हो तो………………….हर देखने वाले आदमी और औरत के मूंह में पानी जरूर आ जायेगा।
अगर सामान्य आदमी हुआ तो भी उस पर विश्वास करने का मन जरूर होगा। विचार करेंगे और और हो सकता है कि उसके बाद न करें। अगर उस सामान्य आदमी की ईमानदारी की सिफारिश कोई अपना मित्र या रिश्तेदार करे तो तब विश्वास करने की संभावना पचास से पचहत्तर और फिर सौ फीसदी हो जाती है। पुरुष हुआ तो एकाध प्रतिशत कम हो सकती है पर अगर महिला हुई तो सौ फीसदी अपना कदम उस ठगी की तरफ बढ़ा देती है जिसके बाद रोने के अलावा और कुछ नहीं रह जाता। आदमी द्वारा विश्वास करने की एकाध प्रतिशत संभावना इसलिये कम हो जाती है क्योंकि उसकी आंख में रोने के लिये गुंजायश कम होती है और अगर ठग जाने पर वह रोए तो लोग कहेंगे कि ‘कैसा मर्द है रोता है। अरे, ठग गया तो क्या? मर्द है फिर कमा लेना।’
औरत अगर ठग जाती है तो रोती है-उसे यह अधिकार प्रकृति से उपहार के रूप में मिला है। उसकी आंख में आंसुओं का खजाना होता है और रोने पर उसके साथ सहानुभूति जताने वाले भी उसे कम बिगड़ते जमाने को अधिक बुरा कहते हैं।
अगर ठगने वाला साधु हुआ तो? फिर तो पुरुष और स्त्रियों के लिये इस बात की बहुत कम ही संभावना है कि वह अपने को बचा पायेंगे। जिस व्यक्ति ने धर्म का प्रतीक बाना पहन लिया उसे सिद्ध मान लेना इस समाज की कमजोरी है और यही कारण है कि ठग इसी भेष में अधिक घूमा करते हैं।
सोना, चांदी, या रुपया कभी कोई तिगुना नहीं कर सकता यह सर्वमान्य तथ्य है और सर्वशक्तिमान से तो यह आशा करना भी बेकार है कि वह अपने किसी दलाल को ऐसी सिद्धि देगा कि वह माया को तिगुना कर देगा। सर्वशक्तिमान का माया पर बस नहीं है पर इसके बावजूद माया में भी ऐसी शक्ति नहीं कि वह अपने को तिगुना कर ले। माया की लोग निंदा करते हैं पर उसके भी उसूल हैं-वह असली सोना, चांदी और रुपये में बसती है और नकली से उसे भी नफरत है। माया को सर्वशक्तिमान से इतना डर नहीं लगता जितनी नकली माया से लगता है। सर्वशक्तिमान ने माया को नहीं बनाया पर फिर भी वह उसके बंदों के बनाये कानूनों के अनुसार ही रचे तत्वों में बसती है और जो उससे बाहर है उसमें वह नहीं जाती। मगर बंदों में भी कुछ ऐसे हैं जो नकली सोना, चांदी और रुपये बनाकर नकली माया खड़ी करते हैं। कहने का तात्पर्य है कि माया बहुत शक्तिशाली है पर इतनी नहीं कि वह अपने को तिगुना कर ले। अगर गले का हार एक तोले का है तो वह दो तोले का तभी होगा जब उसमें दूसरा सोना लगेगा। एक रुपया तभी दो होगा जब उसके साथ दूसरा असली जुड़ेगा। यह रुपया और सोना भी एक इंसान के द्वारा दूसरे को दिया जायेगा तभी बढ़ेगा। यह संभव नहीं है कि किसी बैंक में पड़ा रुपया किसी के घर बिना किसी लिये दिये पहुंच जाये।
मगर उस साधु ने लोगों को माता का चमत्कार बताया और रुपया और जेवर यह कहता हुआ लेता गया कि उसका वह तीन गुना कर देगा। लोग दौड़ पड़े। एक शहर से दूसरे शहर और फिर तीसरे और फिर चैथे………..इस तरह यह संख्या दस तक पहुंच गयी। लोग टेलीफोन के जरिये अपने परिचितों को संदेश भेजने लगे कि‘आओ भई, साथ में रुपया और जेवर लेकर आओ और तिगुना पाओ।’
साधु होने पर बिना पैसे खर्च किये अपना विज्ञापन हो जाना भी कोई आश्चर्य की बात नहीं है। हम लोग दावा करते है कि अपने देश में अखबार और टीवी चैनल से भारी जागरुकता आ रही है मगर ऐसे समाचार इस दावे की पोल खोल देते हैं। वह साधु पकड़ा गया और अब रोती हुई औरतों की सूरतें देखकर यह लगता है कि आखिर किसने किसको ठगा है? वह कहती हैं कि साधु ने ठगा है।’
साधु कहता है कि ‘मैने तो लोगों से कहा तो वह विश्वास करते गये।’
जो ठगे गये वह कहते हैं कि ‘साधु ने ठगा है’। क्या उनकी बात मान लें। साधु से तो कानून निपटेगा पर उन लोगों से कौन निपटेगा जो स्वयं अपने को ठगते गये। अगर उन्होंने साधु को पैसा दिया तो क्या उन्होंने सोचा कि रिजर्व बैंक द्वारा बनाये गये नोट बकायदा नंबर डालकर सतर्कता से जारी किये जाते हैं। वह बिना किसी इंसानी हाथ के इधर से उधर नही जा सकते फिर उस साधु के पास वह कैसे आयेंगे। आ सकते हैं पर वह नकली हो सकते हैं।
अब ठगे गये लोग रो रहे हैं। हमें भी बहुत रोना आ रहा था पर वह इस बात पर नहीं कि साधु ने उनको ठगा बल्कि उन्होंने स्वयं को ठगा। इस देश में ठगों की संख्या कम नहीं है। यह देश हमेशा ठगने के लिये तैयार बैठा रहता है। पहले आंकड़ों का सट्टा लगाकर अपढ़ और मजदूर को ठगा जाता था अब खेलों और रियल्टी शो पर सट्टा लगाकर पढ़े लिखे लोगों को ठगा जा रहा है।
मजे की बात यह है कि अनेक बर्बाद लोग इस बात को मानते हैं कि आजकल सभी जगह ठगी है मगर जेब में पैसा आते ही उनका दिमाग फिर जाता है और चल पड़ते हैं ठगे जाने के लिये यह सोचकर कि शायद दाव लग जाये।
हम सब यह देखते हुए सोचते है कि कौन किसको ठग रहा है। कोई ठग किसी सामान्य आदमी के साथ ठगी कर रहा है या आदमी खुद अपने आपको उसके समक्ष प्रस्तुत कर स्वयं को ठग रहा है।
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किसी की भक्ति भी होती है सनसनीखेज खबर- हास्य व्यंग्य (hasya vyangya)


जहां तक मेरी जानकारी है खबर में यही था कि अमेरिका में राष्ट्रपति पद उम्मीदवार ओबामा अपनी जेब में रखने वाले पर्स में कुछ पवित्र प्रतीक रखते हैं और उसमें सभवतः हनुमान जी की मूर्ति भी है, पर इसकी पुष्टि नहीं हो पायी है।
यह खबर देश के प्रमुख समाचार माध्यम ऐसे प्रकाशित कर रहे हैं जैसे कि कोई उनके हाथ कोई खास खबर लग गयी है और देश का कोई खास लाभ होने वाला है। यहां यह स्पष्ट कर दूं कि जिस अखबार में मैंने यह खबर पढ़ी उसमें साफ लिखा था कि ‘इसकी पुष्टि नहंी हो पायी।‘

जिस तरह इस खबर का प्रचार हो रहा है उससे लगता है कि अगर इसकी पुष्टि हो जाये तो फिर ओबामा की तस्वीरों की यहां पूजा होने लगेगी। जब पुष्टि नहीं हो पायी है तब यह शीर्षक आ रहे हैं ‘हनुमान भक्त ओबामा’, ओबामा करते हैं हनुमान जी में विश्वास’ तथा ‘हनुमान जी की मूति ओबामा के पर्स में’ आदि आदि। एक खबर जिसकी पुष्टि नहीं हो पायी उसे जबरिया सनसनीखेज और संवेदनशीन बनाने का प्रयास। यह कोई पहला प्रयास नहीं है।
अगर मान लीजिये ओबामा हनुमान जी में विश्वास रखते भी हैं तो क्या खास बात है? और नहीं भी करें तो क्या? वैसे हम कहते हैं कि भगवान श्रीराम और हनुमान जी हिंदूओं के आराध्यदेव हैं पर इसका एक दूसरा रूप भी है कि विश्व में जितने भी भगवान के अवतार या उनके संदेश वाहक हुए हैं इन्हीं प्रचार माध्यमों से सभी जगह प्रचार हुआ है और उनके व्यक्तित्व और कृतित्व में जो आकर्षण है उससे कोई भी प्रभावित हो सकता है। भगवान श्रीराम, श्रीकृष्ण और हनुमान के चरित्र विश्व भर में प्रचारित हैं और कोई भी उनका भक्त हो सकता है। श्रीरामायण और श्रीगीता पर शोध करने में कोई विदेशी या अन्य धर्म के लोग भी पीछे नहीं है।

ओबामा हनुमान जी भक्त हैं पर इस देश में असंख्य लोग उनके भक्त हैं। मैं हर शनिवार और मंगलवार को मंदिर अवश्य जाता हूं और वहां इतनी भीड़ होती है कि लगता है कि अपने स्वामी भगवान श्रीराम से अधिक उनके सेवक के भक्त अधिक हैं। कई जगह भगवान के श्रीमुख से कहा भी गया है कि मुझसे बड़ा तो मेरा सेवक और भक्त है-हनुमान जी के चरित्र को देखकर यह प्रमाणित भी होता है। भगवान श्रीराम की पूजा अर्चना के लिए कोई दिन नियत हमारे नीति निर्धारकों ने तय नहीं किया इसलिये उनके मंदिरों में लोग रोज आते जाते हैं और किसी खास पर्व के दिन पर ही उनके मंदिरों में भीड़ होती है और उस दिन भी हनुमान के भक्त ही अधिक आते हैं। यानि भारत के लोगों में हृदय में भगवान श्रीराम और हनुमान जी के लिये एक समान श्रद्धा है और उनकी कृपा भी है। फिर ओबामा को लेकर ऐसा प्रचार क्यों?

लोगों को यह विश्वास दिलाने की कोशिश बेकार है कि देखो हमारे भगवान सब जगह पूजे जा रहे हैं इसलिये फिक्र की बात नहीं है अभी किसी दूसरे देश में किसी पर की है कभी हम पर भी करेंगे। इस प्रचार तो वही प्रभावित होंगे कि जिनको मालुम ही नहीं भक्ति होती क्या है? भक्ति कभी प्रचार और दिखावे के लिये नहीं होती। इतना शोर मच रहा है कि जैसे ओबामा ने पर्स में हनुमान जी मूर्ति रख ली तो अब यह प्रमाणित हो गया है कि हनुमान जी वाकई कृपा करते हैं। मगर इस प्रमाण की भी क्या आवश्यकता इस देश में है? यहां ऐसे एक नहीं हजारों लोग मिल जायेंगे जो बतायेंगे कि किस तरह हनुमान जी की भक्ति से उनको लाभ होते हैं। जिन लोगों में भक्ति भाव नहीं आ सकता उनके लिये यह प्रमाण भी काम नहीं करेगा। भगवान श्रीराम के निष्काम भाव से सेवा करते हुए श्री हनुमान जी ने उनके बराबर दर्जा प्राप्त कर लिया-जहां भगवान श्रीराम का मंदिर होगा वहां हनुमान जी की मूर्ति अधिकतर होती है पर हनुमान जी मंदिर में भगवान श्रीराम की मूर्ति हो यह आवश्यक नहीं है- पर ओबामा उनकी तस्वीर पर्स में रखकर क्या बनने वाले हैं। पांच साल अधिक से अधिक दस साल अमेरिका के राष्ट्रपति बनने के अलावा उनके पास कोई उपलब्धि नहीं रहने वाली है। तात्कालिक रूप से यह उपलब्धि अधिक लगती है पर इतिहास की दृष्टि से कोई अधिक नहीं है। अमेरिका के कई राष्ट्रपति हुए हैं जिनके नाम हमें अब याद भी नहीं रहते। फिर अगर उनके हाथ सफलता हाथ लगती है तो वह किसकी कृपा से लगी मानी जायेगी। जहां तक मेरी जानकारी है तीन अलग-अलग प्रतीकों की बात की जा रही है जिनमें एक हनुमान जी की मूर्ति भी है। फिर यह प्रचार क्यों?

भारत सत्य का प्रतीक है और अमेरिका माया का। माया जब विस्तार रूप लेती है तो मायावी लोग सत्य के सहारे उसे स्थापित करने का प्रयास करते हैं। जिनके पास इस समय माया है उनको अमेरिका बहुत भाता है इसलिये वहां की हर खबर यहां प्रमुखता से छपती है। अगर वह धार्मिक संवेदनशीलता उत्पन्न करने वाली हो तो फिर कहना ही क्या? एक बात बता दूं कि इस बारे में मैंने एक ही अखबार पढ़ा है और उसमें इसकी पुष्टि न करने वाली बात लिखी हुई। तब संदेह होता है कि यह सच है कि नहीं। और है भी तो मेरा सवाल यह है कि इसमें खास क्या है? क्या हनुमान जी की भक्ति करने वाले मुझ जैसे लोगों को किसी क्रे प्रमाण या विश्वास के सहारे की आवश्यकता है?

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इस तरह वह शादी न हो सकी-हास्य कविता


मंडप में पहुंचने से पहले ही
दूल्हे ने दहेज़ में
मोटर साइकल देने की माँग उठाई
उसके पिता ने दुल्हन के पिता को
इसकी जानकारी भिजवाई
मच गया तहलका
दुल्हन के पिता ने
आकर दूल्हे से किया आग्रह
शादी के बाद मोटर साइकल देने का
दिया आश्वासन
पर दूल्हे ने अपनी माँग
तत्काल पूरी करने की दोहराई

मामला बिगड़ गया
दूल्हे के साथ आए बरातियों ने
दुल्हन पक्ष की कंगाल कहकर
जमकर खिल्ली उडाई
दूल्हन का बाप रोता रहा ख़ून के आंसू
दूल्हे का जमकर हंसता रहा
आख़िर कुछ लोगों को आया तरस
और बीच-बचाव के लिए दोनों की
आपस में बातचीत कराई
मोटर साइकल जितने पैसे
नकद देने पर सहमति हो पाई

दुल्हन के सहेलियों ने देखा मंजर
पूरी बात उसे सुनाई
वह दनदनाती सबके सामने आयी
और बाप से बोली
‘पापा आपसे शादी से पहले ही
मैंने शर्त रखी थी कि मेरे
दूल्हे के पास होनी चाहिए कार
पर यह तो है बेकार
मोटर साईकिल तक ही सोचता है
क्या खरीदेगा कार
मुझे यह शादी मंजूर नहीं है
तोड़ तो यह शादी और सगाई’

अब दूल्हा पक्ष पर लोग हंस रहे थे
‘अरे, लड़का तो बेकार है
केवल मोटर साइकिल तक की सोचता है’
बाद में क्या करेगा अभी से ही
दुल्हन के बाप को नोचता है
क्या करेंगे ऐसा जमाई’

बात बिगड़ गयी
अब लड़के वाले गिडगिडाने लगे थे
अपनी मोटर साइकल की माँग से
वापस जाने लगे थे
दूल्हा गया दुल्हन के पास
और बोला
‘मेरी शराफत समझो तुम
मोटर साइकल ही मांगी
मैं कार भी माँग सकता था
तब तुम क्या मेरे पास हवाई जहाज
होने का बहाना बनाती
अब मत कराओ जग हँसाई’
दुल्हन ने जवाब दिया
‘ तुम अभी भी अपनी माँग का
अहसान जता रहे हो
साइकिल भी होती तुम्हारे पास
मैं विवाह से इनकार नहीं करती
आज मांग छोड़ दोगे फिर कल करोगे
मैंने तुममें देखा है कसाई’
दूल्हा अपना मुहँ लेकर लॉट गया
इस तरह शादी नही हो पायी
——————-

गरीबों का नाम बहुत बड़ा, दर्शन होता है छोटा-हास्य व्यंग्य


एक टीवी चैनल पर प्याज के बढती कीमतों पर लोगों के इन्टरव्यू आ रहे थे, और चूंकि उसमें सारा फोकस मुंबई और दिल्ली पर था इसलिये वहाँ के उच्च और मध्यम वर्ग के लोगों से बातचीत की जा रही थी। प्याज की बढती कीमतें देश के लोगों के लिए और खास तौर से अति गरीब वर्ग के लिए चिंता और परेशानी का विषय है इसमें कोई संदेह नहीं है पर जिस तरह उसका रोना उसके ऊंचे वर्ग के लोग रोते हैं वह थोडा अव्यवाहारिक और कृत्रिम लगता है। उच्च और मध्यम वर्ग के लोग यही कह रहे थे किश्प्याज जो पहले आठ से दस रूपये किलो मिल रहा था वह अब पच्चीस रूपये होगा। इसे देश का गरीब आदमी जिसका रोटी का जुगाड़ तो बड़ी मुशिकल से होता है और वह बिचारा प्याज से रोटी खाकर गुजारा करता है, उसका काम कैसे चलेगाश्?

अब सवाल है कि क्या वह लोग प्याज की कीमतों के बढने से इसलिये परेशान है कि इससे गरीब सहन नहीं कर पा रहे या उन्हें खुद भी परेशानी है? या उन्हें अपने पहनावे से यह लग रहा था कि प्याज की कीमतों के बढने पर उनकी परेशानी पर लोग यकीन नहीं करेंगे इसलिये गरीब का नाम लेकर वह अपने साक्षात्कार को प्रभावी बना रहे थे। हो सकता है कि टीवी पत्रकार ने अपना कार्यक्रम में संवेदना भरने के लिए उनसे ऐसा ही आग्रह किया हो और वह भी अपना चेहरा टीवी पर दिखाने के लिए ऐसा करने को तैयार हो गये हौं। यह मैं इसलिये कह रहा हूँ कि एक बार मैं हनुमान जी के मंदिर गया था और उस समय परीक्षा का समय था। उस समय कुछ भक्त विधार्थी मंदिर के पीछे अपने रोल नंबर की पर्ची या नाम लिखते है ताकि वह पास हो सकें। वहां ऐक टीवी पत्रकार एक छात्रा को समझा रहा थाश्आप बोलना कि हम यहाँ पर्ची इसलिये लगा रहे हैं कि हनुमान जीं हमारी पास होने में मदद करें।श्
उसने और भी समझाया और लडकी ने वैसा ही कैमरे की सामने आकर कहा। वैसे उस छात्र के मन में भी वही बातें होंगी इसमें कोई शक नहीं था पर उसने वही शब्द हूबहू बोले जैसे उससे कहा गया था।

प्याज पर हुए इस कार्यक्रम में जैसे गरीब का नम लिया जा रहा था उससे तो यही लगता था कि यह बस खानापूरी है। मेरे सामने कुछ सवाल खडे हुए थे-
क्या इसके लिए कोई ऐसा गरीब टीवी वालों को नहीं मिलता जो अपनी बात कह सके। केवल उन्हें शहरों में उच्च और मध्यम वर्ग के लोग ही दिखते हैं, और अगर गरीब नहीं दिखते तो यह कैसे पता लगे कि गरीब है भी कि नहीं। जो केवल प्याज से रोटी खाता है उसका पहनावा क्या होगा यह हम समझ सकते हैं तो यह टीवी पत्रकार जो अपने परदे पर आकर्षक वस्त्र पहने लोगों को दिखाने के आदी हो चुके हैं क्या उससे सीधे बात कराने में कतराते हैं जो वाकई गरीब है। उन्हें लगता है कि गरीब के नाम में ही इतनी ही संवेदना है कि लोग भावुक हो जायेंगे तो फिर फटीचर गरीब को कैमरे पर लाने की क्या जरूरत है। जो गरीब है उसे बोलने देना का हक ही क्या है उसके लिए तो बोलने वाले तो बहुत हैं-क्या यही भाव इन लोगों का रह गया है। आजादी के बाद से गरीब का नाम इतना आकर्षक है कि हर कोई उसकी भलाई के नाम पर राजनीति और समाज सेवा के मैदान में आता है पर किसी वास्तविक गरीब के पास न उन्हें जाते न उसे पास आते देखा जाता है। जब कभी पैट्रोल और डीजल की दाम बढ़ाये जाते है तो मिटटी के तेल भाव इसलिये नही बढाए जाते क्योंकि गरीब उससे स्टोव पर खाना पकाते हैं। जब कि यह वास्तविकता है कि गरीबों को तो मिटटी का तेल मिलना ही मुश्किल हो जाता है। देश में ढ़ेर सारी योजनाएं गरीबों के नाम पर चलाई जाती हैं पर गरीबों का कितना भला होता है यह अलग चर्चा का विषय है पर जब आप अपने विषय का सरोकार उससे रख रहे हैं तो फिर उसे सामने भी लाईये। प्याज की कीमतों से कोई मध्यम वर्ग कम परेशान नहीं है और अब तो मेरा मानना है कि मध्यम वर्ग के पास गरीबों से ज्यादा साधन है पर उसका संघर्ष कोई गरीब से कम नहीं है क्योंकि उसको उन साधनों के रखरखाव पर भी उसे व्यय करने में कोई कम परेशानी नहीं होती क्योंकि वह उनके बिना अब रह नहीं सकता और अगर गरीब के पास नहीं है तो उसे उसके बिना जीने की आदत भी है। पर अपने को अमीरों के सामने नीचा न देखना पडे यह वर्ग अपनी तकलीफे छिपाता है और शायद यही वजह है कि ऐक मध्यम वर्ग के व्यक्ति को दूसरे से सहानुभूति नहीं होती और इसलिये गरीब का नाम लेकर वह अपनी समस्या भी कह जाते है और अपनी असलियत भी छिपा जाते हैं। यही वजह है कि टीवी पर गरीबों की समस्या कहने वाले बहुत होते हैं खुद गरीब कम ही दिख पाते हैं। सच तो यह है कि गरीबों के कल्याण के नारे अधिक लगते हैं पर उनके लिये काम कितना होता है यह सभी जानते हैं।

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धूल ने क्लर्क को सिखाया-हिंदी शायरी


बहुत दिन बाद ऑफिस में

आये कर्मचारी ने पुराना

कपडा उठाया और

टेबल-कुर्सी और अलमारी पर

धूल हटाने के लिए बरसाया

धूल को भी ग़ुस्सा आया

और वह उसकी आंखों में घुस गयी

क्लर्क चिल्लाया तो धूल ने कहा

‘धूल ने कहा हर जगह प्रेम से

कपडा फिराते हुए मुझे हटाओ

मैं खुद जमीन पर आ जाऊंगी

मुझे इंसानों जैसा मत समझो

कि हर अनाचार झेल जाऊंगी

इस तरह हमले का मैंने हमेशा

प्रतिकार किया है

बडों-बडों के दांत खट्टे किये हैं

जब भी कोई मेरे सामने आया ‘
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आँखें उनको देखने को तरस जाती हैं-हिंदी शायरी


मेरी नाव डुबोने वाले बहुत हैं
पर उनकी याद कभी नहीं आती
मझधार में भंवर के बीच आकर जो
किनारे तक पहुंचा जाते
फिर नजर नहीं आते
ऐसे मित्रों की याद मुझे सताती

घाव करने के लिए इस जहां में बहुत हैं
जो बदन से रिसता लहू देखकर
जोर से मुस्कराते हैं
जिन्होंने घावों को सहलाया
जब तक दूर नहीं हुआ दर्द
अपना साथ निभाया
फिर ऐसे गायब हुए कि दिखाई न दिए
आँखें उनको देखने को तरस जाती हैं

इस जिन्दगी के खेल बहुत हैं
नाखुश लोगों से दूर नहीं जाने देती
जो तसल्ली देते हैं
उनको आँखों से दूर ले जाती है
शायद इसलिए दुनिया रंगरंगीली कहलाती हैं
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The diet of the poor oppressed? Comic satire


U.S. president has said that food crisis in the world for the people of India are responsible for it more accounts. His statement, it is a matter left over here and that the U.S. is now living in the Indian point of view, doubt there will see. If the flood due to famine elsewhere in the U.S. food crisis ever came to him, the Indians will be on the simple target. Although there are also the people of Pakistan and Bangladesh are now and always will be an opportunity he escaped, he also came to the Indians on the run up to people everywhere that this crisis to eat more.

it orignal hindi comic satire translet by googl tool in inglish, so any mistek writer is not resoposible-Deepak Bharatdeep

It seems that democracy is restored after the United States on meharbaan is happening now in Pakistan and their camps in any way it wants to because it is now the world’s trouble there is terrorism, not the Indians up by the food crisis due to over-eating is showing . It may be that the people of India and Pakistan come closer to the U.S. is not tolerated and indirectly from the people of Pakistan to the message being that the Indian people try to escape and account for more You will eat the grain.

America’s position now is wobbly because the Iraq and Afghanistan proved to be a big headache. India, like the U.S. is expected to be completed were not here because of the internal situation is no less challenging. mr. bush’s statement as a result of stress because they seem to have their presidential elections before it was also aware that India is not in what direction. His Foreign Minister Rice कोंडला and then she comes to India are moved. India’s diversity and the characteristics of the doubt to address them. His statement only after his statement in support of the mr. bush come.

The statement of the mr. bush We do not blame anyone involved must be viewed as a rich nation, the head. This mentality is that the rich of the poor they eat, drink and sleep like the rest is not – because they are naseeb from the things they do when the money is coming. If not my thing, you know wellknown poet Rahim, who have been saying that the rich concoction of low power. Now it is known that the whole body of the sport depends on the strength of digestion of food. If he is not and will not sleep well because of the stress will continue. American Indian spiritual people, why are so many giggles? India’s why there has been promoting yoga? For pleasure in the U.S. – facilities because of physical labor practice is becoming less. This condition is the hypocrisy and sanctimonious Baba there running his disciples by making their work is. This means that the Indians have been eating on his comments a similar result seems to stress that at this time in their minds.
There were several times in this country view that the road to get on their trucks and tralee summer afternoon in the bottom of the workers are afraid to eat the rich to take a sleep in the AC, it does not naseeb.

The rich do not get to the point that he has the pleasure of property, prosperity and reputation is that they are faced with the suffering of the poor how to live without him? So how do the rest, while they sleep for it to take pills. We ask what George Bush his country’s rich people think and what the different state now, such a statement came here to be very rich class and now here is the perception of poor eating on the convulsions. Which is good that it is now working hard to influence appetite seems to be the best man will eat and eat it too hard. Hunger and honestly feel good to income earned in each person’s fate is not.

U.S. economic course were recommended by the country goes on is still working hard on the farmers of the country’s economy alive. The industry seems to glow in the cities, is the only artificial, it is the truth, then one can see. Raj, the rich have the disease and its treatment is also money for the poor to have his body except for what it is and if she did not save where it will be. The industrial and technological development are talking about it non-technical workers and employees do not look for a place in the struggle and a man who can earn their bread if it has been run so long that not even the pain in his heart One has to be heard – it’s his sweat drops out of the country. Such convulsions are also rich in many of the poor are poor because there are more account of the Bush Sahib also say if he has no need to be more troubling.

क्रिकेट मैच के लिये एक्शन सीन लिख देना-हास्य व्यंग्य


ब्लागर अपने कंप्यूटर पर बैठा था कि उसकी पत्नी ने उसे दूसरे ब्लागर के मिलने की खबर अंदर आकर सुनायी। उसने कहा-‘बोल दो घर पर नहीं है।’

तब तक दूसरा ब्लागर अंदर आ गया और बोला-‘भाई साहब हमसे क्या नाराजगी है?’

पहले ब्लागर ने कहा-‘‘नाराजगी तुमसे नहीं है। तुम्हारी भाभीजी से है तुम्हें अंदर न बुलाकर हमें यह बताने आयीं हैं कि तुम आ गये हो। वैसे हमारी नजरें बहुत तेज हैं और हमने देख लिया था कि तुम अंदर आये हो।’

वह आकर उसके पास रखी कुर्सी पर बैठ गया और बोला-‘‘भाभीजी, आप मुझे शिकंजी पिलाईये। भाई साहब जरूर शिकंजी पीते हैं-ऐसा मेरा विश्वास है।’

पहले ब्लागर ने कहा-‘पर यह बात हमने अपने किसी ब्लाग पर तो नहीं लिखी।’

दूसरा ब्लागर बोला-‘मैने अंदाजा कर लिया था। शिकंजी पीकर इंटरनेट पर ब्लाग पर अच्छी तरह लिखा जा सकता है।’

भद्र महिला चली गयी तो वह अपने असली रूप में आ गया और बोला-‘पर जरूरी नहीं है कि शिकंजी पीकर हर कोई ब्लाग पर अच्छा लिख सकता हो।’

पहले ब्लागर ने कहा-‘हां इसमें कोई शक नहीं है, अगर वह कुछ लिखता हो तो?’
दूसरे ने ब्लागर ने कहा-‘हम पर फब्तियां कस रहे हो!
पहले ब्लागर ने कहा-‘‘और तुम क्या कर रहे थे?वैसे इधर कैसे भटक गये।’
दूसरे ब्लागर ने कहा-‘‘मैं एक क्रिकेट प्रतियोगिता करा रहा हूं। जिसमें चार ब्लागर और चार कमेंटरों की टीमें हैं। मै चाहता हूं कि तुम उनके लिये कोई एक्शन सीन लिख दो।’

तब तक गृहिणी शिकंजी के ग्लास बनाकर लायी। उसने जब सुना कि कोई क्रिकेट के एक्शन सीन की बात हो रही है तो वह उत्सुकतावश वहीं एक तरफ बैठ गयी।
पहला ब्लागर-‘क्रिकेट मैच के लिये एक्शन सीन? और इतने सारे ब्लागर और कमेंटर तुम्हारे पास आये कहां से? क्या कहीं से नीलामी में ले आये क्या?’

दूसरा ब्लागर अब गृहिण की उपस्थिति के आभास होने पर सम्मान के साथ बोला-‘अरे भाईसाहब, आप भी कैसी बात करते हो। अरे, आजकल वह समय गया। आप देख नहीं रहे कहां का खिलाड़ी कहां खेल रहा है। शहर का वासी हो या न हो तो पर उस शहर की तरफ से खेल तो सकता है। वैसे ही ब्लागर हो या न हो, कमेंटर हो या न हो और उसने कभी इंटरनेट खोला भी न हो पर हमने कह दिया कि ब्लागर तो ब्लागर। हमें अपने काम और कमाई से मतलब है।’
दूसरा ब्लागर उसे हैरानी से देखने लगा। फिर वह बोला-‘‘आप तो कुछ एक्शन सीन लिख दो। आजकल तो क्रिकेट के साथ एक्शन भी जरूरी है। किसी खिलाड़ी को किससे लड़वाना है। लड़ाई के लिये वह कौनसा शब्द बोले यह लिखना है। थप्पड़ या घूसा किस तरह मारे और दूसरे के जोर से लगता दिखे पर लगे नहीं इसलिये मैं ही एक्शन डायरेक्टर तो मैं ही रहूंगा पर यह तो कोई पटकथा लेखक ही तय कर सकता है। फिर उसके लिये कमेटी होगी तो उसमें बहस के डायलाग लिखवाना है। सजा का क्या हिसाब-किताब हो यह भी लिखना है। एक-दो खिलाड़ी ऐसे है जिनको एक दो मैच बाद बाहर बैठने के लिये राजी कर लिया है। उसके लिये तमाम तरह का प्रचार कराना है।

गृहिणी ने पूछा-‘पर यह किसलिये?’

वह बोला-‘अपने शहर की इज्जत बढ़ाने के लिये। देखिये हमारे शहर की कोई टीम नहीं बुला रहा। इसलिये मैं अपने शहर में क्रिकेट के खेल के विकास के लिये यह कर रहा हूं। स्थानीय मीडिया मेंे भी इसके लिये संपर्क साध रहा हूं ताकि अधिक से अधिक लोग वहां पहुंचे। और हां, इटरवैल में नाच गाने का भी इंतजाम किया है।’

पहले ब्लागर ने कहा-‘‘मैने आज तक कोई नाटक नहीं लिखा।’
दूसरा ब्लागर बोला-‘इसमे लिखने लायक है क्या? यह तो सब आसानी से हो जायेगा। बस थोड़ा सोचना भर है। मुझे अन्य व्यवस्थायें देखनीं नहंी होतीं तो मैं ही इस पर लिखता।’’

पहले ब्लागर ने कहा-‘‘मेरे बूते का नहीं है। जब झगड़ा कराना है तो उसके लिये कुछ ऐसा वैसा लिखना जरूरी है, और इस मामले में तुम जितने दक्ष हो मैं तो हो ही नहीं सकता।’

गृहिणी ने दूसरे ब्लागर की तरफ देखकर कहा-‘आपने तो सारे सीन पहले ही सोच लिये है। एकदम जोरदार कहानी लग रही है। बस आपको तो शब्द ही तो भरने हैं। अभी आप यह सीन बताकर जा रहे हैं यह तो उसे भी याद नहीं रख पायेंगे।फिर लिखेंगे कहां से? आप कोशिश करो तो अच्छा लिख लोगे।’
दोनो ने शिकंजी का ग्लास खत्म किया तो वह दोनों ग्लास उठाकर चली गयी । दूसरा ब्लागर बोला-‘‘ठीक है जब क्रिकेट मैच कराना है और उसमें एक्शन के सीन रखने हैं तो यह भी कर लेता हूं। देखो भाभीजी ने हमारा हौंसला बढ़ाया। एक तुम हो जब तब ऐसी वैसी बातें करते हो। भाभीजी बहुत भले ढंग से पेश आतीं हैं और तुम……………………छोड़ो अब तुमसे क्या कहूं

पहले ब्लागर ने कहा-‘हां, पर याद रखना मैंने तुम्हारी उस तुम्हारी पहले और आखिरी कमेंट के बारे में उसे कुछ नहीं बताया। क्या इसके लिये मुझे धन्यवाद नहीं दोगे?
दूसरे ने कहा-‘‘अच्छा मैं चल रहा हूं। और हां, इस ब्लागर मीट पर भी कुछ अच्छा लिख देना ताकि मेरी प्रतियोगिता को प्रचार मिले। फिर देखो तुम्हें कैसे फ्लाप से हिट बनाता हूं।’

वह चला गया और गृहिण ने पूछा-‘‘क्या कहा उसने?’

पहले ब्लागर ने कहा-‘तुमने भी तो सुना! यही कहा‘क्रिकेट मैच के लिये एक्शन सीन लिख देना’।’’

फिर वह मन में सोचने लगा-‘मैने इस बार भी नहीं पूछा कि इंटरनेट पर बने ब्लाग पर मैं यह रिपोर्ट हास्य कविता के रूप में लिखूं या नहीं। चलो अगली बार पूछ लूंगा।
नोट-यह काल्पनिक हास्य-व्यंग्य रचना है और इसका किसी घटना या व्यक्ति से कोई लेना-देना नहीं है। अगर किसी की कारिस्तानी से मेल हो जाये तो वही इसके लिये जिम्मेदार होगा। इन पंक्तियों का लेखक किसी ऐसे दूसरे ब्लागर से नही मिला।

क्रिकेट में अब देशप्रेम का सुख नहीं उठाते-हास्य कविता


आया फंदेबाज और बोला
‘क्या दीपक बापू किक्रेट भूल गये देखना
पता नहीं तुम्हें अब यहां
क्रिकेट मैच चल रहे हैं
तुम्हारे नेत्र उनका आनंद उठाने की बजाय
कंप्यूटर में जल रहे हैं
क्यों नहीं कुछ मजा उठाते’

सुन कर पहले उदास हुए
फिर टोपी लहराते हुए कहें दीपक बापू
‘जजबातों में बहकर देख लिया
जिनकी जीत पर हंसे
और हारने पर रोए
उनके खिलवाड़ को सहकर देख लिया
कमबख्तों ने पहले राष्ट्रप्रेम जगाने के लिये
आजादी के गाने सुनवाये
और हमारे जजबातों से खूब पैसे बनाये
अब क्रिकेट हो गया बाकी सब जगह कंगाल
विदेशी खिलाड़ी हो रहे बेहाल
किसी भी तरह इस देश में ही कमाना है
पर बाहर ही तो रखना अपना खजाना है
इसलिये देश में अंदर ही बंटने के लिये
देश की बजाय टीमों के नाम की भक्ति के लिये
नये-नये मनोरंजक तराने बनवाये
अब तो देशप्रेम उनको सांप की तरह
डसने लगता है
क्योंकि विदेशी नाराज न हो जायें
इससे शरीर उनका कंपता है
हमें तो लगने लगा है कि
इतिहास में ही आडम्बर भरा पड़ा है
गुलामी का दैत्य तो अब भी यहीं खड़ा है
कभी इस देश को एक करने के लिये
सब जगह नारे लगे
अब बांटने के लिये सितारे लगे
पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण में
मनोरंजन के नाम पर बांटा जा रहा है
देशप्रेम से शायद व्यापार नहीं होता
विश्व के सबसे उपभोक्ता यहीं हैं
उनको बांटने से ही कई लोगों का
बेड़ा पार यहीं होता
देशप्रेम हम नहीं छोड़ पाते
उसके नाम के बिना क्रिकेट में सुख नहीं पाते
लोग उसे भुलाने के लिये
बन रहे हैं बैट बाल के खेल में
पेश कर रहे हैं नृत्य और गाने
उसे देखेंगे शोर के दीवाने
हास्य कविता लिखेंगे हम जैसे सयाने
अब हम क्रिकेट से मनोरंजन नहीं उठाते
……………………………………
क्रिकेट में अब देशप्रेम का सुख नहीं उठाते-हास्य कविता

तुम दृष्टा बन जाओ-कविता साहित्य


भीड़ में अपनों की तलाश
अपनों में आत्मीय की तलाश
कभी भी नहीं होती पूरी
दिल होता निराश
बाजार में खरीदने-बेचने निकले
क्यों करें सम्मान की आस
बिचोलियों से ही चलता बाजार
क्या अच्छा क्या बुरा
चीजों के होते अपने दाम
बेचो या खरीदों
धंधे हैं जिनके उनके लिए
सौदेबाजी के अलावा और क्या होता उनका काम
हाट में क्यों करें सम्मान की तलाश

बिकता है सब यहाँ
गद्य-पद्य और गीत-संगीत
पल भर के लिए मिलते मीत
पैसे से चाहे जिसका दिल लो जीत
जानने की कोशिश मत करो
असली है कि नकली प्रीत
जांचने कि कोशिश करेगी चिंता पैदा
बढता हुआ तनाव कर देगा
सुंदर देह का विनाश

फ़िर भी रास्ते हैं
बचने के लिए
इसे जीवन पथ पर
सहजता से चलने के लिए
कहीं चीजों की तरह सजने से
अच्छा होगा दृष्टा बन जाओ
सौदे में खरीदो खुशी मन की
उसके सृष्टा ख़ुद बन जाओ
आते-जाते देखो
लोगों की खुशिया और गम
कहीं प्रकाश कहीं तम
सब चीजें तुम्हारे सामने
खडी हो जायेंगे
जिनकी करते तुम तलाश
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वही प्यार पाने के लिए तरसे-कविता


कोई दौलत को तो कोई आदमी प्यार को तरसे
कोई तरसता है तो कोई बैचेन होता अपने घर से
ऊहापोह हैं जिन्दगी निकल जाती, पकड़ नहीं पाते
घंटों सोच में बिताते, पर नहीं निभाते पल भर से
दौलत के ढेर पर बैठकर, बदहाल नीचे खडे लोग देखते
नीचे खडे होते, तब ऊपर से रोटी गिरने के लिए तरसे
अपने लिए ढूंढते हैं सभी खुशियों की सौगात
पर अपने दुख दूसरों से बांटने के लिए तरसे
अपने होने का अस्तित्व का अहसास सबको है
नहीं रखते वास्ता रखते, दूसरे के जिगर से
जो जान पाते जिन्दगी का रंग-बिरंगा रूप
तो देख पाते सबके तमाशे अपनी नजर से
अपनी खुशी के आकाश को ऊंचा उठते तो देखा
पर साथ लेते उनको भी, जो उड़ने के लिए तरसे
तभी जाने पाते जिन्दगी जिन्दादिली का नाम
अपने लिए जो जिए, वही प्यार पाने को तरसे
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ख्याल और जिंदगी-हिन्दी साहित्य कविता


बरसों साथ पलता है ख्याल मन में
पर जब सच होकर सामने आता
पर जो देखते थे तब भी नजर नहीं आता
घड़ी का काँटा चलता जाये
मौसम भी बदलता जाये
पर हम खडे रहते वहीं
जहाँ हमारा ख्याल हमें ठहराता

कई बरस तक रहता है कोई ख्याल
जब सामने आता है तो
खुद ही होते बेहाल
उसका रूप वैसा नहीं होता
कभी-कभी तो उजड़ा रूप सामने आता
यह जिन्दगी एक सफर है
जिसका पहिया घूमता जाये
हमारे पाँव कहीं नहीं ठहरते
फिर भी ख्याल नहीं बदलते
अपने ख्याल पह ही अड़ते
कभी जो सच नहीं बन पाता

क्यों अपनी ख्याली दुनिया बनाते हैं
क्यों अपना जिस्म जलाते हैं
ख्यालों से करते जो दोस्ती
उनका कहीं ठिकाना नहीं बनता
बदलते वक्त के साथ बहते हैं
यह जीवन भी उनको रास आता
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समाज को काटकर कल्याण के लिए सजाते-व्यंग्य कविता


समाज को काटकर कल्याण के लिए सजाते-व्यंग्य कविता
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समाज को टुकडों-टुकडों में बांटकर
उसे अब दिखाने के लिए वह सजाते
हर टुकड़े पर लगते मिटटी का लेप
और रंग-बिरंगा बनाते

बालक, वृद्ध, महिला, युवा, और अधेड़ के
कल्याण की लगाते तख्तिया और
उनके कल्याण के लिए बस
तरह-तरह के नारे लगाते
इन्हीं टुकडों में लोग अपनी पहचान तलाशते
स्त्री से पुरुष का
जवान से वृद्ध का भी हित होगा
इस सोच से परे होकर
कर रहे हैं दिखावे का कल्याण
फिर भी समाज जस का तस है
चहूँ और चल रहा अभियान
असली मकसद तो अपने घर भरना
वाद और नारा है कल्याण
अगर समाज एक थाली की तरह सजा होता
तो दिखाने के लिए भरने पड़ते पकवान
टुकडों में बाँट कर छेडा है जोड़ने का अभियान
अब कोई पूछता है तरक्की का हिसाब तो
समाज के टुकडों को जोड़ता दिखाते

तोड़ने और बांटने की कला
देखकर अब तो अंग्रेज भी शर्माते
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जिन के सिर पर होता कोहिनूर चैन से होते वही दूर-कविता साहित्य
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कई लोग लड़ते हैं जंग
सभी को हमेशा सिंहासन
नसीब नहीं होता
अगर मिल भी जाये तो
उस पर बैठना कठिन होता
चारों तरफ फैला उनका नाम
कदम-कदम पर उनका चलता
दिखता है हुक्म
पर यह एक भ्रम होता

चैन और सब्र से होता दूर
मन का गरीब होता है
तारीख है गवाह इस बात की
खतरे में वही जीते हैं
जिन के सिर कोहिनूर होता
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कभी चले थे साथ-साथ-कविता साहित्य
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कभी चले थे हम साथ-साथ
थामें रहते थे एक-दूसरे का हाथ

एक दूसरे के दिल थे इतने पास
कभी अलग होंगे
यह हमने सोचा ही नहीं था
वक्त गुजरते-गुजरते दूर होते गए
हम पाले रहे याद उनकी
उनके बिना लम्हें खालीपन के साथ

यूं ही गुजरते रहे
कभी दिल भी इतनी दूर होंगे
यह हमने सोचा ही नहीं था
उनकी याद में हमें दिल में
चिराग उम्मीद के जगाये रखे
जब भी उनकी याद आयी
अधरों पर मुस्कान उभर आयी
हम अपने अंधेरों में भी
उनसे रौशनी उधर मांगें
यह हमने सोचा ही नहीं था
जो एक बार उनके
घर के बाहर रोशनी देखी
उस दिन कदम खिंच गए
वह अपनी खुशी में
वह हमें भूल जायेंगे
यह हमने कभी सोचा ही नहीं था
हमें देखकर भी उनके चेहरे पर
मुस्कान नहीं आयी
आखें थी उनकी पथराई
हम खडे थे स्तब्ध
उनके मेहमानों की फेहस्त में
हमारा नाम नहीं था
पास थे हम, पर दूर रहा उनका हाथ
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