पढी गुनी पाठक भये, समुझाया संसार
आपन तो समुझै नहीं, वृथा गया अवतार
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि बहुत पढ़-लिखकर दूसरों को पढाने और उपदेश देने लगे पर अपने को नहीं समझा पाए तो कोई अर्थ नहीं है क्योंकि अपना खुद का जीवन तो व्यर्थ ही जा रहा है।
भावार्थ- आज के संदर्भ में भी उनके द्वारा यह सत्य हमें साफ दिखाई देता है, अपने देखा होगा कि दूसरों को त्याग और परोपकार का उपदेश देने वाले पाखंडी साधू अपने और अपने परिवार के लिए धन और संपत्ति का संग्रह करते हैं और अपनी गद्दी भी अपने किसी शिष्य को नहीं बल्कि अपने खून के रिश्ते में ही किसी को सौंपते हैं। ऐसे लोगों की शरण लेकर भी किसी का उद्धार नहीं हो सकता।
पढ़त गुनत रोगी भया, बडा बहुत अभिमान
भीतर ताप जू जगत का, बड़ी न पड़ती सान
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि कुछ लोग किताबें पढ़, सुन और गुनकर रोगी हो गये और उन्हें अभिमान हो जाता है। जगत को विषय-कामनाओं का ताप भीतर ताप रहा है, घड़ी भर के लिए शांति नहीं मिलती है।
भावार्थ-आपने देखा होगा कि कुछ लोग धार्मिक पुस्तकें पढ़कर दूसरों को समझाने लगते हैं। दरअसल उनको इस बात का अहंकार होता है कि हमें ज्ञान हो गया है जबकि वह केवल शाब्दिक अर्थ जानते हैं पर उसके भावार्थ को स्वयं अपने मन में उन्होने धारण नहीं किया होता है।
तरुवर जड़ से काटिया, जबै तम्हारो जहाज
तारे पर बोरे नहीं, बांह गाहे की लाज
संत कबीर दास जी कहते हैं कि लोग वृक्ष को जड़ से काट डालते हैं, परन्तु उस वृक्ष की लकडी का जब जहाज बन जाता है, तब भी वह काटने वाले को नदी-समुद्र से पार लगाता है शत्रु मानकर डुबाता नहीं है। सच है, बडे लोग बांह पकड़ने में लज्जा करते हैं। आशय- संत कबीर दास जी कहते वृक्ष से बड़प्पन का गुण लेने की सलाह देते हैं। आदमी लकडी को बेरहमी से काट कर नाव बनाता है इसके बावजूद वह बदला लेने के लिए उसे सागर में नहीं डुबाती। इसी तरह सज्जन लोग किसी पर क्रोध प्रदर्शन न कर परहित के कार्य में लगे रहते हैं । कबीर विषधर बहु मिलै, मणिधर मिला न कोय विषधर को मणिधर मिलै, विष तजि अमृत होय
संत कबीर दास जी कहते हैं कि विषधर सर्प तो बहुत मिलते हैं पर मणि वाल सर्प नहीं मिलता। यदि विषधर को मणिधर मिल जाय तो विष मिटकर अमृत हो जाता है। भावार्थ-कहते हैं कि जहाँ सांप ने काट लिया हो वहाँ मणि लगाने से विष निकल जाता है। वही मणि दूध में डाल कर पीया जाये उसका कोड भी दूर हो जाता है (हालांकि इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है)। आशय यह है कि यहाँ बुर लोगों की संगत के कारण बुरी आदतें तो बहुत जल्दी आ जाती हैं पर अच्छे की संगत बहुत जल्दी नहीं मिल पाती है और अगर मिल जाये तो अपने आप ही अच्छे संस्कार विचार मन में आ जाते हैं।
नोट- थके हारे योग साधना शुरू करें-यह लेख अवश्य पढें उसका पता नीचे लिखा हुआ है ।
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