प्रात: काले नाग की तरह
धरती पर फैली सडक
उसके दोनों और खडे
हरे-भरे फलदार वृक्ष
और रंगबिरंगी इमारतें
देखने योग्य सौन्दर्य
आंखों से देखकर
चाहत होती है कि
समेट कर रख लें
अपने हृदय पटल पर
पर यह मुमकिन न्हीएँ होता
हर पल आसमान में
अपनी गति से चलता सूर्य
उगने से डूबने तक की प्रक्रिया में
कुछ भी स्थिर नहीं रहने देता
न दृश्य, न दर्शक और
न वह सौन्दर्य
प्रात: जो दृश्यव्य लगता है
भरी दोपहर में वीभत्स हो जाता है
सायंकाल में शांत
और रात्रि में खो जाता है
अकेला रह जाता है सौन्दर्य
समय और काल से
रंग बदलता रहता है सौन्दर्य
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टिप्पणियाँ
प्रात: जो दृश्यव्य लगता हैभरी दोपहर में वीभत्स हो जाता हैसायंकाल में शांतऔर रात्रि में खो जाता हैअकेला रह जाता है सौन्दर्यये पंक्तियां बहुत अच्छी लगी।
बढ़िया कविता है। सौन्दर्य देश-काल के सापेक्ष है।