श्रीवास्तव जी का भूख ब्लोग अवश्य देखें


आज मैंने चिट्ठा जगत पर सत्येंद्र प्रसाद श्री वास्तव की एक कहानी पढी, और वह मुझे बहुत पसंद आयी। उनकी कहानी न केवल सार्थक है बल्कि एक संदेश भी देती है। मुझे ऎसी ही रचनाएं बहुत पसंद आती हैं । इससे ज्यादा अच्छी बात यह लगी कि अब इण्टरनेट पर भी सार्थक लेखन शुरू हो चूका है। मैंने पहले लेख में कहा था कि लेखक की रचना का समाज से सरोकार होना चाहिऐ और यह कहानी उसी का प्रमाण है। यहाँ इसका उल्लेख करना मुझे इसलिये जरूरी लगा कि क्योंकि जब मैं इस विधा में हूँ तो इससे जुडे कुछ पहलुओं की चर्चा करना जरूरी लगता है।

वास्तविक लेखक जब सृजन करने का विचार करता है तो वह स्वयं से परे होकर केवल रचना के पात्रों और तत्वों पर ही दृष्टि केंद्रित करता है-अगर वह ऐसा नहीं करेगा तो उसकी रचना केवल एक अपनी डायरी या नॉट बनकर रह जायेगी समाज के सरोकार से परे होने के कारण उसे रचना तो हरगिज नहीं कहा जा सकता है। निज-पत्रक पर ऎसी कहानिया लिखना कोई आसान काम नहीं है -यह मैं जानता हूँ, पर जिसके हृदय में सृजनशीलता, उत्साह और अपने लेखन से प्रतिबद्धता का भाव है वही ऐसा कर सकते हैं। आने वाले समय में अच्छी कहानियाँ, व्यंग्य, सामयिक लेख और तमाम तरह की ज्ञान वर्धक जानकर हमें मिलती रहेंगी ऎसी हम आशा बढ रही है। उनके निज पत्रक का नाम भूख है। आप इसे जरूर पढ़ें ।

एक लेखक को अच्छा पाठक भी होना चाहिऐ, मैंने देखा है कि की लोग अपने लिखने पर ही अड़े रहते हैं और पढने के नाम पर कोरे होते हैं। ऐसे लोगों को मैं बता दूं कि आप पढ़ते हैं या नहीं यह आपकी रचना ही बता देती है-या अगर आप पढ़ते हैं तो कैसा पढ़ते हैं यह भी आपकी रचना जाहिर कर देती। कुछ लोग ऐसे हैं जो सीखते हैं पर सिखाने वाले का नाम जाहिर नहीं करते है और ऐसे चलते हैं जैसे जन्मजात सिद्ध हौं ,और वह कभी भी अपनी छबि नहीं बनाते। उन्हें कुछ रचनाएं बेहद पसंद आती हैं पर वह जाहिर नहीं करते। मैं उन लोगों में नहीं हूँ – जो मुझे पसन्द आता है वह खुले आम कह देता हूँ ताकि लोग जाने कि मेरी पसंद या नापसंद क्या है? इसमें भी कोई शक नहीं है कि श्रीवास्तव जीं स्वयं भी उच्च कोटि का साहित्य पढ़ते होंगे क्योंकि ऎसी रचना तभी संभव है। मैंने यहाँ उनका ब्लोग लिंक नहीं किया उसके दो कारण हैं एक तो यह कि उनसे मैंने अनुमति नहीं मांगी और दुसरे यह कि लोग लिंक ब्लोग को खोलकर पढ़ते नजर नहीं आते-इसके अलावा मैं चाहता हूँ कि हिंदी की साहित्यक समीक्षा की परंपराएँ यहां भी शुरू हौं जो लिखी जाती हैं पर कुछ अंशों के साथ ! यहाँ अपने पाठकों में उत्सुकता पैदा कर उन्हें उनके ब्लोग पर जाने के लिए प्रेरित करना चाहता हूँ।

इसके साथ ही मैं आशा करता हूँ कि श्रीवास्तव जी की सृजन शीलता की भूख और बढ़े ताकि इण्टरनेट पर हमें और भी रचनाएं देखने को मिलें।

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टिप्पणियाँ

  • आपको मेरी कहानी पसंद आई और उसके बाद आपने सबसे उसे पढ़ने का अनुरोध किया। इसके लिए आभार।

  • परमजीत बाली  On जुलाई 15, 2007 at 02:05

    दीपक जी, कहानी पढने से पहले मै आपके लेख की तारीफ करना चाहूँगा। मै आप के विचारो से सहमत हूँ।”एक लेखक को अच्छा पाठक भी होना चाहिऐ, मैंने देखा है कि की लोग अपने लिखने पर ही अड़े रहते हैं और पढने के नाम पर कोरे होते हैं। ऐसे लोगों को मैं बता दूं कि आप पढ़ते हैं या नहीं यह आपकी रचना ही बता देती है-या अगर आप पढ़ते हैं तो कैसा पढ़ते हैं यह भी आपकी रचना जाहिर कर देती। कुछ लोग ऐसे हैं जो सीखते हैं पर सिखाने वाले का नाम जाहिर नहीं करते है और ऐसे चलते हैं जैसे जन्मजात सिद्ध हौं ,और वह कभी भी अपनी छबि नहीं बनाते।”

  • Udan Tashtari  On जुलाई 14, 2007 at 18:39

    जी, बहुत पसंद आई वहाँ लिखी जा रही कहानी. सूचना के लिये आभार.

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