प्रभावशाली लोग और चाटुकारिता


अमेरिका के कुछ पत्रिकाएँ विश्व के प्रभावशाली लोगों की सूची जारी करती हैं और उनके प्रभाव के अनुसार उनका क्रम होता है। इसमें किसी देश के राष्ट्र प्रमुख का नाम नही होता बल्कि सभी नामी उधोगपति और पूंजीपतियों के नाम होते हैं। इसका सीधा अर्थ यही है कि जिसके पास जितना पैसा है वही प्रभावशाली हो सकता है। सभी धनपति और उधोगपति प्रभावशाली नहीं हो सकते पर प्रभावशाली का धनपति और उधोगपति होना जरूरी है।
इन सूचियों में जो नाम होते हैं उनकी चर्चा आम लोगो में नहीं होती क्योंकि उनका इन लोगों से कोई सीधे सरोकार नहीं होता पर जो उनके ‘प्रभाव क्षेत्र’ में होते हैं वह आम आदमी का ही नही बल्कि समाज और देश का भविष्य तय करते हैं। कई लोगों को गलतफ़हमी होती है कि अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य यूरोपीय देशो के राज प्रमुख दुनिया से सबसे ताक़तवर और प्रभावशाली लोग हैं उन्हें ऎसी रिपोर्ट बडे ध्यान से पढ़ना चाहिए।

हमारे देश में अगर आप किसी व्यक्ति से प्रभावशाली लोगों के बारे में सवाल करेंगे तो वह अपने विचार के अनुसार अलग-अलग तरह के प्रभाव के रुप बताएंगे। आम आदमी की दृष्टि में प्रभाव का सीधा अर्थ है ‘पहुंच’। किसी को अपनी गाडी के लिए आर.टी.ओ.से नंबर लेना है तो वह बाहर बैठे दलाल को ही प्रभावशाली मानने लगता है। छोटा व्यापारी सरकारी दफ्तरों में अपने काम के लिए ऐसे लोगों को ढूँढते हैं जो वहां से उनका काम सरलता से और मन के मुताबिक हो सकें। अब क्लर्क हो या चपरासी वह भी उनके लिए प्रभावशाली होता है। सडक पर अपना काम चलाने वाले गरीब लोगों के लिए वही व्यक्ति प्रभावशाली वाला है जो उनका ठीया और धंधा बनाए रखने में सहायक हो और भले ही इसके लिए वह कुछ लेता हो।

सरकारी कामों में कठिनाई और लंबी प्रक्रिया के चलते इस देश में उसी व्यक्ति को प्रभावशाली माना जाता रहा है जो जिसकी वहाँ पहुंच रहा हो और मैंने देखा है कि दलाल टाईप के लोग भी ‘प्रभावशाली ‘ जैसी छबि बना लेते हैं। अब जैसे-जैसे निजीकरण बढ़ रहा है वैसे ही उन लोगों की भी पूछ परख बढ़ रही है जो धनाढ्य लोगों के मुहँ लगे हैं, क्योंकि वह भी अपने यहाँ लोगों को नौकरी पर लगवाने और निकलवाने की ताक़त रखने लगे हैं। हर जगह तथाकथित रुप से प्रभावशाली लोगों का जमावड़ा है और तय बात है कि वहाँ चाटुकारिता भी है। प्रभावशीलता और चाटुकारिता का चोली दामन का साथ है। सही मायने में वही व्यक्ति प्रभावशाली है जिसके आसपास चाटुकारों का जमावड़ा है-क्योंकि यही लोगों वह काम करके लाते हैं जो प्रभावी व्यक्ति स्वयं नहीं कर सकता है। वैसे भी हमारे देश में बचपन से ही अपने छोटे और बड़ी होने का अहसास इस तरह भर दिया जाता है कि आदमी उम्र भर इसके साथ जीता है और इसी कारण तो कई लोग इसलिये प्रभावशाली बन जाते हैं क्योंकि वह लोगों के ऐसे छोटे-मोटे कम पैसे लेकर करवा देते हैं जो वह स्वयं ही करा सकते हैं-जिसे दलाल या एजेंट काम भी कहा जाता है और लोग उनका इसलिये भी डरकर सम्मान करते हैं कि पता नहीं कब इस आदमी में काम पड़ जाये और ऐसे छद्म लोगों की कोई संख्या कम नहीं है।
मुझे याद है कि जब मैं छोटा था तो प्रभावशाली व्यक्ति की दुकान हमारे पास ही थी जिसके पास अनेक सरकारी महकमों के कर्मचारी और अधिकारी आते थे। इसी कारण उसे पहुंच वाला माना जाता था। मेरे ताऊ अपने सरकारी कामों के लिए उसके पास जाते थे-वह काम तो करा था पर साथ में पैसे भी लेता था।। मेरे पिताजी को शक था कि वह उसमें से कमा रहा है। मेरे पिताजी ताऊ जीं से कहते कि ‘लाओ मैं काम कराकर लता हूँ’ तो ताऊ कहते थे कि नही’तुम उसे उलझा और दोगे हम न तो पढे-लिखे हैं न जानकार। वह भी पढ-लिखा नहीं है पर पहुंच वाला तो है’।
मेरे पिताजी ज्यादा पढे लिखे नहीं थे पर जीवन से संघर्ष करने का मादा उनमें ख़ूब था और वह कहते थे कि ‘कई लोग ऐसे हैं जो लोगों के अपढ़ और सीधे होने का फायदा उठाते हैं। लग अपने अक्ल , मेहनत और ताक़त पर यकीन करें तो उन्हें किसी की चाटुकारिता की जरूरत नहीं है।’
मैं बड़ा हुआ और पिताजी के स्वभाव और भगवन भक्ति ने जहाँ संघर्ष करने के शक्ति दीं और वहीं लेखक भी बन गए। कई अखबारों में जब रचनाएं छपतीं तो उन्हें पढ़कर उसी तथाकथित प्रभावशाली आदमी का भतीजा मेरे मित्र बन गया और उसने जो अपने चाचा की पोल खोली तब मेरे समझ में आया कि उसका प्रभाव छलावे से अधिक कुछ नहीं था और मेरे पिताजी का अनुमान सही था। तब से तय किया कि अपने से उम्र में बडे, अधिक ज्ञानी, गुणी और सज्जन का सम्मान तो करेंगे पर चाटुकारिता नहीं करेंगे क्योंकि इस धरती पर उस ‘सर्वशक्तिमान’ के अलावा और कोई प्रभावशाली हो नहीं सकता जिसने सबको जीवन दिया है।
हमारे देश के पत्र-पत्रिकाओं में ऐसी सूचियां नही छपती। हमारे देश के लोग कितनी भी गरीबी, बीमारी और कठिनाई से जूझ रहे हों पर उस’सर्वशक्तिमान’ के अलावा किसी दूसरे व्यक्ति को प्रभावशली नहीं मान सकते-इस सत्य को सब जानते है। अगर हमारे देश के पत्र-पत्रिकाएं ऐसी सूचियां छापेंगे तो वह लोग नाराज हो जायेंगे जिनको खुश रखने लिए यह जारी की जायेंगी-क्योंकि उनको लगेगा कि देश की जनता उनका मजाक उडा रही है। इसलिये विदेशी अखबारों की कतरनों का छाप कर काम चला रहे हैं।
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टिप्पणियाँ

  • रवीन्द्र प्रभात  On अक्टूबर 2, 2007 at 14:57

    ऐसी गंभीर चर्चा आपने की कि मज़ा आ गया पढ़कर. सचमुच, यही सच है . वैसे भी जहाँ राजनीति हावी हो वहाँ नैतिकता और अनैतिकता में क्या फ़र्क़ रह जाता है, किसी कवि ने ठीक ही कहा है कि-स्व से ऊँचा चरित्र कठिन है,राजनीति में मित्र कठिन है,किसी जुआरी के अड्डे पर-वातावरण पवित्र कठिन है .

  • इष्ट देव सांकृत्यायन  On सितम्बर 29, 2007 at 19:41

    ठीक कहा है मित्र. प्रभावशाली होने का यही अर्थ है. इसी प्रभाव्शालिता के दम भारत में नेतागिरी यानी राजनीति चल रही है. बेहतर होगा कि आगे के अपनी पोस्टों में आप वे राज बताएँ जो आपके मित्र ने अपने चाहा के बारे में खोलीं.

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