मनुस्मृति: प्राणायाम करने से पाप तथा विकार नष्ट हो जाते हैं।


संरक्षणार्थ जन्तुनां रात्रवहनि वा सदा
शरीरस्यात्यये चैव समीक्ष्य वसंधां चरेत्

सन्यासी को रात दिन तकलीफ उठाते हुए भी दूसरे मनुष्यों की रक्षा करना चाहिए। उसका इतना ज्ञानी होना चाहिए कि छोटे से जीव पर दया करे ।

प्राणायामः ब्राह्मणस्य त्रयोऽपि विधिवत्कृताः
व्याहृति प्रणवैर्युक्ताः दोषाः प्राणस्य निग्रहात्

विद्वान और ज्ञानी जनों का तीनों विधियों-प्रणव,ओम,व्याहृति-द्वारा किये गये प्राणायाम को भी तप माना जाना चाहिए।

दह्नान्ते ध्यायमानानां धातूनां हि यथा मलाः
तथेन्द्रियांणां दह्नान्ते दोषाः प्राणस्य निग्रहातफ

अग्नि में सोना, चांदी आदि धातुओं को डालने से जिसे प्रकार उनकी अशुद्धता दूर हो जाती है उसी प्रकार प्राणायाम की साधना करने से इंद्रियों के सारे पाप तथा विकार समाप्त हो जाते हैं।
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टिप्पणियाँ

  • Udan Tashtari  On अगस्त 12, 2008 at 21:44

    पाप तथा विकास को पाप तथा विकार कर लें. शायद टाइपो हो.

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