सच है ऑस्कर में क्या रखा है-आलेख


इस देश में कई ऐसे लोग है जो अमिताभ बच्चन के अभिनय और आवाज से अधिक उनके व्यक्तित्व और वक्तव्यों से अधिक प्रभावित होते हैं। यही कारण है कि अमिताभ बच्चन जहां जवां दिलों को भाते हैं और फिल्म प्रेमियों को लुभाते हैं वहंी बुद्धिजीवी वर्ग में भी उनकी एक जोरदार छबि है। जिन बड़े लोगों ने अपने ब्लाग शुरू किये हैं उनमें एक अमिताभ ही ऐसे ही जो अपने लेखन से प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं।

आज टीवी पर उनका एक बयान सुनने को मिला जिसमें उन्होंने कहा कि ‘आस्कर में क्या रखा है‘। उनकी यह बात दिल को छू गयी। वह प्रसिद्ध कवि हरिबंशराय बच्चन के सुपुत्र हैं और जहां तक हिंदी बोलने या लिखने का प्रश्न है वह शायद हिंदी फिल्मों के अकेले ऐसे अभिनेता होंगे जिनको अपनी मातृभाषा में साहित्य लिखना आता होगा-बाकी भी होंगे पर इस लेखक को इसकी जानकारी नहीं है। यह लेखक लिखने में उनकी बराबरी तो नहीं कर सकता पर इतना जरूर कह सकता है कि दूसरा यहां कोई ‘अमिताभ बच्चन’ जैसा होगा यह संभव नहीं है इसलिये प्रचार माध्यम चिंतित रहते हैं। इसलिये हर साल आस्कर का बवाल खड़ा उठता है। अमिताभ बच्चन को कभी न तो आस्कर मिला न शायद कभी उसके लिये उनके नाम का चयन हुआ पर अगर आज उनको मिल भी जाये तो फर्क क्या पड़ता है। इस देश के लिये अमिताभ बच्चन जी को अमिताभ बच्चन ही रहना है। कोई उन जैसा नहीं बन सकता पर इसलिये बाकी लोग यह आशा करते हैं कि आस्कर मिल जाये तो कम से कम उनको प्रचार के मामले में चुनौती दे सकें और कह सकें कि अमिताभ बच्चन में क्या रखा है, हमें तो आस्कर मिल गया है’। सच तो यह है कि अनेक अभिनेताओं के मन में अमिताभ जैसा सम्मान पाने की इच्छा है पर वह जानते हैं कि यह संभव नहीं है और इसलिये वह आस्कर के द्वारा उनकी बराबरी करना चाहते हैं।
कई बार यह ख्याल समझदार लोगों को आता है कि आखिर आस्कर मिल जाने से होना क्या है?सच बात तो यह है कि आस्कर किसी फिल्म को तब मिलता है जब वह दर्शकों से पूरा पैसा वसूल कर चुकी है। अगर किसी हिंदी फिल्म को आस्कर मिल भी जाये तो उसकी दर्शक संख्या इसलिये नहीं बढ़ सकती कि उसे पुरस्कार मिल गया या फिर किसी अभिनेता की अगली फिल्म इसलिये हिट नहीं हो सकती कि उसे आस्कर अवार्ड मिल गया। दरअसल यह तो अन्य अभिनेताओं,निर्देशकों और निर्माताओं के साथ बाजार प्रबंधकों के लिये सोचने का विषय है जो इस देश के महानायक अमिताभ बच्चन के सामने कोई दूसरा विकल्प खड़ा करना चाहते हैं जिसमें अभी तक वह नाकाम रहे हैं। बाजार चाहे कुछ भी कर ले वह दूसरा अमिताभ ब्रच्चन नहीं बना सकता क्योंकि मनुष्य में कुछ गुण स्वाभाविक होते हैं जो पैसे सा शौहरत आने से नहंीं पैदा होते। अमिताभ बच्चन का सबसे बड़ा गुण है अपनी बात को सहज रूप से हिंदी मेंं कहना और यही कारण है कि जब वह दूरदर्शन पर कोई साक्षात्कार देते हैं तो लोगों के दिल में छा जाते हैं जबकि अन्य अभिनेता और अभिनेत्रियों के साक्षात्कारों से ऐसा लगता है कि उनकेा हिंदी नहीं आती और आम हिंदी दर्शक इससे निराशा और परायापन अनुभव करता है। आजकल प्रचार माध्यमों का जनता पर बहुत प्रभाव है और यही कारण है कि हिंदी फिल्मों के अभिनेता उसके हृदय पटल पर प्रभाव नहीं डाल पाते।
अगर हिंदी फिल्मों का कोई अभिनेता आस्कर भी ले आये तो भी श्री अमिताभ बच्चन जैसा सम्मान लोगों से नहंी पा सकता। अलबत्ता प्रचार माध्यम जरूर उनको कई बरस तक सिर पर उठा लेंगे। जहां तक आम आदमी के दिल पर राज करने का प्रश्न है तो कम से कम अगले पचास वर्ष तक अमिताभ बच्चन की बराबरी करने वाला नहीं मिल सकता। फिल्मी दुनियां की हालत सभी जानते हैं। फिल्मी गायक किशोर कुमार,मोहम्मद रफी,मन्ना डे, और मुकेश की बराबरी करने वाला आज भी कोई नहीं है जबकि ढेर सारे गायक हैं फिर अमिताभ बच्चन जैसे अभिनेता की तो बात ही क्या जो हर दिन एक नया मील का पत्थर रखता है। हो सकता है कुछ लोगों को यह बात अति लगे पर इस लेखक के मन का सच यही है और इसे मानने वाले ही अधिक होंगे।
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यह आलेख मूल रूप से इस ब्लाग ‘अनंत शब्दयोग’पर लिखा गया है । इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं हैं। इस लेखक के अन्य ब्लाग।
1.दीपक भारतदीप का चिंतन
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टिप्पणियाँ

  • Anonymous  On जनवरी 25, 2009 at 13:35

    Bilkool theek pata nahi kyon sab oscaar ko itna mahatav dete hain,hindi aur sampoorn bhartiya cinema ki samvednawon aur uske essence ki paschim ko kabhi samajh nahi ho sakti,maine Slumdog… nahi dekhi hain lekin itna jaroor janti hoon bhartiya cinema me ek se badhkar ek meel ke pathar hain jo hamaari aasaawon,aakashanchown,umeedo aur andheron ki behtar abhivyakti karte rahe hain.

  • AKSHAT VICHAR  On जनवरी 25, 2009 at 08:52

    सभी महानायक नहीं हो जाते हैं। काफी अच्छा लेख प्रस्तुत किया।

  • Udan Tashtari  On जनवरी 25, 2009 at 06:28

    किसी और के सम्मान से किसी और के सम्मान में यूँ भी फरक नहीं पड़ता-सबके अपने अपने स्थान हैं और न ही इससे कला के क्षेत्र में ऑस्कर की अहमियत को नकारा जा सकता है.

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