योग साधना में नियम का बहुत महत्व है-हिन्दी चिंत्तन लेख


                        इस बार की दीपावली के दो दिन हमारे लिये दैहिक दृष्टि से सुखद नहीं रहे।  धनतेरस की शाम से चला बुखार और जुकाम नाम के विकारों का संयुक्त अभियान रविवार शाम तक हमें हैरान किये रहा।  योग साधना का अभ्यास इतना ही इसमें काम आया कि हमने अपने घरेलु उपायों से इसे थामे रखा।  इन्हेलर से एक दो बार नाम को साफ करने का प्रयास किया तो वह भी उल्टा पड़ा। कहा जाता है कि जुकाम तीन दिन तक तो रहता ही है। यह सही हो सकता है पर चिकित्सक से इलाज कराते हुए आदमी तो तसल्ली तो रहती है कि उसे कोई दूसरा ठीक कर लोग। इन्हेलर ने जुकाम को जाम कर दिया तो वह ज्यादा उग्र हो उठा।  बहरहाल हमने जिन उपायों से जुकाम और बुखार का इलाज किया वह सार्वजनिक करना यूं भी ठीक नहीं है क्योंकि हमारे पास कोई चिकित्सीय प्रमाणपत्र नही है।  चार पांच तरीके तो उपयोग किये ही एक बार विक्स की गोली भी मन को शांत करने के लिये ले ही ली।

                        एक साथी ने प्रश्न किया-‘‘तुम्हें जुकाम कैसे हुआ? तुम तो रोज योगसाधना करते हो।’’

                        हमने कहा कि’’हमेशा ही योगसाधना थोड़े ही करते हैं। फिर हम नियम से कभी विचलित न हों ऐसे कोई सिद्ध भी नहीं है।’’

                        वह बोला-‘‘यह ठीक है पर तुम तो ज्ञानी भी हो।

                        हमने कहा-‘‘यह ठीक है कि हम कभी कभी ज्ञान बघारते हैं पर हम उसके भी साधक है, कोई सिद्ध नहीं! ज्ञानी का प्रमाण पत्र हमें दूसरा क्या देगा हमें स्वयं ही स्वीकार्य नहीं है।

                        योग साधना का आशय केवल प्राणायाम और आसन से ही नहीं होता वरन् उसमें नियम का भी बहुत महत्व है। नियम या नीति के विपरीत चलने का परिणाम विकार के रूप में प्रकट होता है।  दिपावली के दिनों में जब खाद्य विशेषज्ञ चिल्लाकर यह बता रहे हों कि हर जिले में इतना दूध नहीं होता जितना खोया मिल रहा है, इसलिये मिलावटी या नकली होने की पूरी संभावना है। जवाब यह भी हो सकता है कि दूसरे जिले से असली भी तो आ सकता है इसलिये नकली खोया नहीं भी हो सकता है। यह अत्यंत मूर्खतपूर्ण जवाब होगा क्योंकि यहां पूरे देश की बात हो रही है। हर जिले में ऐसा नहीं हो सकता।  दूध उत्पादन के बनिस्बत हर जिले में  उससे कई गुना खोया बाज़ार में दिख रहा है।

                        हमने जिस दुकानदार से मिठाई खरीदी उसकी छवि मध्यम स्तर की है इसलिये सब बात पर यकीन था कि शुद्ध सामान मिलेगा।  खाने के बाद जो प्रतिक्रिया हुई उससे मन दुःखी हो गया। हमने एक साथी से इस बात की चर्चा की तो उसने यह शंका जाहिर की कि खोया नकली न हो पर संभव है मिठाई रखी हुई हो। हमें सच पता नहीं पर उस मिठाई ने एक नहीं दो दिन परेशान किया।  मतलब वह दुकानदार नकली सामान न दे पर रखा हुआ दे सकता है यही उसकी मध्यम स्तर छवि का परिचायक है।

                        शुक्रवार शाम को मिठाई खरीदकर दो टुकड़े खाये।  उसके तत्काल बाद दैहिक स्थिति थोड़ी तनावपूर्ण लगी। रात तक उसने पूरी तरह घेर लिया। नींद आती जाती रही।  बहरहाल यह आसन और प्राणायाम का प्रभाव रहा कि शानिवार प्रातःकाल उठते समय थकावट नहीं लगी पर तनाव अनुभव हो रहा था।  योग साधना से निवृत होकर नहाधोकर चाय पी तो वह तनाव अधिक बढ़ गया।  बुुखार और जुकाम शांत भाव से आक्रामक दिख रहे थे। हमें लगा कि वायु विकार के कारण भी यह हो सकता है जो जुकाम के सहयोग से बना है।  दोपहर को खाने के बाद राहत अनुभव हुई पर दुर्भाग्य यह कि हमने सोचा कि फिर दो टुकड़े खा लिये।  उसके बाद बुखार तथा जुकाम ने आक्रामक रूप धारण कर लिया।  बहरहाल हमने नींद आराम से ली।  रविवार को गर्म पानी से नहाये।  ठंड लगने लगी थी।  होम्योपैथी की गोलियां  बुखार और जुकाम के विरुद्ध दागी। साथ ही तय किया कि अब मिठाई को हाथ नहीं लगायेंगे।  दिन में हमने दोनों विकारों के विरुद्ध  जवाबी हमला भी किया।  हमें लगा कि अगर यह मिठाई का असर है तो रविवार शाम तक ठीक हो जाना चाहिये।  हैरानी है शाम छह बजे होते होते हमारा शरीर यह बताने लगा कि विकार अब पीछे हटने लगे।  इससे हमारा मनोबल बढ़ा।  बीमारी के दौरान जो सबसे महत्वपूर्ण बात लगी वह यह कि आदमी का मनोबल ही उसे चलता है।  संघर्ष करते हुए हम निश्चित थे कि यह विकार दो दिन तक हैरान करेगा पर मनोबल गिरा हुआ था। सच कहते हैं कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन रहता है।  जब दैहिक शक्ति ने सकारात्मक संकेत दिये तो हमने अपने आपसे ही पूछा वह एक घंटे अंदर बैठा मन कौनसा था जो विचलित था और यह कौन है जो अब आश्वस्त होकर बाहर घूमने की प्रेरणा दे रहा है। यह मजे की बात है कि धूप में जाते हुए भी जो कदम लड़खड़ा रहे थे वही रात को तन कर खड़े थे।

                        हमने अनेक बार तय किया था कि जहां तक हो सके बाज़ार में तैयार खुली खाद्य पेय सामग्री से बचें रहें।  हमने देखा है कि जब बाज़ार का ऐसा सामान जो रखा जा सकता है उसे खाने पर हमें ऐसे ही जूझना पड़ता है।  कमाल इस बात का है कि बाज़ार से तैयार खुली खाद्य सामग्री। न खाने तक हमें कोई परेशानी नहीं होती। बीमार होने पर निकटवर्ती इतिहास पर दृष्टिपात करते हैं तो हमने अपना नियम तोड़ा है।  बाज़ार में कभी खा लिया तो इस बात से डरे रहते हैं कि कहीं बीमार न पड़ जायें।  इसलिये कम ही खाते हैं पर दो बार निकल गये पर तीसरी बार  फंस ही जाते है।  स्थिति यह है कि हम पैक सामग्री की निर्माण अथवा पैक करने की तिथि देख लेते हैं।  हमारे कुछ विद्वान सही कहते हैं कि हमारे देश में भूखमरी बहुत है पर सच यह है कि यहां भूख की बनिस्पत बल्कि  खाकर मरने वाले लोगों की संख्या ज्यादा होती है।   मिलावटी, विषैले और नकली सामान खाकर मरने वाले लोगों की संख्या का अनुमान हमारे पास  नहीं है वरना वह भी कम नहीं हो सकती।

                        कहते हैं कि भगवान जो करता है वह अच्छे के लिये ही करता है। भौतिक रूप से दीपावली पर लाभ होने की कामना पालने वाले बहुत हैं पर हम जैसे अध्यात्मिक ज्ञान साधक को इस दीपावली पर बीमार होकर चिंत्तन करने का अवसर मिला उससे लगता है कि योग माता ने मति फेरकर वह अवसर दिया। जैसे संदेश दिया हो कि आसन और प्राणायम पर न इतराओ नियम भी कोई विषय है जिस पर कुछ चिंत्तन करो। दीपावली के दिन तो खूब पटाखे छोड़े गये, मिठाईयां खायी गयीं और अनेक जगह कार्यक्रम आयोजित किये गये।  सोमवार की प्रातःकाल हमें यह पता लगा कि हमारे फेफड़ों में कोई संक्रमण जरूर हुआ है क्योंकि सारे आसन हो गये पर हास्यासन पहले की तरह नहीं हो सका या कहें कि कर ही  नही पायें।  इससे ज्यादा चिंता यूं नहीं हुई क्योंकि बाकी अंग सही काम कर रहे हैं। दूसरी बात यह भी कि हम हास्यासन नहीं करते होते तो यह पता ही नहीं लगता कि हमारे फेफड़ों में संक्रमण विद्यमान है।  हो सकता है ऐसे में मिठाई फिर खा लेते।  कम से कम अब सावधानी रखने का विचार तो आया।  इसलिये हम तो यह कहेंगे कि हमारे लिये यह दीपावली भी शुभ रही। 

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप

 

ग्वालियर मध्य प्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”
Gwalior Madhyapradesh

वि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर

poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro

http://rajlekh-patrika.blogspot.com

 

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