अपने हाथ से अपने ही सिर पर
पहन लेते हैं कोई भी ताज
किससे लिया और कैसे
सवालों के जवाब में रखते राज
मेहनत की राह चलकर
कौन तकलीफें उठाना चाहता
सभी बांधते हैं तारीफों के पुल
एक दूसरे के लिये
जीवन की सफलता का मार्ग
इस पार से उस पार जाकर पाता
सस्ते में बिकने से आता नहीं आदमी बाज
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर लिखा गया है। इस पर कोई विज्ञापन नहीं है। न ही यह किसी वेबसाइट पर प्रकाशन के लिये इसकी अनुमति दी गयी है।
इस लेख अन्य वेब पृष्ट हैं
1. दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
कवि एवं संपादक-दीपक भारतदीप
किसी की तारीफों के पुल बांधने से
सफलता का आसमान मिल गया होता
तो फिर धरती होती आकाश
और आकाश वीरान होता
भला कौन यहां अन्न के लिये बीज बोता
कौन बहाता पसीना
कौन कपड़ा बनता होता
मेहनतकश आसमान में इसलिये नहीं उड़ पाते
क्योंकि तारीफ लायक कोई उनके पास नहीं होता
हर कोई उनके पास खून चूसने के लिए होता
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टिप्पणियाँ
बहुत सुंदर,सशक्त,ह्रदय को छो लेने वाला गीत है…. समर्पित रहिये…. हम सब साथ-साथ हैं…..