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भूख और लुटेरे-हिन्दी शायरी (bhookh aur lutere-hindi shayari)


देश में बढ़ रहा है खज़ाना
मगर फिर भी अमीरों की भूख
मिटती नज़र नहीं आती।

देश में अन्न भंडार बढ़ा है
पर सो जाते हैं कई लोग भूखे
उनकी भूख मिटती नज़र नहीं आती।

सभी बेच रहे हैं सर्वशक्तिमान के दलाल
शांति, अहिंसा और गरीबों का ख्याल रखने का संदेश
मगर इंसानों पर असर होता हो
ऐसी स्थिति नहीं बन पाती।

फरिश्ते टपका रहे आसमान से तोहफे
लूटने के लिये आ जाते लुटेरे,
धरती मां बन देती खाने के दाने,
मगर रुपया बनकर
चले जाते हैं वह अमीरों के खातों में,
दिन की रौशनी चुराकर
महफिल सज़ाते वह रातों में,
भलाई करने की दुकानें बहुत खुल गयीं हैं
पर वह बिना कमीशन के कहीं बंटती नज़र नहीं आती।
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कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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भलाई की दुकानें-हिन्दी शायरी (bhalai ki dukane-hindi shayri)

जीवन जिन्दा दिल होकर जियो-हिन्दी शायरी


दिल का कोई सौदा नहीं होता
जिस पर आता उसी का होता
चलते है जो जीवन मे साथ
निभाते हैं हर समय
चाहे न चलते हों राह पर हाथ में डालकर हाथ

अपने मन की आंखें बंद कर लो
नींद स्वयं ही आ जाती है
जो संभाला कोई ख्याल तो
फिर गायब हो जाती है
सोने से मिला सुख नहीं मिलता
जिसके लिये बनी है रात
गीत-संगीत के तोहफों से
बिखरी पड़ी है दुनियां
अपने कानों से मीठी आवाज सुनने के लिये
क्या किसी से शब्द और आवाज मांगना
इस जीवन में किससे आशा
और किससे निराशा
जिनसे उम्मीद करोगे
बनायेंगे तमाशा
जीवन को जिंदा दिलों की तरह जियो
जब तक न छोड़े अपना साथ
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दीपक भारतदीप

मरने की बाद जिंदा रहने के लिए-कविता साहित्य


अपने बुत वह बनवा रहे हैं
अपने मरने की बाद पूजने के लिए
भरोसा नहीं इस बात का कि
उनको बाद में कोई याद करेगा के नहीं
क्योंकि काम ही नहीं ऐसे किए

अपनों से अंहकार का व्यवहार
दूसरे का किया हमेशा तिरस्कार
बहुत है दूसरों को याद दिलाने के लिए
पर कोई ऐसा आईना बना ही नहीं
जो अपने छिद्र आदमी को दिखा सके
अपनी असलियत बताने के लिए

यही वजह है कि
हर आदमी उठाए जा रहा है
अपनी जिन्दगी का बोझ
बिना किसी का सहारा लिए
भीड़ तो बहुत जुटा लेता है
हर आदमी यहाँ पर
जिंदा रहने की कोशिश करता है
मरने की बाद जिंदा रहने के लिए
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खजाना उसका दिल में है


जब भी अपनों से मन ऊब जाता
गैरों में अपनत्व ढूँढने आदमी चला जाता
अपनी ख्वाहिशों का बोझ उठाये है सभी
कोई आकर उतारे यही सोच चलता जाता
सच्चा प्यार ढूँढने सब निकलते
पर मतलब किसी के समझ में नहीं आता
आसामान से टपकती हैं उम्मीद
यही सोच ऊपर देखता चला जाता
जिन्दगी में खुशियों के लिए ढूँढता बहाने
ग़मों को बुलावा देकर आता
बाहर ढूंढें जिसको खजाना उसका दिल में है
इसे कोई-कोई शख्स ही जान पाता